अपनी बात

अगर आपने छठ को लेकर मीडिया में प्रकाशित/प्रसारित बतकुचनों को पढ़/देख अपने दिमाग में कुड़ा-कर्कट भर लिया है और उसे हटाने को प्रतिबद्ध नहीं, तो फिर ये आर्टिकल आपके लिए नहीं हैं

अगर आपने छठ को लेकर विभिन्न अखबारों/चैनलों में प्रकाशित आलेखों/प्रसारित बतकुचनों को पढ़/देख अपने दिमाग में कुड़ा-कर्कट भर लिया हैं और उसे हटाने को प्रतिबद्ध नहीं हैं, तो फिर ये आर्टिकल आपके लिए नहीं हैं, इसे आप न पढ़े तो ही बेहतर हैं, वो इसलिए कि जब-जब छठ आता है, तो मैं यहीं देखता हूं कि अयोग्य/और जो अयोग्य नहीं हैं, दोनों छठ के बारे में भ्रांतियां फैलाकर छठव्रतियों और उनके परिवारों में कुड़ा-कर्कट भरने का जिम्मा ले लेते हैं और उनके इस जिम्मे को अखबारों व चैनलों का समूह जन-जन तक पहुंचाने का ठेका ले लेता है।

इसी बीच इन अखबारों/चैनलों को कोई उनकी गलतियों पर जब कोई अंगूली उठाता है तो वे गलथेथरई करते हुए, उन्हीं गलतियों को वे बार-बार दोहराते/परोसते हैं, ताकि सत्य कहनेवाला जान लें, कि उन अखबारों/चैनलों के आगे उसकी एक नहीं चलेगी, साथ ही वे एक झूठ को इतनी सौ बार जनता के सामने परोस देते हैं कि वो झूठ सत्य सी प्रतीत होती हैं, जबकि वो झूठ ही होती है।

अब जरा इधर देखिये आचार्य किशोर कुणाल को देखिये। ये महावीर मंदिर पटना से जुड़े हुए हैं। महावीर मंदिर ट्रस्ट के सचिव है। उन्होंने छठ पर कुछ अखबारों में लिखा हैं जो कई भ्रांतियों को जन्म दे रहा हैं, पर चूंकि वे महावीर मंदिर पटना के सचिव है। आईपीएस रह चुके हैं, अब मंदिरों की मठाधीशी भी कर रहे हैं, तो लाजिमी हैं कि उनकी बात लोग सुनेंगे और उनके द्वारा कही गई झूठी बातों को भी सत्य मान लेंगे, जैसा कि छठ के बारे में हो रहा हैं।

28 अक्टूबर को बिहार-झारखण्ड और बंगाल से प्रकाशित प्रभात खबर ने छठ पर ‘1700 साल से पूजी जा रहीं छठी मइया’ नामक हेडिंग से उनके आलेख को अपने अखबार में स्थान दिया है। अपने इस आर्टिकल के दूसरे पैराग्राफ में उन्होंने लिखा है कि छठी मइया पार्वती जी का ही पर्याय है। वह मां पार्वती के स्कंद रुप में हैं। चूंकि उनका जन्म कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी को हुआ। इसलिए छठी मइया के रुप में इनकी पूजा होती है।

यही महाशय उसी आर्टिकल में अंतिम पैराग्राफ में लिखते है कि छठ में सूर्योपासना व छठी मइया की पूजा का विधान है। सप्तमी तिथि को भगवान सूर्य की तिथि माना गया है। षष्ठी तिथि को स्कंदमाता की पूजा होती है, संभवतः ये दोनों तिथियां एक साथ जुड़ जाने की वजह से सूर्य को अर्घ्य (इन्होंने अर्घ लिखा है) और छठी माता की पूजा का विधान प्रचलित हुआ।

जबकि सच्चाई यह है कि भारत या भारत के किसी अन्य स्थान पर अथवा किसी भी पुस्तक में यह वर्णित नहीं है कि षष्ठी तिथि के दिन स्कन्द माता की पुजा होती हैं, हां स्कन्द षष्ठी होने के कारण स्कन्द की पूजा होती हैं, पर उनकी माता पार्वती की स्कन्द रुप में कही भी पूजा नहीं होती, क्योंकि स्कन्द माता की जब भी पूजा होगी तो वो पंचमी तिथि को होगी, नवरात्र काल में होगी, वो नवरात्र वासंती हो या शारदीय अथवा गुप्त नवरात्र।

आप इसके लिये दुर्गासप्तशती का देव्या कवचम् देखे जो स्पष्ट करता है – पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। मतलब स्कन्दमाता की बात करेंगे, वो भी स्कन्दषष्ठी के दिन, जिस दिन स्कन्द की पूजा का विधान हैं और उसे षष्ठी माता कहेंगे, ये कही से भी ग्राह्य हैं? मैं ये पाठकों पर ही छोड़ता हूं, आप स्वयं चिन्तन करें, जिस दिन आपका जन्मदिन होगा, उस दिन आपका हैप्पी बर्थडे मनाया जायेगा या आपकी मां का?

इसी तरह प्रभात खबर ने ही 28 अक्टूबर को प्रथम पृष्ठ पर छापा कि षष्ठी तिथि के दिन सूर्यदेव और उनकी पत्नी प्रत्युषा की उपासना की जाती है मतलब साफ हो गया कि छठी मइया सूर्यदेव की पत्नी प्रत्युषा है और दूसरे पृष्ठ पर छाप दिया कि भगवान सूर्य की बहन हैं षष्ठी देवी, इसलिए दोनों की पूजा। मतलब एक ही अखबार में पहले पृष्ठ पर सूर्य देव की पत्नी की पूजा और दूसरे पृष्ठ पर सूर्यदेव की बहन की पूजा, मतलब आप को नहीं लगता कि गड्मगड्ड कर दिया हैं इन लोगों ने और फिर भी आप ऐसे लोगों/अखबारों की आरती उतारते हैं।

आखिर कौन है छठी मइया?

बिना किन्तु-परन्तु के जान लीजिये कि प्रकृति की षष्टम अंश है – षष्ठी माता। इन्हें बालको का रक्षक/पोषक कहा गया है। कहा जाता हैं कि कार्तिक शुक्ल रवि षष्ठी के दिन भगवान सूर्य की रश्मियों में यह विद्यमान होती है और अगर दुर्गा सप्तशती को आधार लें तो ये षष्टम कात्यायनीति च के अनुसार ये कात्यायनी ही हो सकती हैं, दूसरा कोई नहीं। जिनके बारे में कहा गया है –

चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलवरवाहना।

कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवघातिनी।।

यही अमोघ फलदायिनी है। इन्हीं के पूजन से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष जो पुरुषार्थ को देनेवाले माने जाते हैं, प्राप्त हो जाते हैं। इसलिए जब आप षष्ठी या सप्तमी तिथि को भगवान भास्कर को अर्घ्य दे रहे होते हैं, तो भगवान भास्कर की रश्मियों में ये व्याप्त शक्तियां अर्घ्य के माध्यम से अपना-अपना अंश प्राप्त कर लेती हैं, उधर भगवान भास्कर भी अपना अंश लेकर गद्गगद् होते हैं और छठव्रतियों को आशीष प्रदान कर मनोवांछित फल दे दिया करते हैं।

कैसे करें छठ व्रत?

भगवान भास्कर और छठी मइया को दिखावा पसन्द नहीं हैं। अगर आपके पास कुछ भी नहीं हैं तो सिर्फ किसी भी जलाशय में जाकर एक लोटा जल ही लेकर खड़े हो जाइये, अर्घ्य देकर चले आइये, अगर आपको मनोवांछित फल नहीं मिला तो फिर कहियेगा। अगर आपको भगवान ने सब कुछ दिया हैं तो फिर कंजूसी मत करिये, हर प्रकार से भगवान को अपना सब कुछ समर्पित करिये।

 

अच्छा रहेगा कि किसी कारण से आपके आस-पड़ोस के किसी छठ व्रती को किसी चीज की कमी हो रही हैं तो उसकी पूर्ति कीजिये, यह व्रत का चरमोत्कर्ष हैं, यही भाव आपके छठी मइया और भगवान भास्कर को समीप लाता है। भीख मांग कर या झूठ बोलकर या किसी से उपकृत होकर व्रत करना महापाप है। अगर आपने प्रण किया है कि मेरा यह काम हो जायेगा तो मैं यह छठ व्रत अवश्य करुंगा/करुंगी, प्रण पूरा हो गया तो छठ व्रत को लटकाइये मत, उसे पूरा करिये।

बहुत सारे धनी व्यक्ति/परिवार के लोग प्रण कर लेते हैं कि मेरा यह काम हो जायेगा तो भीख मांगकर छठ व्रत करेंगे, मतलब वे अपने अहं भाव का परित्याग करने का प्रण लेते हैं, तो प्रण पूरा हो जाने पर ऐसा करने में संकोच भी नहीं करना चाहिए, क्योंकि ईश्वर के नजर में कोई अमीर या गरीब नहीं होता। सभी कर्मफल के अनुसार कभी अमीर तो कभी गरीब हो जाते हैं, जो उनके परिक्षेत्र में नहीं होता।

कौन करें छठ व्रत?

कार्तिक शुक्ल रवि षष्ठी व्रत को डाला छठ या बुढ़ी छठ भी कहते हैं। आज से चालीस-पचास वर्ष पहले हर के घर में जो बुढ़-पुरनिया होती थी, वहीं छठ करती थी, बाकी घर के युवा सदस्य उनके इस कार्य में सहयोग किया करते थे। जिससे सभी को पुण्य प्राप्त हो जाता था। पर इन दिनों देखने में आ रहा है कि जिनकी नई-नई शादी होती हैं, वो भी छठ व्रत करने को आतुर हो जाती हैं, व्रत करने लगती है।

ऐसा नहीं होना चाहिए, पहले आपको गृहस्थ धर्म का पालन करना चाहिए, अपने दायित्वों का निर्वहण करना चाहिए, उसके बाद धन्यवाद ज्ञापित करते हुए पूर्व के बुढ़-पुरनिया की तरह छठ करनी चाहिए, क्योंकि छठ में ऐसी-ऐसी परम्पराएं हैं, जो एक युवा को व्रत करने से रोकती हैं, अगर ज्यादा इस बारे में जानकारी चाहते हैं तो उसके लिए आपको हमसे संपर्क करना पड़ेगा, क्योंकि हर चीज आलेख में लिखना संभव नहीं हैं।

हां, जिनके घर में बुढ़-पुरनिया व्रत करने में असमर्थ हो और वो अपना दायित्व सहर्ष अपने बेटे-बहु को दे रही हैं तो उसकी बात अलग हैं। एक बात याद रखें, हमेशा छठ व्रत को लेकर अपने बुढ़-पुरनिया की सलाह जरुर लें, क्योंकि जितनी जानकारी उन्हें हैं, उतनी जानकारी मुर्ख अखबारों के संपादकों को भी नहीं होती।

कितने प्रकार के छठ होते हैं?

मूलतः छठ तीन प्रकार के होते हैं। पहला – चैती छठ, जो चैत्र मास में होता हैं। दूसरा – लोलार्क छठ, जो भादो के महीने में होता हैं और तीसरा – डाला छठ या बुढ़ी छठ, जो कार्तिक महीने में मनाया जाता है।

कैसा हो वस्त्र?

छठ में हो सकें तो सिले हुए कपड़ों का उपयोग न करें, वस्त्र बिना सिले हुए हो। पीले, नारंगी या लाल रंग की धोती/साड़ी का उपयोग कर रहे हैं, तो बहुत ही सुन्दर।

छठव्रतियों के परिवारों के लिए जरुरी

हमेशा याद रखें कि अगर आपके घर में छठ व्रत हो रहा है, तो आप जब तक सूर्यषष्ठी व्रत समाप्त नहीं कर लेते, जो भी अर्घ्य में देने वाले फल हैं, उसे बाहर से भी लेकर सेवन न करें, उन फलों का सेवन तभी करें, जब आपके यहां व्रत समाप्त हो जाये, जिनके यहां व्रत नहीं हो रहा हैं, उन पर यह विधान लागू नहीं होता। कभी-भी छठ व्रतियों को स्पर्श नहीं करें, उन्हें दूर से ही प्रणाम करें।

अगर कोई छठव्रती भगवान भास्कर को साष्टांग दंडवत् प्रणाम कर रही हैं तो उनके चरण को अवश्य छू लें। व्रत समाप्त हो जाये, तो छठव्रती के हाथों सिन्दूर अपने माथे पर अवश्य लगाये, क्योंकि उनके द्वारा लगाया गया सिन्दूर आशीर्वाद का वो अमोघ शस्त्र होता हैं जो आपकी हर प्रकार से वर्षपर्यन्त रक्षा करता है। याद रखे, छठ में रोरी को प्रयोग नहीं होता।

छठ का इतिहास

छठ मूलतः मगध प्रदेश से प्रारम्भ हुआ, यही कारण है कि आज बिहार में यह प्रभावशाली रुप में दिखता है। आज जहां-जहां बिहार के लोग हैं, चाहे वह भारत में हो अथवा भारत से बाहर। उन्होंने इस महापर्व को छोड़ा नहीं हैं। यह पर्व सही मायनों में महाभारत काल में प्रारम्भ हुआ। यह वह समय था, जब भगवान श्रीकृष्ण की माया से भारत प्रभावित था। हालांकि कुछ लोग इसे त्रेतायुग के रामायण काल से जोड़ते हैं। कह देते हैं कि भगवान राम और सीता ने भी सूर्योपासना की थी। अरे भाई सूर्योपासना और छठ करना दोनों अलग-अलग चीज है।

अगर आप हर रोज प्रतिदिन एक लोटा जल भगवान सूर्य को समर्पित करते हैं, तो इसका मतलब यह नहीं कि आप छठ कर रहे हैं। अगर आप प्रतिदिन भगवान भास्कर को प्रणाम कर रहे हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि आप छठ कर रहे हैं। अरे भगवान राम स्वयं सूर्यवंशी थे तो उनका भगवान भास्कर को नियमित प्रणाम करना, उनका पूजन करना तो धर्म ही था, उनके पूर्वज तो सतयुग से चले आ रहे थे, वे तो सतयुग में भी भगवान सूर्य की आराधना किया करते थे, तो क्या सतयुग से छठ चला आ रहा है?

और जब रामजी ने, सीता जी ने छठ किया था तो आदिकवि वाल्मीकि ने अपनी रामायण में छठ की या गोस्वामी तुलसीदास जिनका पूरा जीवन ही भगवान राम की सेवा में बीत गया, जिन्होंने श्रीरामचरितमानस लिखी, विनयपत्रिका लिखी, हनुमान चालीसा लिखी, इन किताबों में छठ की चर्चा क्यों नहीं की? अरे भाई, आप ये समझने की कोशिश क्यों नहीं करते। छठ अलग चीज है और सूर्योपासना अलग चीज, इसे स्वीकार कीजिये।

कल अंतिम दिन, फायदा उठाइये…

जब आप कल अपने-अपने तटों पर जाइयेगा तो कुछ मत करिये, आपके पास कुछ नहीं हैं, तो एक लोटा जल ही भगवान सूर्य नारायण को अर्पित करते हुए कहियेगा…

एहि सूर्य सहस्रांशो तेजोराशे जगत्पते।

अनुकम्प्य मां भक्तया गृहाणार्घ्यं दिवाकर।।

अगर आपके पास समय हो, तो कम से कम इन निम्निलिखित मंत्रों का उच्चारण कर लीजियेगा, बहुत ही सहज है…

ऊँ मित्राय नमः। ऊँ रवये नमः। ऊँ सूर्याय नमः। ऊँ भानवे नमः। ऊँ खगाय नमः। ऊँ पूष्णे नमः। ऊँ हिरण्यगर्भाय नमः। ऊँ मरीचये नमः। ऊँ आदित्याय नमः। ऊँ सवित्रे नमः। ऊँ अर्काय नमः। ऊँ भास्कराय नमः।

क्योंकि कहा गया हैं कि

आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने।

जन्मान्तर सहस्रेषु दारिद्र्यं नोपजायते।।

2 thoughts on “अगर आपने छठ को लेकर मीडिया में प्रकाशित/प्रसारित बतकुचनों को पढ़/देख अपने दिमाग में कुड़ा-कर्कट भर लिया है और उसे हटाने को प्रतिबद्ध नहीं, तो फिर ये आर्टिकल आपके लिए नहीं हैं

  • अत्यंत सारगर्भित आलेख, पढ़कर कई भ्रांतियां दूर हुईं। धन्यवाद।

  • Ram Krishna Thakur

    अत्यंत ही ज्ञानवर्धक जानकारी, जो अज्ञानी पंडितों द्वारा निजी स्वार्थवश निर्मित भँवरजाल से निकालकर साफ़-सुथरे माहौल में पूजा करने में सहायक ही सिद्ध नहीं होगी अपितु मार्गदर्शन का कार्य करेगी। आध्यात्म संबंधी आपके ज्ञाते मेरा सादर नमन। इसी प्रकार भविष्य में भी अज्ञानियों के द्वारा दिये गये अधकचरे ज्ञान पर अपना मार्गदर्शन अवश्य किया करें।
    आध्यात्म एवं आस्था का प्रतीक पावन छठ पर्व की हार्दिक बधाई।

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