अगर कांग्रेस ने जनभावनाओं का ख्याल नहीं रखा, तो भविष्य में उनका नाम लेनेवाला भी नहीं बचेगा
कांग्रेस के लोग गांठ बांध लें, अगर उन्होंने जनभावनाओं का ख्याल नहीं रखा तो भविष्य में कांग्रेस का नाम लेनेवाला भी कोई नहीं बचेगा। यह मैं इसलिए लिख रहा हूं कि, धारा 370 को हटाने के रास्ते में, जो रुकावटें कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने संसद में पैदा की, उसे पूरे देश ने देखा। यहीं नहीं इसी मुद्दे पर अपने ही अंदर उपजे विवाद को कांग्रेस ने शांत करने व जनभावनाओं को समझने के बजाय, संसद में विरोध के नाम पर विरोध दर्ज कराया।
जिसको लेकर पूरे देश में कांग्रेस के प्रति लोगों का गुस्सा चरम पर है, शायद कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को नहीं पता। कमाल है, कांग्रेस के अंदर ही जनार्दन द्विवेदी, दीपेन्द्र हुड्डा, मिलिंद देवड़ा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, रंजीत रंजन आदि नेताओं ने जनभावनाओं का ख्याल रखते हुए धारा 370 को लेकर केन्द्र सरकार के रुख का समर्थन किया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राज्यसभा सदस्य एवं मुख्य सचेतक भुवनेश्वर कालिता ने तो सदन की सदस्यता से ही इस्तीफा दे दिया।
फिर भी सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मनीष तिवारी और अधीर रंजन चौधरी जैसे लोग जनभावनाओं को समझने के बजाय विरोध की राजनीति को माथे पर उठाए दीखे। शायद उन्हें नहीं पता कि जहां बैठकर वे विरोध की राजनीति कर रहे हैं, उसके लायक भी उन्हें देश की जनता ने ही बनाया हैं, और जब देश की जनता का दिमाग घुमेगा तो फिर ये कहां जायेंगे, शायद इन्हें पता नहीं।
इन नेताओं को शर्म आनी चाहिए कि पाकिस्तान में कश्मीर को लेकर वहां की पार्लियामेंट में जिस प्रकार से पक्ष–विपक्ष दोनों ने पाक की कश्मीर नीति के पक्ष में बयान दिये, वो भारत के संसद में नहीं दिखी, यहां के विपक्ष में रह रहे कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने ऐसे बयान दे दिये कि सदन में उपस्थित खुद उनके नेता ही अवाक् रह गये कि अधीर रंजन चौधरी ने क्या कह दिया।
जरा सुनिये अधीर रंजन चौधरी ने क्या कहा – “सरकार बताये, कश्मीर मसला यूएन देख रहा, तो वह आंतरिक कैसे” भला कश्मीर मुद्दे पर कोई भी राजनीतिज्ञ, वह भी सदन में, जिसका रिकार्ड होता हैं, इस प्रकार का बयान दें, तो इससे क्या झलकता है? इनसे लाख गुणे अच्छे कांग्रेस के जनार्दन द्विवेदी, मिलिंद देवड़ा, दीपेन्द्र हुड्डा, रंजीत रंजन, ज्योतिरादित्य सिंधिंया व भुवनेश्वर कालिता हैं, जिन्होंने जनभावनाओं का ख्याल रखते हुए, अपनी भावनाएं व्यक्त की तथा केन्द्र सरकार के निर्णय को सही ठहराया।
मैं तो कहता हूं कि अभी सोनिया गांधी या राहुल गांधी तथा कश्मीर को लेकर केन्द्र सरकार का विरोध कर रहे नेताओं को पता नहीं कि अभी पूरे देश की स्थिति क्या है? देश की जनता कश्मीर को लेकर पूर्व में कितनी चिन्तित थी और आज केन्द्र के निर्णय के बाद कश्मीर को लेकर कितनी आश्वस्त और प्रसन्न है।
कांग्रेस के नेताओं को यह पता ही नहीं कि बसपा और आप जैसी पार्टियों के नेता इस मुद्दे पर केन्द्र सरकार के साथ क्यों हैं? क्योंकि उन्हें पता है कि जहां उन्हें राजनीति करनी है, वहां की जनता का माइन्डसेट क्या है? पर कांग्रेस के बड़े नेता, अपने ही पार्टी के अंदर कश्मीर मुद्दे पर चल रहे घमासान को नजरदांज कर, विरोध के लिए विरोध की राजनीति पर उतर गये, और इसका खामियाजा उन्हें देश के अंदर भविष्य में होनेवाले विधानसभा चुनाव में भुगतना ही पड़ेगा और भुगतेंगे वे भी जो कांग्रेस के साथ जायेंगे यानी उन्हें भी नुकसान उठाना पड़ेगा।
शायद यहीं कारण रहा कि भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं ने इस संवेदनशील मुद्दे पर अपनी सरकार और अपने नेताओं को एकसूत्र में बांध कर रखा, कि कोई ऐसा न बयान दे दें, जो बाद में सरदर्द बनकर उभर जायें। भाजपा नेताओं व केन्द्र सरकार ने कश्मीर मुद्दे पर जो तत्काल निर्णय लिये, उस निर्णय से उसने बहुत को घायल किया।
जिसमें कश्मीर को लेकर मध्यस्थता का ख्याल रख रहे अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प, पाकिस्तान और देश की भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस प्रमुख रुप से शामिल है, हमें लगता है कि जितना नुकसान कांग्रेस ने धारा 370 को लेकर अपना किया है, उतना नुकसान आज तक कभी नहीं किया, कुल मिलाकर, ये कहां तक जाकर गिरेंगे, इन्हें नहीं पता, पता नहीं इनको दिमाग कौन देता है, जो संवेदनशील मुद्दे पर भी देश की जनभावनाओं का खिलवाड़ करने से नहीं चूकते।