अपनी बात

MLA बनो तो बन्ना गुप्ता या इरफान अंसारी जैसा, सरयू राय या बिनोद सिंह जैसा विधायक कभी मत बनना, क्या समझे?

खुब, वो भी बेमतलब का हल्ला-गुदाल करिये, विधानसभा के बाहर ठुमके लगाइये, अपने घर या किसी दुकान से झाल-करताल-ढोल लाकर भजन करिये, हो सके तो सदन में मेज पर चढ़ जाइये, स्पीकर और अपने सहयोगियों के साथ बेमतलब का बहस करिये, फिर देखिये ये अखबार और चैनल वाले कैसे नहीं आपको अपने यहां जगह देते हैं?

आजकल के अखबार व चैनल में काम करनेवाले कुछ लंगूर टाइप के संपादक व पत्रकार भी यही सब न्यूज चाहते है, नहीं तो जिस दिन सत्यनिष्ठ व सदन के मूल्यों के प्रति निष्ठा रखनेवाले संपादकों व पत्रकारों की टीम सदन में आ गई, आप मान लीजिये, आप जैसे माननीय कही के नहीं रहेंगे।

इधर देखा जा रहा है (केवल झारखण्ड विधानसभा की ही बात नहीं) कि इसके कारण विभिन्न विधानसभाओं में ऐसी-ऐसी स्थितियां उत्पन्न हो जा रही है कि लगता है कि अब विधानसभा नहीं मछली घर बन गया। उत्तरप्रदेश में कभी इन्हीं सभी बातों को लेकर जूतम-पैजार तक हो चुके है। क्या सदन इसी के लिए होता है? जरा चिन्तन करिये। चिन्तन वो भी करें जो जनता के वोटों से चुनकर आते हैं और चिन्तन वो भी करें जो जनता को सही संदेश देने की हामी भरते हैं।

मैं पूछता हूं कि सरयू राय, विनोद सिंह या अन्य वैसे विधायक जो शांतचित्त होकर अपनी बातें सदन में उठाते हैं। आसन का सम्मान करते हैं, वे गलत हैं और वे लोग सही है, जो बेमतलब का शोर-शराबा, ड्रामेबाजी, नौटंकी कर सदन के महत्वपूर्ण समय को नष्ट करते हैं, अगर यही सोच हैं सबकी तो कम से कम में तो इस सोच को ही दूर से प्रणाम करता हूं।

सदन बहस करने की जगह है, सदन जनता की समस्याओं को केन्द्र में लेकर योजना बनवाने की जगह हैं, पर यहां हो क्या रहा है, मुट्ठीभर विधायकों की गलत कार्यों से पूरा सदन प्रभावित हो रहा है, जरा सत्तापक्ष और विपक्ष चिन्तन करें कि जो इस बार का पांच दिन का मानसून सत्र चला, उसमें कितने दिन शांति बनी रही?

क्या शांति के साथ आपलोग सदन नहीं चला सकते? जब देश धर्मनिरपेक्ष हैं तो एक समुदाय विशेष के लिए नमाज कक्ष की इतनी आवश्यकता क्यों? अगर किसी माननीय को लगता है कि उनका धर्म ही, उनके लिए सर्वाधिक जरुरी हैं, तो उन्हें कौन रोक रहा हैं, विधानसभा से त्यागपत्र देकर अपने धर्म के अनुसार जीवन जीये, और अगर धर्मनिरपेक्षता की धज्जियां ही उड़ानी है तो फिर सदन को मंदिर, मस्जिद और चर्च में ही बदल दीजिये।

दुख होता है यह देखकर, कि कुछ माननीयों की गलत कार्यप्रणाली ने सदन की मर्यादा व गरिमा को कलंकित करना शुरु किया है, इस पर जितना जल्दी रोक लगे, तो अच्छा रहेगा। हमें लगता है कि स्पीकर को इसके लिए विशेष प्रशिक्षण की व्यवस्था करनी चाहिए, जिसमें संविधान विशेषज्ञ तथा अपने कार्यप्रणालियों से सदन के सम्मान को बढ़ानेवालों को इसमें शामिल किया जाय, वे इन्हें बताये कि सदन में कैसे बैठना चाहिए और कैसे अपनी बातों को रखना चाहिए।

कांग्रेस पार्टी के दो विधायकों में से, जिसमें एक इरफान अंसारी हैं उन्होंने तो अपनी गत बना ली है, कई बार समझाया उन्हें, पर उन्हें लगता है कि उन्होंने न समझने की कसम खा ली है और दूसरे हैं स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता, क्या जरुरत थी बात की बतगंड़ बनाते हुए टेंपों चलाकर विधानसभा आने की और जब विधानसभा टेंपों से आ गये तो पीछे-पीछे अपनी कार मंगवाने की क्या जरुरत थी?

जाते भी टेंपों से या घर पर ही अपनी कार छोड़ देते। दरअसल ये सारे लोग जनता को मूर्ख बनाते हैं, यह दिखाकर कि उनके साथ गलत हो रहा है, उनके साथ शोषण हो रहा है, जबकि इनकी सोच राजनीतिक माइलेज लेने के सिवा दुसरा कुछ होता ही नहीं, बस वहीं इसी बहाने चैनल और अखबारों के प्रथम पृष्ठ पर कम से कम फोटो तो छपेगी, चैनल पर बहस के नाम पर जय-जय तो होगी। तो भाई ऐसी सोच वाले जहां विधायक और पत्रकार/संपादक होंगे तो वहां जनता को मरने के सिवा किस्मत में और क्या लिखा है? कोई ज्यादा जानता हो, तो बताएं हमें।