अपनी बात

हेमन्त इन दिनों अगर चर्चा में हैं, तो कोई ऐसे ही नहीं, बल्कि उन्होंने काम ही कुछ ऐसा किया हैं

जरा दिमाग पर जोर डालियेगा, वह भी कुछ ज्यादा महीने नहीं, बल्कि छह महीने पहले चले जाइये, क्या होता था झारखण्ड में? राज्य के उस वक्त के मुख्यमंत्री रघुवर दास के आगे, हेमन्त सोरेन को झारखण्ड के विभिन्न जिलों से लेकर राजधानी तक की अखबारें भाव नहीं देती थी, यहां तक की चैनल और पोर्टलों तक से हेमन्त सोरेन को गायब करने-कराने का प्रयास किया जाता था, और आज क्या हो रहा है, उन सारे अखबारों-चैनलों व पोर्टलों में हेमन्त सोरेन छाये हुए हैं, आखिर क्यों?

उसका सही जवाब है, कि हेमन्त सोरेन ने काम ही कुछ ऐसा किया है, अब उनकी मजबूरी है, वो दिखाने और छापने की, क्योंकि जनता अब हेमन्त सोरेन के बारे में जानना और सुनना चाहती है, वो आज नायक के रुप में उभरे हैं, हेमन्त सोरेन को तो पता भी नहीं था कि सत्ता मिलते ही, एक ऐसी आपदा से उनका सामना होगा, जिस आपदा से पूरे विश्व के देश हिल चुके होंगे, उसमें भारत का एक छोटा सा राज्य झारखण्ड की क्या बिसात।

फिर भी हेमन्त सोरेन ने हार नहीं मानी, अपने ईमानदार अधिकारियों के साथ मिलकर योजनाएं बनाई, उसे मूर्तरुप दिया और देखिये कमाल, झारखण्ड कोरोना से लड़ भी रहा हैं, और श्रमिकों को उनका खोया सम्मान और उन्हें रोजगार के अवसर दिलाने के प्रयास पर काम भी चल पड़ा हैं, इसे कहते हैं दूरदृष्टि और योजनाबद्ध तरीके से काम करनेवाला व्यक्ति और व्यक्तित्व।

पूर्व में क्या होता था, तो केवल गप्पेबाजी और उन गप्पों को रटंत तोता की तरह अखबारों व चैनलों में स्थान मिल जाती और एक ऐसे व्यक्ति को जनता के सामने नायक की तरह पेश किया जाता, जो नायक था ही नहीं, अरे भाई वह व्यक्ति नायक कैसे हो सकता हैं, जो हाथी उड़ा दें, कनफूंकवों के कहने पर चले, भ्रष्ट अधिकारियों के साथ मिलकर मोमेंटम झारखण्ड करा दें, और उससे राज्य की जनता को भला होने के बजाय नुकसान हो जाये। यही नहीं, पूर्व वाले जनाब और उनके कनफूकवों ने तो वो लीलाएं रच दी थी कि अखबारों व चैनलों से नेता प्रतिपक्ष ही गायब हो गया था, और ये पाप यहां के अखबारों-चैनलों ने किया, जिसका परिणाम वे सारे के सारे इस कोरोना काल में भुगत रहे हैं।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो आज हेमन्त सोरेन की जगह भाजपा की सत्ता होती तो उसके शासनकाल में जन-सेवा का कार्य कम, पर अखबारों में मोदी और यहां का मुख्यमंत्री का फोटो रुपी विज्ञापन छाया रहता, अखबार व चैनल इस विज्ञापन से खुद को अनुप्राणित कर भाजपा शासन का जय-जयकार कर रहे होते और जनता अपने भाग्य पर रो रही होती, लेकिन आज स्थिति क्या है?

अखबारों व चैनलों में भले ही हेमन्त के विज्ञापन नहीं दिख रहे हो, पर काम ही ऐसा इस व्यक्ति ने कर दिया कि अखबारों व चैनलों की मजबूरियां हो गई, प्रशंसा करने की। आज हर जनता की जुबां पर हेमन्त सोरेन है, खासकर उन श्रमिकों के जुबां पर, जिन श्रमिकों ने कोरोना काल में अपने जीवन को दांव पर लगा दिया, जिन श्रमिकों के साथ लेह-लद्दाख में देश-सेवा के नाम पर इनका शोषण किया जाता था, पर आज स्थितियां बदली है, आज श्रमिक के चेहरे पर मुस्कान है।

देश का पहला राज्य झारखण्ड है, जहां के श्रमिकों के लिए तेलंगाना से हटिया तक के लिए पहली श्रमिक स्पेशल ट्रेन खुली। देश का पहला राज्य झारखण्ड बना, जहां के श्रमिकों ने प्लेन से यात्रा की। यानी वे लोग प्लेन पर चढ़े, जो किसी जिंदगी में प्लेन पर नहीं चढ़े और न चढ़ने की कभी आशा थी। अब बताइये ऐसे लोगों के दिल से निकलनेवाली दुआ, हेमन्त को कहां तक ले जायेगी। ये समझने की जरुरत है। आप किसी को नीचा दिखाने की कोशिश करेंगे तो ये अब नहीं चलेगा, जनता देख रही हैं, और अपने विचारों को रख रही है।

कभी बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद कहा करते थे कि अखबार मत पढ़ा करो, लेकिन हेमन्त सोरेन ने राज्य की जनता को कभी नहीं कहा, कि आप अखबार मत पढ़े, चैनल मत देखे, वह भी उस काल खण्ड में, जब हेमन्त सोरेन के नाम अखबारों व चैनलों में इक्के-दुक्के दिखते थे, या यो कहिये कि दिखते ही नहीं थे,अब ऐसा क्यों होता था, अखबारों-चैनलों पर उस वक्त के सरकार का दबाव या अन्य मजबूरियां, ये तो यही लोग बता सकते हैं, पर हेमन्त ने कभी अखबारों-चैनलों का विरोध नहीं किया।

लेकिन इतना तय है कि हेमन्त ने इस लगभग छह महीने के अपने शासनकाल में कोई दिखावे का काम नहीं किया, नहीं तो पूर्व की सरकारों ने तो 100 दिन में ही लगभग सैकड़ों काम के लटके-झटके भी पेश कर दिये थे, पर यहां तो हेमन्त के शासनकाल के कब 100 दिन पूरे हो गये किसी को पता ही नहीं चला, पर जनता को पता है कि इन 100 दिनों में हेमन्त ने उनके लिए क्या किया। वेलडन, झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरन।