गरीब का बेटा हो तो धनबाद के भाजपा प्रत्याशी ढुलू महतो जैसा, जो अपनी अकूत संपत्ति की रक्षा के लिए नौ-नौ हथियार, वो भी तीन अपने नाम से, तीन पत्नी के नाम से और तीन भाई के नाम से रखें
भाई गरीब का बेटा हो तो धनबाद के भाजपा प्रत्याशी ढुलू महतो जैसा, जो अपनी अकूत संपत्ति की रक्षा के लिए नौ- नौ हथियार, वो भी तीन अपने नाम से, तीन अपनी पत्नी के नाम से और तीन अपने भाई के नाम से रखें। भाई गरीब का बेटा हो तो धनबाद के भाजपा प्रत्याशी जैसा जो अपराध का रिकार्ड बनाये और गर्व से लोकसभा के प्रत्याशी के रुप में नामांकन दर्ज कराये तो उसका शपथ पत्र भी दायर करें, साथ ही यह भी कहें कि वो सजायाफ्ता है, ताकि उसे चुनने में धनबाद के मतदाताओं को दिक्कत न आये। भाई गरीब का बेटा हो तो धनबाद के भाजपा प्रत्याशी जैसा जो अपने परिवार के नाम से बनाई गई अकूत संपत्ति को इस प्रकार दर्शाएं, जैसे लगता हो कि गरीब का बेटा ऐसा ही होता है।
भाई, आप कहेंगे कि क्या जरुरत पड़ गई, विद्रोही24 को गरीब का बेटा शब्द ढुलू महतो के लिए लिखने की, क्योंकि ये हर बात में कहते है कि जब से गरीब के बेटा को टिकट मिला है, अन्य लोगों के पेट में दर्द होने लगा हैं। दरअसल वो इसलिए भी लिखने की पड़ गई कि वे खुद ही हर जगह स्वयं को गरीब का बेटा कहने से नहीं चूकते, वे ऐसा कहकर गर्व महसूस भी करते हैं और उनके लोगों के लिए तो ये तीन शब्द तकिया कलाम या जुमला है। ढुलू महतो यानी गरीब का बेटा और ये गरीब का बेटा का जूल्म कितना बड़ा है। इसकी गूंज धनबाद के रणधीर वर्मा चौक से लेकर भाया रांची के गवर्नर हाउस होते हुए झारखण्ड के विधानसभा तक पहुंचती है कि इन्होंने कौन-कौन से गुल खिलाये हैं?
हाल ही में अगर भाकपा माले विनोद सिंह ढुलू महतो के एक गंदी हरकत को विधानसभा में नहीं उठाये होते, तो आज भी अशोक महतो का परिवार इस भीषण गर्मी में रणधीर वर्मा चौक पर धरना देने के लिए विवश होता और अगर उसे धरना नहीं दिया जाता तो वो आज घूंट-घूट कर मर रहा होता, क्योंकि उसकी घर का बिजली और पानी का कनेक्शन इन महाशय की कृपा से काट दिया गया था। आज भी चिटाही गांव के कई परिवारों की जमीनें कब्जा कर ली गई है।
लेकिन यहां किसी का सुनता कौन है? गरीब-गरीब चिल्लाये जाइये, पिस्टल, राइफल्स व गन की संख्या बढ़ाते जाइये और इसी के बल पर जितनी भी संपत्ति हैं, सभी पर अपना कब्जा जमाते रहिये और जयश्रीराम बोलते रहिये, चिटाही धाम में रामराज मंदिर बना दीजिये, मस्ती काटते रहिये। फिर देखिये कैसे राम-राम चिल्लानेवाली पार्टी आपको विधानसभा से विधायक के बाद लोकसभा से सांसद और फिर मंत्री बनाने में कैसे दिमाग लगाती है। ऐसे भी मोदी, शाह और ढुलू एक ही जाति/वर्ग से आते हैं। कोई ज्यादा का दूरी भी नहीं हैं।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो एक समय था कि लोग अपराध करने से डरते थे। पिस्टल रखना भी गंदा समझा जाता था। लोग कहते थे कि एक शरीफ को पिस्टल से क्या मतलब? लेकिन अब तो ये सब गंदे लोगों के आभूषण बन गये हैं और इन्हीं आभूषणों से अपना साम्राज्य चलाते हैं। अपनी सेना बनवाते हैं, धनबाद में ढुलू महतो की भी एक अपनी सेना है, जिसे बोला जाता है – टाइगर सेना। फिर चलता है – आतंक का साम्राज्य।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो चुनाव आयोग को दिया जानेवाले शपथ पत्र इन्हीं सभी पर रोक लगाना था ताकि कोई राजनीतिक दल ऐसे लोगों को प्रत्याशी नहीं बनाये, जिनका इस प्रकार का चरित्र है। लेकिन जब पं. दीन दयाल उपाध्याय, डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पार्टी, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे सहृदय व्यक्ति व लाल कृष्ण आडवाणी की पार्टी में ऐसे महान आत्माओं का पदार्पण हो तो समझ लीजिये कि भाजपा किस ओर चल पड़ी है और इसका अंतिम इरादा क्या है?
ऐसे ही भाजपा के एक नेता ने नहीं कह दिया था कि हो सकता है कि पार्टी को या शीर्षस्थ नेताओं को आपके यहां खड़े दल के प्रत्याशी के बारे में ज्यादा जानकारी न हो, लेकिन आपको तो जानकारी है, आप अपना इरादा मजबूत करिये और ऐसे लोगों को सबक सिखाइये ताकि कोई दुबारा ऐसे प्रत्याशी को टिकट देने में दस बार सोचें। लेकिन जब आपही ऐसे लोगों को जितायेंगे तो उधर से परिणाम भी ऐसा ही आयेगा। आपको पिस्टल वाले ही प्रत्याशी मिलेंगे, कोई सहृदय कवि या साहित्यकार या मां-बहन को सम्मान करनेवाला प्रत्याशी नहीं मिलेगा। चिन्तन मतदाताओं को करना है, न कि भाजपा जैसी दलों को।