झारखण्ड जैसे छोटे राज्य में चुनाव आयोग से पांच चरणों में चुनाव की मांग मतलब चोर की दाढ़ी में तिनका
पिछले पांच साल से केन्द्र और राज्य दोनों में भाजपा की सरकार है। राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास अपनी हर सभा में राज्य में डबल इंजन की सरकार की दुहाई देकर, जनता को यह बतलाने की कोशिश करते नहीं थकते, कि उनके राज्य में विकास की गंगा बह रही है, वे तो अपनी पीठ थपथपाने के क्रम में अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्रियों को भी अब तक विकास नहीं होने के लिए दोषी ठहरा देते हैं।
यह अलग बात है कि उनके ही पार्टी में अभी केन्द्रीय जनजातीय मंत्री का पद संभाल रहे अर्जुन मुंडा कुछ भी नहीं बोलते, क्योंकि वे जानते हैं कि जहां प्रतिकार किया, उनकी पार्टी उनका ऐसा हाल कर देगी, कि वे फिर कहीं के नहीं रहेंगे और उनकी जो फिलहाल स्थिति हैं, वह भी नहीं रहेगी, तथा उनकी हालत छुटभैये नेता जैसी हो जायेगी, इसलिए जो भी कुछ आराम से प्राप्त हो रहा हैं, वह भी बिना कुछ हिलाए-डूलाए तो प्रतिकार करने से क्या फायदा, कौन सा प्रतिकार करने से उन्हें भारत रत्न का खिताब मिल जायेगा।
इसलिए वे मुंह बंद कर फिलहाल केन्द्रीय मंत्री बनने का परम सुख प्राप्त कर रहे हैं, तथा उस परम सुख प्राप्त करने के अनुभव का शेयर फेसबुक व टिवटर के माध्यम से कर दे रहे हैं। भाजपा व भाजपा नेताओं तथा जहां –जहां भाजपा की सरकार हैं, सभी का यही हाल है, इसलिए अगर आप देश व राज्य के विकास की परिकल्पना ऐसे भाजपा नेताओं से करते हैं, तो निःसंदेह आप महामूर्ख है।
आप पूछेंगे कि यह मैं किसलिए लिख रहा हूं, तो भाई लिखना जरुरी हैं, कल की ही बात है भारत निर्वाचन आयोग की एक टीम रांची में थी, जिसने राज्य में संभावित विधानसभा चुनाव के पूर्व विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ अलग-अलग बैठक की तथा बेहतर चुनाव संपन्न हो, इसके लिए सुझाव मांगे। आश्चर्य है कि भाजपा को छोड़ राज्य के सभी प्रमुख दलों जैसे झामुमो, कांग्रेस, झाविमो यहां तक की भाजपा की सहयोगी आजसू ने भी एक चरण में चुनाव कराने की मांग की, पर भाजपा ने पांच चरणों में चुनाव कराने का निर्वाचन आयोग से अनुरोध कर दिया।
भाजपा का राज्य में पांच चरणों में चुनाव कराने की मंशा ही राज्य में निष्पक्ष चुनाव होने पर संदेह खड़ा कर देता है। सवाल पहला – क्या राज्य में विधि-व्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं कि राज्य में पांच चरणों में चुनाव की वकालत भाजपा कर रही हैं और अगर विधि-व्यवस्था ठीक नहीं तो डबल इंजन वाली भाजपा सरकार बताएं कि इसके लिए कौन जिम्मेवार है? आम तौर पर झारखण्ड जैसे छोटे राज्य में वह भी तब जबकि देश के अन्य राज्यों में कही चुनाव हैं ही नहीं, वहां पांच चरणों में चुनाव कराने की मांग करना क्या हास्यास्पद नहीं, और जब पांच चरणों में ही भाजपा को चुनाव कराना है, तो इससे अच्छा रहेगा कि राज्य में 81 विधानसभा सीटें हैं, 81 चरणों में चुनाव करवा दिया जाये ताकि भाजपा के लोग इसका शानदार फायदा उठा लें।
दरअसल पांच चरणों में चुनाव कराने का अनुरोध निष्पक्ष चुनाव कराना नहीं, बल्कि भाजपा की एक रणनीति है कि उसके नेता, कार्यकर्ता व समर्थक आराम से एक जगह से चुनाव संपन्न कराकर, दूसरे जगह डेरा डाले, फिर तीसरे और इसी प्रकार पांच चरणों में होनेवाले जगहों पर डेरा डालकर, अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हुए ऐसा माहौल बना दे कि लोगों को लगे कि इस राज्य में भाजपा ही सत्ता में आ रही हैं, और अगर चुनाव आयोग भाजपा के इस अनुरोध को स्वीकार कर पांच चरणों या तीन से चार चरणों में भी चुनाव कराने का विचार रखते हुए, चुनाव की तिथियों की घोषणा करती हैं, तो यही माना जायेगा कि चुनाव आयोग को राज्य में निष्पक्ष चुनाव कराने की मंशा ही नहीं।
जिस राज्य में राज्य के विभिन्न जिलों के उपायुक्त जो ऐसे समय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, उनकी जो आजकल भूमिका देखी जा रही हैं, वह भी ठीक नहीं, राज्य की प्रमुख विपक्षी दल झारखण्ड मुक्ति मोर्चा ने जो आरोप लगाया कि ये उपायुक्त, भाजपा के जिलाध्यक्ष के रुप में काम कर रहे हैं, अपने फेसबुक व टिवटर का उपयोग सरकार की छवि जनता के सामने बेहतर करने में लगाते हैं, तो वह गलत भी नहीं, क्योंकि विद्रोही24.कॉम के पास प्रमाण है कि हाल ही में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पिछले 12 सितम्बर को झारखण्ड विधानसभा के नवनिर्मित भवन का उद्घाटन करने आये थे, तब इन उपायुक्तों ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए अपने फेसबुक व टिवटर का गलत इस्तेमाल किया।
यहां तो एक एसएसपी को देखा जा रहा है कि जिस भाजपा विधायक पर यौन शोषण का आरोप हैं, उससे हाथ मिलाकर वह खुद को गौरवान्वित महसूस करता है, जबकि उसका काम ऐसे लोगों को कानून के शिंकजे में कसकर जेल की हवा खिलाने का हैं, पर उक्त एसएसपी ने उक्त भाजपा विधायक को जेल में डालने के बदले, उसके खिलाफ प्राथमिकी तक दर्ज नहीं होने दी, ऐसे में राज्य में निष्पक्ष चुनाव की परिकल्पना करना मूर्खता को सिद्ध करने के बराबर है।
यहां तो निःसंदेह परीक्षा राज्य निर्वाचन आयोग ही नहीं, बल्कि भारत निर्वाचन आयोग की होगी कि वह झारखण्ड में कैसे और किस प्रकार चुनाव संपन्न कराता हैं, और इसकी पहली प्रारम्भिक परीक्षा उसी वक्त संपन्न होगी, जब चुनाव आयोग झारखण्ड में तिथियों की घोषणा करेगा? तिथियों की घोषणा से ही पता चल जायेगा कि वह भाजपा के प्रति सॉफ्ट कार्नर रख रही हैं, या सही मायनों में निष्पक्ष चुनाव कराना चाह रही हैं।
क्योंकि राज्य में जिस प्रकार की स्थिति वर्तमान सरकार ने कर दी हैं, यहां निष्पक्ष चुनाव होना ही बेमानी है, क्योंकि जहां का आइएएस/आइपीएस ही दिल से भाजपाई हो गया, जहां का आइएएस/आइपीएस अवकाश या वीआरएस लेने के बाद भाजपा का टिकट पाकर चुनाव लड़ने के लिए भाजपा की भक्ति में लग जाता हैं तथा जब तक प्रशासनिक या पुलिस सेवा में रहता हैं, भाजपा के लिए काम करता है, वहां निष्पक्ष चुनाव बिल्कुल असंभव है।
क्या झारखण्ड की जनता को मालूम नहीं, वह भूल गई कि राज्य के पूर्व पुलिस महानिदेशक ने कभी प्रेस कांफ्रेस में रघुवर सरकार की तारीफ में पूल बांध दिये थे, उदाहरण तो अनेक है, लेकिन जिस प्रकार भाजपा के लोगों व नेताओं ने चाल चलनी शुरु की है, उससे लगता है कि वे अपनी चाल से बाज नहीं आयेंगे, जब भी मौका मिलेगा वे जीत के लिए हर प्रकार के काम करेंगे, चाहे वह अनैतिक ही क्यों न हो?
क्योंकि भाजपावालों ने फिलहाल एक सूत्री कार्यक्रम अपना लिया है कि युद्ध और प्रेम में सब कुछ जायज है, इसलिए उनके लिए यह विधानसभा चुनाव युद्ध के अलावे कुछ भी नहीं, और पहली युद्ध तो वे कब के जीत गये, जब उन्होंने राज्य के सभी प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया को अपनी भक्ति करने पर विवश करा दिया। अखबार और चैनल देख लीजिये पता लग जायेगा।