चलनी दूसे सूप के जिन्हें बहत्तर छेद, के. विक्रम राव जी अपनी संस्था को दागदार होने से बचाइये
आम तौर पर जो भी कोई नेतागिरी करता है, तो वह जिस समुदाय के लिए नेतागिरी कर रहा होता है, वह उसके सम्मान के लिए लड़ रहा होता है, वह उस समुदाय की इज्जत बचाने के लिए खुद को दांव पर लगा देता है, पर उस व्यक्ति या उस समुदाय के सम्मान पर आंच नहीं आने देता, जिसको लेकर वह नेतागिरी कर रहा होता है, पर इन दिनों हमारे समाज में ऐसे-ऐसे लोग नेतागिरी कर रहे हैं, जो अपने क्षुद्र स्वार्थ की पूर्ति के लिए, स्वयं का चेहरा चमकाने के लिए दूसरे की इज्जत से खेलने में भी गुरेज नहीं करते।
ऐसे ही एक सज्जन है, शाहनवाज हसन। ये स्वयं को झारखण्ड का इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट का प्रदेश अध्यक्ष बताते है। कल की ही बात है, मुझे मेरे एक मित्र ने इनके द्वारा मेरे बारे में और राज्य के अन्य पत्रकारों के बारे में छीटाकशीं करते हुए लिखे गये कुछ वाक्यांशों के सबूत भेजे हैं। जो इन्होंने व्हाटसअप ग्रुप के आइएफडब्लयूजे सोशल मीडिया सेल पर लिखे है। इसे पढ़कर मैं आश्चर्यचकित हो गया कि जो व्यक्ति खुद को पत्रकारों का नेता बताता है, भला वह पत्रकारों के बारे में ऐसी घटियास्तर की सोच कैसे रख सकता है? वह इतना बड़ा पत्रकारों के यूनियन का नेता कैसे बन गया? जरा देखिये – इसने लिखा क्या है?
“यह बकवास है। इसमें जितने भी पत्रकार दिख रहे है, वे किसी अखबार/चैनल से नहीं है। यह के बी मिश्रा है पत्रकारिता छोड़कर मुख्यमंत्री का जनसंवाद पिछले 2 वर्ष से देख रहे थे, निकाल दिया गया है तो भड़ास निकाल रहे है, पूर्व में भी इनपर कई गंभीर आरोप लगते रहे हैं।”
अब शाहनवाज हसन ये बताये कि जब कि ये घटना है, शायद उसको डेट मालूम न हो, हम डेट भी बता देते है। यह घटना 17 सितम्बर 2017 की है। रांची के बीएनआर होटल में कार्यक्रम चल रहा था। वहां अमित शाह के कार्यक्रम में पत्रकारों के साथ दुर्व्यवहार हुआ था। जिसकी खबर दूसरे दिन, रांची से प्रकाशित दैनिक जागरण, राष्ट्रीय खबर आदि प्रमुख अखबारों में छपी। दैनिक हिन्दुस्तान ने तो इस खबर का ही बहिष्कार कर दिया था। अगर आप इसका विजयुल देखे तो तो उस विजुयल में अशोक गोप, सोहन सिंह, प्रशांत आदि पत्रकार साफ दीख रहे हैं, जो एक सम्मानित चैनल और अखबार से जुड़े हैं और इन्हें देखकर भी, इन पत्रकारों को पत्रकार मानने से इनकार करना और उन्हें नजरंदाज करना और ये कहना कि इसमें जो पत्रकार दीख रहे हैं, वह किसी चैनल/अखबार के नहीं हैं। क्या ये नहीं बताता कि शाहनवाज जानबूझकर इस बात को झूठलाने की कोशिश कर रहा है? और उन सभी पत्रकारों के सम्मान के साथ खेल रहा हैं।
जो व्यक्ति जानबूझकर, इस प्रकार की हरकत करें। क्या ऐसा व्यक्ति, किसी भी ऐसोसिएशन का अध्यक्ष या सदस्य बनने के लायक है? जो अपने ही पत्रकार बंधुओं को पहचानने से इनकार कर दें और ये कह दें कि ये पत्रकार ही नहीं हैं।
दूसरी बात, शाहनवाज ने लिखा कि मैं जनसंवाद केन्द्र में काम कर रहा था और हमें निकाल दिया गया। क्या वह इसकी सबूत दे सकता है कि जिससे यह पता चलता हो कि हमें निकाल दिया गया था? या हमें वह टर्मिनेशन लेटर की छायाप्रति ही दिखा सकता है? जिससे यह पता चलता हो कि हमें निकाल दिया गया है।
तीसरी बात, उसने मेरे बारे में लिखा कि हमारे उपर गंभीर आरोप लगते रहे हैं। क्या वह बता सकता है कि वह गंभीर आरोप क्या है? पर झारखण्ड का एक-एक पत्रकार शाहनवाज हसन को जानता है कि वह क्या हैं? उसकी महत्वाकांक्षा क्या है? वह के. विक्रम राव को धोखा दे सकता है, पर झारखण्ड के सारे पत्रकारों को धोखा देने की ताकत उसमें नहीं, वह यहां के नेताओं, प्रशासनिक अधिकारियों और संघ से जुड़े लोगों को धोखा दे सकता है, पर हमें धोखा देने की ताकत उसमें नहीं, क्योंकि मैं हर उस गलत का विरोध करता हूं, जिस गलत का विरोध करना चाहिए।
उस पर खुद ही ऐसे गंभीर आरोप लगे है कि वह चाहकर भी उस दाग को मिटा नहीं सकता, यानी चलनी दूसे सूप के जिन्हें बहत्तर छेद। के. विक्रम राव जी, जरा अपना युनियन ठीक करिये, अच्छे लोगों को सम्मान दीजिये, नहीं तो जितना भी सम्मान आपने प्राप्त किया हैं, वह सम्मान खतरे में पड़ जायेगा। इससे ज्यादा मैं लिखना नहीं चाहता, ऐसे भी मैं लिखना नहीं चाहता था, पर शाहनवाज की रांची के पत्रकारों पर की गई छीटाकशीं ने मुझे लिखने पर मजबूर कर दिया।
अंत में, शाहनवाज हसन, आपको मालूम होना चाहिए कि आप चले थे, कश्मीर के लाल चौक पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने, क्या आप राष्ट्रीय ध्वज फहरा लिये? अरे, जब आप ढिंढोरा पीट रहे थे, रांची से लेकर दिल्ली और पता नहीं कहां-कहां? एक सामान्य महिला ठीक उसी समय कश्मीर के लाल चौक पर वंदे मातरम और भारत माता की जय कह रही थी, आप क्या जानों कि देशभक्ति क्या होती है? आप ढिंढोरा पीटते रह गये और उक्त महिला ने ढिंढोरा नहीं पीटा और सभी भारतीयों के दिलों में जगह बना ली। आश्चर्य होता है कि दिल्ली में बैठे लोग आपकी इस चालाकी को कैसे नहीं पहचान रहे हैं?
visual me hindustan k dinesh shukla, bhaskar k syad ramiz samet sare local journalists v the.