नेता/मंत्री अगर सोशल डिस्टेन्स पर ध्यान न दें तो उसका बैंड बजा दो और पत्रकार ऐसा करें तो?
भाई, सवाल तो है, नेता/मंत्री अगर सोशल डिस्टेन्स पर ध्यान न दें या उसका पालन न करें तो आप उसका बैंड बजा देते हैं, और यही काम अखबार/चैनल/पोर्टल के जिम्मेदार पत्रकार लोग करें तो उनका क्या करना चाहिए? क्या नेता/मंत्री और पत्रकार के जिस्मों के बीच कोरोना विभेद करता है? वह सिर्फ नेता व मंत्री को निशाना बनाता है और उसके बाद वह जनता तक पहुंच जाता हैं या यह कोरोना किसी को भी अपनी चपेट में ले सकता हैं।
अरे भलेमानस, सोशल डिस्टेन्स को अपनाने की जिम्मेदारी तो सबकी है, साथ ही इस ओर विशेष ध्यान देने की उनकी भी हैं, जो सोशल डिस्टेन्स के नाम पर नेताओं/मंत्रियों को तो निशाने पर लेते हैं, पर खुद जो करते हैं, उन पर उनका ध्यान नहीं जाता और न ही शर्म आती है।
मैं रांची में ही कई लोगों को देख रहा हूं जो एनजीओ चलाते/चलाती हैं और इसकी आड़ में पत्रकारिता भी खुब कर रहे हैं तथा अपने परिवार और मित्रों को खुलकर सपोर्ट कर रहे हैं? क्या ऐसा करनेवाले लोग पत्रकार हैं? और जब ये पत्रकार हैं तो फिर असली पत्रकार हम किसको कहेंगे? आखिर ऐसा कर, आप किसको धोखा दे रहे हैं?
शायद रांची के रणबांकुड़ों-पत्रकारों को नहीं मालूम की उनका जीवन, भले ही उनके संस्थानों जिसके लिए वे काम करते हैं, उन संस्थानों के लिए प्रिय न हो, पर अपने परिवार के लिए वे बहुत ही बेशकीमती हीरे हैं, क्योंकि उनके घर की खुशियां उन्हीं पर केन्द्रित है। जान लीजिये, अगर आपको कुछ हो गया, तो जिस संस्थान के लिए आप विजुयल ले रहे हैं या फोटोग्राफी कर रहे हैं, वे ही संस्थान सबसे पहले आप से किनारा करेंगे और ये कहने से भी हिचकेंगे कि आप उक्त संस्थान से कभी जुड़े थे।
ऐसी घटना रांची में कई छायाकारों के साथ हो चुकी हैं, जब वे छायाकार गर्दिश में थे, या मृत्यु को प्राप्त हुए तो संस्थान ने उनसे मुंह मोड़ लिया, यही नहीं मरणोपरांत अपने अखबार में नाम तक नहीं छापा, अगर नहीं जानकारी हो, तो जानकारी प्राप्त कर लीजिये। ऐसी कई घटनाएं रांची में ही नहीं, अन्य जगहों पर भी घटित हो चुकी है।
अब बात कोरोना के दहशत की, मैं देख रहा हूं कि चीन के वुहान से होते हुए इटली, स्पेन, अमरीका, जर्मनी, ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान आदि देशों में तहलका मचाते हुए, कोरोना भारत के झारखण्ड जैसे छोटे राज्य में भी अपनी धमाकेदार उपस्थिति दर्ज करा दी है, फिर भी इन पत्रकारों/छायाकारों को समझ नहीं आ रहा, वे समझ रहे है कि मुंह पर मास्क बांध लिया और बच गये।
अरे भाई पत्रकारों के लिए भी कुछ नियम व कायदे-कानून विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जारी किये हैं, कैसे फोटो लेने हैं? कितनी दूरी अपनानी है? कैसे खुद का बचाव करना है? इन सारी बातों पर उसकी स्पष्ट राय हैं, पर सच्चाई है कि आप अपने स्वास्थ्य और अपने परिवार के प्रति लापरवाह हैं।
आप खुद देखिये, जिस संस्थान के लिए आप काम कर रहे हैं, वे अपने लोगों को घर से बैठकर रिपोर्टिंग करने को कह दिया हैं, पर आप इस बारीकी को भी नहीं समझ रहे, ये सही है कि फोटो लेना आपका धर्म है, पर खुद को दांव पर लगाकर, जो काम आसानी से हो सकता है, उसके लिए मजमा लगाने की क्या जरुरत? यहां कौन सा सर्टिफिकेट मिलनेवाला है? और वह भी उस संस्थान के लिए जो आपका कभी नहीं होगा?
आप खुद सोचिये, केन्द्र सरकार ने डाक्टरों, स्वास्थ्यकर्मियों, सफाईकर्मियों के लिए स्पेशल बीमा करवा दी हैं, पर आप कहां है? और रहेंगे भी क्यों? क्योंकि आप जिनके लिए काम करते हैं, उन संस्थानों ने आपके हक के लिए आवाज ही उन तक नहीं पहुंचाई, जो ऐसे वक्त में निर्णय लेते हैं, अरे अभी भी वक्त है, ज्यादा कुछ नहीं, इन संस्थानों से आप ये ही कह दीजिये कि वो आपके लिए वो जरुरी संसाधन उपलब्ध करा दें, जो संसाधन स्वास्थ्यकर्मियों को उपलब्ध है, क्योंकि आप भी तो वैसे जगहों पर काम कर रहे हैं, जहां कोई भी कोरोना पोजिटिव हो सकता हैं, पर आज तक आपके संस्थान ने ऐसा तो नहीं किया।
इसलिए अभी भी वक्त है, कि खुद को संभालिये, किसी लल्लो-चप्पो में मत पड़िये, ज्यादा खुशफहमी मत पालिए, इस घमंड में मत रहिये कि आप बहुत बड़े तोप हो गये हैं। ये कोरोना का समय हैं, इसे पहचानिये आप भी सोशल डिस्टेन्स व लॉकडाउन का ध्यान रखिये, अपने आप को स्वस्थ रखने का प्रयास करिये, क्योंकि इसी रांची में एक अच्छा पत्रकार, जैसे ही अपने इलाज के लिए स्वास्थ्य केन्द्र पहुंचा, उसके साथ कैसा व्यवहार हुआ और वह बेचारा उस वक्त किन परिस्थितियों से गुजरा, ये वहीं जानता हैं, मैं तो प्रार्थना करता हूं कि आप सभी स्वस्थ रहे, कोरोनामुक्त वातावरण में जल्द आनन्दित होकर अपने कार्य को अंजाम दे, इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं कह सकता। ऐसे भी आपलोग बहुत बुद्धिमान है।
सहमत,सावधानी ही बचाव है