झारखण्ड की सत्ता में बैठे दो मुस्लिम मंत्रियों की बदजुबानी पर लगाम नहीं लगाया गया तो जिनकी आज सत्ता है, उन्हें भविष्य में फिर से सत्ता मिलेगी ही, इसकी संभावना आज ही खत्म मानिये
झारखण्ड की सत्ता में बैठे दो मुस्लिम नेता ऐसे हैं, जो संयोग से मंत्री पद पर भी विराजमान हैं, जो क्या बोलते हैं, उनके बोलने का क्या प्रभाव पड़ेगा, पार्टी और सरकार पर उसका क्या असर पड़ेगा, उनसे उन्हें कोई लेना-देना नहीं। उनकी बेकार की बातों से पार्टी तो असहज होती ही हैं, समाज और राज्य का ताना-बाना भी कमजोर होता हैं। लेकिन इसकी परवाह इन दोनों को नहीं हैं।
इन दोनों के पिता भी कभी सत्ता का रसास्वादन कर चुके हैं। इन दोनों के पिता के मुख से कभी भी राज्य व समाज में आग लगानेवाली बातें हमने कभी नहीं सुनीं। लेकिन इन दोनों को देखिये तो सदन के अंदर हो या बाहर वे अपनी हरकतों और बातों से ये बतलाना नहीं भूलते कि वे दोनों कितने बड़े काबिल हैं।
एक मंत्री जी, जो इन दिनों अपनी हरकतों व बोल-बच्चन से काफी चर्चे में हैं, इनकी कबिलाई को हाल ही में सदन में प्रदीप यादव ने छुड़ाई थी, जब मंत्री जी सदन में ही मोबाइल से बाते कर रहे थे। जिसकी वजह से प्रदीप यादव को अपनी बातें सदन में रखने में दिक्कतें आ रही थी। स्थिति उस वक्त ऐसी हो गई कि स्पीकर ने उक्त मंत्री की मोबाइल जब्त तक करवा दी।
लेकिन शर्म तो उसे होती हैं, जिनके पास शर्म होता है। इन्हें तो ये भी नहीं पता कि जिस सत्ता का रसास्वादन ये कर रहे हैं। उस सत्ता को प्राप्त करने के लिए उनके दल के नेता हेमन्त सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन को कितने पापड़ बेलने पड़े। इनकी इन्हीं हरकतों के कारण विद्रोही24 ने इनसे कभी बात करना भी जरुरी नहीं समझा।
ऐसे लोगों से क्या बात करना, जो खुलकर कहता है कि उसके लिए शरीयत सबसे बड़ा है, कुरान सीने में रखता है और संविधान हाथ में लेकर चलता है। अरे ये तो आप नहीं भी कहते तो पूरा देश और विश्व जान रहा है कि आपलोगों के सीने और हाथ में क्या रहता है। वो तो आज बंगाल के मुर्शिदाबाद में जो हिन्दू भागकर दूसरे स्थानों में जाकर रहने को विवश हो रहे हैं।
वो तो बता ही रहा है कि आपलोग कितना संविधान के प्रति प्रेम रख रहे हैं। आपके दिलों में रहनेवाली जो कट्टरतावाली सोच हैं। उसे कट्टरतावाली सोच के बारे में किसे पता नहीं हैं। क्या उस दल के लोगों को पता नहीं हैं, जहां से आपकी राजनीति चलती है या दूसरे दलों व सामाजिक संगठनों या वामपंथी संगठनों के लोग नहीं जानते हैं। सभी जानते हैं। लेकिन ये चुप्पी साध लेते हैं, क्योंकि मामला सब वोट का हैं।
जिस दिन वोट वाला मामला हटा, तो फिर आप देख लीजिये। आपके बोल भी बदल जायेंगे। बांगलादेश तो धर्मनिरपेक्ष ही राष्ट्र था, वहां जब से शेख हसीना हटी हैं। वहां हिन्दूओं के साथ क्या हो रहा हैं? क्या वहां का संविधान हिन्दूओं पर अत्याचार करने की बात करता हैं, नहीं न। लेकिन सच्चाई हैं कि वहां हिन्दूओं का कत्लेआम हुआ है और आज भी जारी है।
पाकिस्तान जिसे जिन्ना ने बनवाया। उनके शासनकाल में भी तो पाकिस्तान धर्मनिरपेक्ष ही था। लेकिन कालांतराल में इस्लामिक राष्ट्र बन गया और वहां आज हिन्दूओं की क्या स्थिति है? 26 प्रतिशत से घटकर एक प्रतिशत हो गये। आखिर ये कैसे हुआ? भारत के कश्मीर में ही हिन्दू अब क्यों नही हैं? ये सारे प्रश्न बताते हैं कि आपका शरीयत के प्रति जो प्रेम हैं, वो सारी आशंकाओं को जन्म देता हैं।
भारत की जनता जान चुकी है कि धर्मनिरपेक्षता की आड़ में यहां क्या चल रहा हैं। लेकिन बेचारी क्या करें। उसके नेता ही इतने बड़े वोटों के सौदागर हैं कि वो वोट की लालच में पीसकर भारत में वो भी अपने देश में अपने बेटियों की इज्जत बचाने के लिए इधर से उधर भाग रहे हैं। अरे मंत्री जी, आप लगे हाथों ये बताओं न, कि क्या मुर्शिदाबाद के हिन्दूओं ने वक्फ संशोधन बिल लाया था, जिसको लेकर तुम्हारी कौम के लोग उन पर हमले कर रहे हैं। उनके घरों में आग लगा रहे हैं। कई के मौत के घाट उतार दिये हैं। उनका जीना मुहाल कर दिया है।
अगर आज नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने आपके खिलाफ बयान दिये हैं तो वो कही से भी गलत नहीं है। खुशी इस बात की भी है कि अब कई पत्रकारों को भी नींद टूटी हैं और उन सबने आपके बयान की कड़ी आलोचना की है। हालांकि उसके पोस्ट पर आपकी सोच का समर्थन करनेवालों ने उसे भला-बुरा कहा है। लेकिन बधाई दूंगा उस पत्रकार को, कम से कम उसने सच तो लिखा।
और अब बाबूलाल मरांडी का बयान पढ़िये – मंत्री हफ़ीजुल हसन के लिए संविधान नहीं, शरीयत मायने रखता है, क्योंकि ये अपने ‘लक्ष्य’ के प्रति स्पष्ट हैं और सिर्फ अपने कौम के प्रति वफादार…। चुनाव के समय इन्होंने गरीब, दलित, आदिवासियों के सामने हाथ जोड़कर वोट मांगा और अब अपना इस्लामिक एजेंडा चलाने की कोशिश कर रहे हैं।
हफ़ीजुल की यह कट्टर सोच पूरे प्रदेश विशेषकर संथाल परगना की सांस्कृतिक पहचान और आदिवासी अस्मिता के लिए खतरा बनती जा रही है। संवैधानिक पद पर बैठा कोई भी व्यक्ति यदि कट्टरपंथी विचारधारा को बढ़ावा देता है, तो वह न सिर्फ वर्तमान, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी खतरा उत्पन्न करता है। इस विषय में राजनीतिक सीमाओं से ऊपर उठकर सभी पक्षों के नेताओं को आत्ममंथन करने की जरूरत है। शरीयत, बाबासाहब द्वारा रचित संविधान की मूल भावना के विपरीत है। यदि राहुल गांधी और हेमन्त सोरेन में संविधान के प्रति सच्ची आस्था है, तो उन्हें तुरंत हफ़ीजुल हसन को मंत्रिमंडल से बर्खास्त करना चाहिए।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो ऐसे मंत्रियों पर लगाम नहीं लगाया गया, तो जिन दलों में ये नेता पाये जा रहे हैं। ये उस पार्टी को समूल नष्ट करके ही दम लेंगे तथा भाजपा के लिए खाद-पानी का काम करेंगे, क्योंकि जनता जब इनकी सोच को देखेंगी और जानेंगी तो वो शरीयत के अनुसार चलने के लिए तैयार तो नहीं ही होगी। उसे तो आज भी संविधान ही प्यारा है।
आज तक किसी हिन्दू नेता ने तो नहीं कहा कि उसके लिए हिन्दू धर्मग्रंथ का फलां पुस्तक ही प्यारा है। उसके लिए तो आज भी एक ही मंत्र हैं – जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी। लेकिन इस सुंदर पंक्तियों का अर्थ कौन जानेगा। जानेगा वहीं जिसका हृदय पवित्र हैं। जिसके दिल में कादो-कीचड़ पहले से ही विद्यमान हैं, उससे बेहतर की कामना ही मूर्खता है। यह सब देखकर, मुझे ये कहने में कोई गुरेज नहीं कि अगर ऐसे लोगों पर लगाम नहीं लगाया गया, इन्हें बाहर का रास्ता नहीं दिखाया गया तो जो दल आज सत्ता में हैं। अगली बार आप सत्ता में रहेंगे ही, इसकी गारंटी कोई नहीं दे सकता।
अंत में इस देश का दुर्भाग्य देखिये, कि जिस व्यक्ति को भारतीय संविधान के निर्माण का श्रेय दिया जाता हैं। आज उसी व्यक्ति का जन्मदिन हैं और उन्हीं के जन्मदिन पर, उन्हीं के संविधान को दिलों से उतारकर हाथ में रखने की बात की जा रही हैं। वो भी उस व्यक्ति के द्वारा जो संविधान की ही शपथ लेकर सत्ता का रसास्वादन कर रहा हैं। इस देश के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है?