अपनी बात

अगर भाजपा के शीर्षस्थ नेता यह सोचते हैं कि हाथी उड़ानेवाले रघुवर दास को पुनः प्रदेश में प्रतिष्ठित कर देने से वे मजबूत हो जायेंगे, तो ऐसे में हम यही कहेंगे कि उन्हें गलतफहमी में रहने का उनका जन्मसिद्ध अधिकार है

जब से रघुवर दास ने ओडिशा के राज्यपाल से स्वयं को मुक्त किया है, तथा भाजपा की सक्रिय राजनीति करने का ऐलान किया है। तभी से उनके चाहनेवाले व शोषकों का समूह ही नहीं, बल्कि हाथी उड़ानेवाले व कनफूंकवों के समूहों में भी नाभिकीय ऊर्जा का संचार हो गया है। वे अपनी नाभिकीय ऊर्जा से पूरे राज्य को आगोश में लेने को तत्पर है। अभी से ही बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, चम्पाई सोरेन जैसे भाजपा के प्रदेशस्तर के नेताओं को ठिकाने लगाने की सोचने लगे हैं।

यहीं नहीं, जमशेदपुर पूर्व से नई-नई विधायक बनी पूर्णिमा साहू दास के ससुर, ओड़िशा के राजभवन में एक अधिकारी की पिटाई कर अपनी शान बढ़ानेवाले होनहार पुत्र ललित दास के पिता तथा सत्ता आने पर किसी को भी कुछ नहीं समझनेवाले आदि विशिष्ट गुणों से युक्त व हाथी उड़ाने में सबसे आगे रहनेवाले रघुवर दास को लेकर भाजपा के कट्टर समर्थक पत्रकारों में भी उत्साह देखा जा रहा है। कई पत्रकार तो रघुवर दास को देखकर इतने भावुक हो जा रहे हैं कि उनके आंखों से आंसू तक निकल जा रहे हैं।

रांची व जमशेदपुर से निकलनेवाले अखबारों व इनके कृपापात्र पत्रकारों ने मोर्चा संभाल लिया हैं। स्थिति ऐसी बना दी गई है कि जैसे लगता है कि अभी चुनाव हो तो भाजपा 81 की 81 सीटें जीत लेंगी। लेकिन राजनीतिक पंडितों का कहना है कि अब भाजपा जितना भी मगजमारी कर लें। अब वो कभी भी झारखण्ड की सत्ता में निकट भविष्य में नहीं आनेवाली है, क्योंकि भाजपा का झारखण्ड में पिण्डदान कर देनेवाला कोई अगर शख्स था तो यह हाथी उड़ानेवाले महाशय रघुवर दास ही थे, दूसरा कोई नहीं था।

अगर भाजपा के शीर्षस्थ नेता यह सोचते हैं कि रघुवर दास के पुनः भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बना दिये जाने से भाजपा प्रदेश में मजबूत हो जायेगी तो हर भाजपा के केन्द्र व प्रदेश के नेताओं को गलतफहमी पाले रहना, उसका जन्मसिद्ध अधिकार है। लेकिन सच्चाई यह है कि झामुमो की नेत्री कल्पना सोरेन और मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने झारखण्ड में अपने कार्यों से ऐसी लकीर खींच दी है कि इस लकीर को मिटा पाना रघुवर क्या, किसी भी भाजपा नेता के वश की बात नहीं।

राजनीतिक पंडित साफ कहते है कि भाजपा के उपर जो वर्तमान चुनाव के दौरान भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा ही जो दाग लगाये गये और अब जो अखबारों मे उसके दाग की प्रतिलिपियां छप रही हैं। वो बताने के लिए काफी है कि भाजपा कब की रसातल में जा चुकी है। स्थिति तो ऐसी है कि भाजपा, झामुमो के आस-पास नहीं दिखती। रघुवर दास की ही कृपा है कि आज सवर्ण भी भाजपा से बिदककर झामुमो के साथ निकल पड़े हैं।

ये वहीं रघुवर दास है, जिसने गढ़वा में ब्राह्मण समाज के खिलाफ विषवमन किया था। जिसका प्रभाव यह पड़ा कि गढ़वा के ब्राह्मणों ने 2019 के चुनाव में गढ़वा विधानसभा सीट पर भाजपा को बुरी तरह से हराया और वहां से मिथिलेश कुमार ठाकुर चुनाव जीत गये। यही नहीं पूरे प्रदेश से भाजपा साफ हो गई। राजनीतिक पंडित तो साफ कहते है कि उस वक्त रघुवर दास को उसके जाति के अलावा कोई दूसरा व्यक्ति दिखता ही नहीं था। उसके जाति की कही भी सभा होती तो ये उड़कर उस प्रदेश में जा पहुंचता और अपनी ही जाति की बात करता। चाहे वो जातीय रैली, दिल्ली में हो, पटना में हो या गुमला में हो या रायपुर में हो या महाराष्ट्र के किसी कोने में हो। यह दृश्य सारी जनता ने यहां देखी हैं।

आश्चर्य तो यह है कि यह व्यक्ति इतना अहंकारी हो गया था और यह अहंकार में अपने कनफूंकवों के कहने पर ऐसा-ऐसा निर्णय ले लिया करता था कि उस निर्णय ने भाजपा के कार्यकर्ताओं की चूलें हिला दी, तभी तो जब रांची के धुर्वा में संघ के पदाधिकारियों और कट्टर समर्थकों/कार्यकर्ताओं की विशेष बैठक हुई, तो इस बैठक में शामिल तो रघुवर दास भी हुए थे और उस बैठक में संघ के वरीय पदाधिकारियों के आह्वान के बावजूद स्वयंसेवकों ने निर्णय लिया कि बस इनका इलाज कर देना है और इलाज कर दिया गया। चुपेचाप चचा साफ का नारा देकर, रघुवर दास को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

आश्चर्य है कि संघ के स्वयंसेवक और भाजपा के कार्यकर्ताओं ने अपने प्रदेश व केन्द्र के नेताओं को इस निर्णय की भनक तक लगने नहीं दी। लेकिन विद्रोही24 को इस बात की भनक थी। सारे अखबार व चैनल रघुवर के आगे नतमस्तक थे। हाथी उड़ाने में दिलचस्पी ले रहे थे। स्थिति ऐसी हो गई थी कि झारखण्ड के सभी राजकीय कार्यालयों में रंगबिरंगा उड़ता हाथी का शीशा मढ़ाया हुआ फोटो टंगवाया जा रहा था।

लेकिन इनके जाते ही वो रंगबिरंगा उड़ता हाथी कहां गायब हुआ, किसी को पता भी नहीं चला। लेकिन रघुवर के फिर राजनीति में सक्रिय होने से हाथी उड़ानेवाले व झारखण्ड को मटियामेट करनेवाले लोग फिर सक्रिय हो उठे हैं। लेकिन उन्हें नहीं पता कि अब भाजपा के लिए झारखण्ड में सत्ता पाना दिल्ली दूर वाली लोकोक्ति हो गई हैं। इसलिए कनफूंकवें व हाथी उड़ानेवाले नेता या उनके समर्थक जितना भी जोर लगा लें। अब वे यहां सफल नहीं होंगे।

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