अपनी बात

अगर आप शास्त्र व धर्म को मानते हैं तो आप 30 अगस्त को रक्षाबंधन मनाइये और अगर आप इन सबसे उपर हैं तो किसी भी दिन रक्षाबंधन मना लीजिये, रक्षाबंधन को क्या फर्क पड़ता है?

अगर आप शास्त्रों को मानते हैं, धर्मसम्मत् कार्य करते हैं तो आपके लिए 30 अगस्त को ही रक्षाबंधन मनाना उचित होगा और अगर आप इनमें से किसी को भी नहीं मानते, आप शास्त्रों व धर्म को भी अपनी सुविधा के अनुसार तोड़-मरोड़कर अपने हित के अनुसार उसका सदुपयोग कर लेते हैं तो आप कभी भी रक्षाबंधन मना लीजिये, रक्षाबंधन पर्व को क्या फर्क पड़ता है?

आजकल मैं देख रहा हूं कि कई अखबारों व चैनलों तथा विभिन्न यू-ट्यूबरों के द्वारा रक्षाबंधन पर कई व्याख्यान लोग दिये जा रहे हैं, कोई कह रहा है कि रक्षाबंधन 30 अगस्त को है तो कोई कह रहा है कि 31 अगस्त को। सभी के अपने-अपने तर्क और सुविधावाली तर्क। इन लोगों से ये पूछिये कि ये रक्षाबंधन किसका पर्व है? तो ये बहुत ही सुंदर तरीके से कह देंगे कि ये भाई-बहन का पर्व है, पर सच्चाई यह है कि इस पर्व का भाई-बहन से कोई लेना-देना ही नहीं हैं और अगर बहनें भाई के कलाई पर राखी बांधती भी हैं तो इस पर्व को उससे कोई आपत्ति भी नहीं हैं।

धर्म व शास्त्र कहते हैं कि जब देवासुर संग्राम हुआ तो इन्द्राणी ने अपने पति इन्द्र को युद्ध में विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से इन्द्र के कलाई पर रक्षासुत्र बांधी थी। मतलब साफ है कि न तो इन्द्र इन्द्राणी के भाई थे और न ही इन्द्राणी इन्द्र के बहन। आज भी विभिन्न तीर्थालयों में बड़ी संख्या में कच्चे-धागे जिनका रंग गेरुआ, पीला या लाल होता है, विभिन्न पंडितों/विद्वानों द्वारा अपने यजमानों के कल्याण के लिए उनकी कलाई पर बांधे जाते हैं, इसे भी देखें तो कोई यजमान या विद्वानों के बीच भाई-बहन का संबंध नहीं होता।

अगर आप वैवाहिक कार्यक्रमों में कभी सम्मिलित हुए होंगे या कोई संस्कार कार्यक्रमों में शामिल हुए होंगे तो वहां भी देखते होंगे कि कई विद्वानों द्वारा उन कार्यक्रमों में शामिल यजमानों के कलाई पर रक्षासूत्र बांधे जाते हैं। उसका मूल उद्देश्य होता है कि यजमानों का कल्याण हो। वहां भी बांधनेवाले और बंधवानेवालों का कोई भाई-बहन का संबंध नहीं होता।

दरअसल जब से मुगलों व फिल्मी कलाकारों ने इस पवित्र रक्षाबंधन में हस्तक्षेप करना प्रारम्भ किया, इस रक्षाबंधन जैसे पर्व पर विकृतियों ने डेरा डाल लिया और नतीजा सबके सामने हैं। सच पूछा जाये तो रक्षाबंधन का पर्व बहुत ही व्यापक और विशाल है, इसका सीधा संबंध भारत जैसे राष्ट्र की रक्षा से भी हैं। इस देश में लोकतंत्र स्थापित होने के पूर्व जहां कही भी सनातनी परम्पराओं से शासन स्थापित था। रक्षाबंधन के दिन राजपुरोहित अपने राजा के हाथों में रक्षासूत्र बांधा करते थे, उसके मूल में भी यही था कि राजा प्रण करता है कि जब तक वो जीवित हैं, धर्मानुसार-शास्त्रोक्त विधि से शासन करेगा और अपने प्रजा तथा राष्ट्र की रक्षा करेगा।

जो भी व्यक्ति रक्षाबंधन में भाग लेता है। आप देखेंगे कि वो इस दिन कोई व्रत या उपवास नहीं रखता और न ही इससे संबंधित कोई कथा या वार्ता सुनता है और न ही ऐसी कोई परम्परा ही है, जैसे कि आम तौर पर कई पर्वों व त्योहारों में देखा जाता हैं।। बस बाजार में रंग-बिरंगे कलात्मक सस्ती-महंगी अपनी हैसियत के अनुसार राखियां खरीदी और बंधवा लिया। ऐसे लोगों के लिए वो राखी 30 अगस्त को बंधवाये या 31 अगस्त को बंधवाये या हर महीने की 28/29 या 30/31 को राखी बंधवालें, रक्षाबंधन जैसे पर्व को क्या फर्क पड़ता है।

पर वैसे लोग जो रक्षाबंधन के महत्व को जानते हैं। वो तो चाहे जो हो, वो श्रावण पूर्णिमा और उस दिन पड़नेवाली भद्रा के अंत की ही प्रतीक्षा करेंगे, चाहे वो दिन में हो या रात में हो और जब ऐसी स्थिति होगी, वे उसी समय अपने शुभचिन्तकों से रक्षासूत्र बंधवायेंगे और अपना तथा अपने देश व संस्कृति का मान बढ़ायेंगे। इस बार ऐसा संयोग सिर्फ और सिर्फ 30 अगस्त को ही हैं, क्योंकि 30 अगस्त को ही श्रावण पूर्णिमा और भद्रा का अन्त हो रहा है। 31 अगस्त को तो सिर्फ पूर्णिमा है, पर वो सुबह 7.45 में ही समाप्त हो जा रहा है, उसके बाद प्रतिपदा तिथि हो जायेगा, मतलब पूर्णिमा तक ही चन्द्रमा की ज्योति पूर्ण होती है, जैसे ही प्रतिपदा आयेगा चन्द्रमा के ज्योति में क्षीणता आ जायेगी। इसलिए शास्त्रोक्त व धर्मसम्मत् तो किसी भी प्रकार से 31 अगस्त को होना ही नहीं चाहिए।

कुछ तथाकथित विद्वान कहेंगे कि चूंकि पूर्णिमा तिथि में 31 अगस्त को सूर्योदय हो रहा हैं, इसलिए उदयातिथि के अनुसार जिस तिथि में सूर्योदय हो रहा है, वो तिथि पूरे दिन मान्य होती है, तो उन विद्वानों के लिए भी मेरा सुझाव हैं कि थोड़ा वे अपना ज्ञान बढ़ाये और पहले रक्षाबंधन क्या है? उसे समझे। रक्षाबंधन कोई जीवित्पुत्रिका या हरितालिका या दूर्गा-पूजा या रामनवमी या जन्माष्टमी जैसा पर्व नहीं हैं। ये सिर्फ और सिर्फ रक्षासूत्र बांधने और बंधवाने का पर्व है। ऐसे में रक्षासूत्र दिन में बंधे या रात में बंधे क्या फर्क पड़ता है। क्या रक्षाबंधन राखी बंधवाकर पूरे दिन भर उसके प्रदर्शन कराने का पर्व है और अगर आपके दिमाग में ऐसी बात भरी पड़ी हैं तो फिर आप जब मन करें तब उसका प्रदर्शन करें, किसी को क्या फर्क पड़ेगा, लेकिन जब आप धार्मिक व शास्त्रों को माननेवाले हैं तो जो धर्म व शास्त्र कहेंगे, उसको ही मानना पड़ेगा।

यहां तो मैं देखता हूं कि माउंट आबू वाली ब्रह्मा कुमारी बहनें तो रक्षाबंधन के आने के पन्द्रह दिन पहले ही राजभवन, मुख्यमंत्री आवास, विभिन्न प्रमुख स्थलों पर बड़ी संख्या में राखी लेकर पहुंच कर राखियां बांधनी शुरु कर देती हैं तो क्या रक्षाबंधन पन्द्रह दिनों तक चलनेवाला पर्व है। इसलिए हे महानुभावों, आप स्वयं विचार करिये कि आप क्या है? क्या आप धार्मिक है? क्या आप सनातनी है? क्या आप शास्त्रों को माननेवाले हैं? क्या आप भारतीय संस्कृति व परम्पराओं व उसके मूल सिद्धांतों को माननेवाले हैं तो फिर पचड़े में मत पड़ियें, खुलकर 30 अगस्त को रक्षाबंधन मनाइये क्योंकि उसी दिन श्रावण पूर्णिमा हैं चन्द्रमा का पूर्ण प्रकाश दिखेगा, 31 अगस्त को श्रावण शुक्ल प्रतिपदा हो जायेगा, जिसमें रक्षाबंधन मनाना निषेध होता है और अगर आप इन सबसे उपर हैं तो आप अपने लिये 32 व 33 अगस्त का भी इजाद करिये और उसी दिन रक्षाबंधन मना लीजिये, क्योंकि आप तो महान हैं, क्या नहीं कर सकते। धन्यवाद।