अगर कांग्रेस चाहती है कि झारखण्ड में उसका जनाधार बढ़े तो सर्वप्रथम यहां से डा. अजय को आउट करें
सचमुच कांग्रेस अगर चाहती है कि उसका झारखण्ड में जनाधार बढ़े, तो सबसे पहले उसे यहां से झारखण्ड प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डा. अजय कुमार को बाहर करना होगा, क्योंकि बिना इनके यहां से आउट हुए, कांग्रेस का भला नहीं होनेवाला, क्योंकि न तो इनमें नेतृत्व करने की क्षमता है, न संगठन को मजबूत करने की ताकत।
सच्चाई यह है कि इनकी इतनी भी क्षमता नहीं कि ये अपने बलबूते पर एक छोटी सी जनसभा कर लें और उनकी जनसभा में लोगों की भीड़ जुट जाये, ऐसे में हवा-हवाई नेता डा. अजय कुमार के बलबूते पर आप झारखण्ड की विधानसभा चुनाव में बेहतर कर लेंगे, तो यह एक दिवास्वपन के अलावे कुछ भी नहीं।
सच्चाई यह भी है कि जब से इन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद संभाला हैं, कांग्रेस कार्यकर्ताओं व पुराने अनुभवी नेताओं में तल्खियां बढ़ी है, दूरियां बढ़ी है, लोग एक दूसरे को पसंद तक नहीं कर रहे, नतीजा लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद प्रदेश कार्यालय में गजब का सन्नाटा पसर गया है, जबकि चुनाव में हार-जीत लगे रहते हैं, कांग्रेस कार्यकर्ता हताश है, उनमें जोश व उत्साह का संचार करने का जिम्मा जिन पर हैं, वे अपने-अपने घरों में आराम फरमा रहे हैं, जबकि दूसरी ओर सत्तारुढ़ दल इसका फायदा उठाने में लगा है, वह अपने कार्यकर्ताओं को अगला टारगेट भी दे दिया कि उसे इस बार 65 से अधिक सीटें लानी है।
वह भी तब, जबकि इस रघुवर सरकार ने आम जनता को सिर्फ और सिर्फ त्रास ही दिया, उसे बोलने तक की तमीज नहीं, लूट-खसोट तो इतना चला है कि पूछिये मत, भूख से मौत होना तो यहां आम बात है, फिर भी ऐसी हालात में जब आप जोश खो देंगे तो होगा वहीं जो हमेशा होता आया है, एक बार फिर वह निकम्मा व्यक्ति मुख्यमंत्री बन जायेगा, जिसने झारखण्ड में हाथी तक उड़वा दिया। आम जनता एक विकल्प की तलाश में हैं, पर कांग्रेस उसके विकल्प के रुप में कही नजर नहीं आ रही, क्योंकि उसे लगता है कि डा. अजय कुमार उसके अपने नहीं।
झारखण्ड हमेशा से बाहरी-भीतरी की राजनीति का शिकार रहा है, यहां हर क्षेत्र में, प्रमुख स्थानों पर बाहरियों का कब्जा हैं, इस कारण झारखण्ड के आदिवासियों-मूलवासियों को लगता है कि भाजपा के तर्ज पर कांग्रेस ने भी बाहरी लोगों को यहां प्रमुख पद पर बैठाना शुरु कर दिया है, ऐसे में वे कांग्रेस के पक्ष में क्यों जाये, अब सवाल उठता है कि क्या झारखण्ड में कांग्रेसी नेताओं का अभाव है, क्या वे पूर्णतः अयोग्य है, उनके पास इतनी क्षमता भी नहीं कि वे झारखण्ड में कांग्रेस को मजबूत कर सकें।
दरअसल झारखण्ड कांग्रेस में आदिवासियों, अल्पसंख्यकों व पिछड़े वर्ग से आनेवाले नेताओं की एक अच्छी तादाद है, पर शीर्षस्थ नेतृत्व ने उन्हें खुलकर काम करने का मौका ही नहीं दिया, ज्यादातर चापलूसों, चाटुकारों से घिरे इन नेताओं ने अपने कान कच्चे रखने के कारण ऐसे लोगों को मौका दिया, जो पूर्णतः अनफिट थे, ऐसे में अब चूंकि विधानसभा चुनाव के समय नजदीक आते जा रहे हैं।
ऐसे में जितना जल्द हो सकें, शीर्षस्थ नेतृत्व एक ऐसे स्थानीय नेतृत्व के जिम्मे झारखण्ड को लगा दें, जो महागठबंधन के साथ-साथ कांग्रेस को भी इस स्थिति में ला दें, जिससे कांग्रेस आनेवाले समय में एक बेहतर स्थिति में हो, नहीं तो डा. अजय कुमार जितना दिन कांग्रेस में रहेंगे, झारखण्ड में उसका खूंटा और कमजोर होता चला जायेगा और एक दिन ऐसी भी स्थिति होगी, कि लोग कांग्रेस को सदा के लिए भूल जायेंगे।