धनबाद में कर्मवीर ने भाजपा की छाती में ठोकी कील, दागी व्यक्ति को जिलाध्यक्ष बना दिया, पूरे धनबाद के भाजपाइयों में गहरा आक्रोश तो दूसरे दलों में खुशिया छाईं
भाई ये काम कर्मवीर सिंह जैसा प्रदेश भाजपा का संगठन महामंत्री ही कर सकता है, दूसरा कोई कर ही नहीं सकता। वो किसी भी भाजपा के पुराने नेता की इज्जत के साथ खेल सकता है। दलितों पर अत्याचार करनेवाले, सरकारी जमीन पर कब्जा करनेवाले व्यक्ति को सिर्फ उसकी (कर्मवीर की) परिक्रमा करने तथा उसकी जय-जय करने पर जिलाध्यक्ष तक बना सकता है। चाहे वो व्यक्ति भाजपा में निष्ठा रखे या नहीं, उसके लिए कोई फर्क नहीं पड़ता, चाहे उस व्यक्ति जिसको उसके द्वारा जिलाध्यक्ष बनाया गया है, उसके विरोधियों की संख्या बहुतायत ही क्यों न हो।
ताजा मामला धनबाद महानगर का है। इस बार कर्मवीर सिंह ने जैसे लगता है कि भाजपा के छाती में कील ठोकने का प्रबंध कर लिया है। भाजपा की लूटिया डूबोने का जैसे लगता है कि संकल्प कर लिया है। तभी तो उसने श्रवण राय यादव जैसे व्यक्ति को धनबाद महानगर का जिलाध्यक्ष बना दिया। वो भी सिर्फ इसलिए कि वो उसकी कई बार परिक्रमा कर चुका है।
श्रवण राय यादव को जैसे ही धनबाद महानगर का अध्यक्ष बनाया गया। भाजपा के पुराने व समर्पित कार्यकर्ता भौचक्कें रह गये। भौचक्के इसलिए कि यह कैसे हो गया? जिस पद पर वर्तमान जिला महामंत्री नितिन भट्ट, जिला उपाध्यक्ष संजय झा, मानस प्रसून, प्रदेश कार्यसमिति सदस्य रमेश राही या संजीव अग्रवाल जैसे लोगों को होना चाहिए था, वहां इन सभी को लतियाकर बाहर करके, श्रवण राय यादव को कैसे बिठा दिया गया?
श्रवण राय यादव पर दलितों पर अत्याचार के आरोप है। इस व्यक्ति ने एक विधवा दलित महिला और उसकी बेटी पर हाथ छोड़ा, उसकी जमकर पिटाई की। जिसका समाचार कभी धनबाद में सुर्खियां भी बटोरी। इसका वीडियो भी खूब वायरल है। इस व्यक्ति पर जमीन हड़पने का भी आरोप है। जिसको लेकर इसकी शिकायत संबंधित विभाग को की गई है। धनबाद के प्रबुद्ध नागरिकों का कहना है कि अगर ऐसे अपराधिक चरित्र के व्यक्ति को भाजपा महानगरध्यक्ष बनायेगी तो किस मुंह से भाजपावाले हमारे पास वोट मांगने आयेंगे?
कमाल तो इस बात की है कि इस व्यक्ति को महानगरध्यक्ष बनाने के पहले तीन बार विधायक रहे, तीन बार सांसद रहे, वर्तमान में अभी भी सांसद है, उन पीएन सिंह से भी राय नही ली गई। इसका मतलब है कि कर्मवीर सिंह और बाबूलाल मरांडी जैसे नेताओं के लिए पीएन सिंह अब काम के नहीं रहे, तभी तो उनसे अब राय तक नहीं ली जा रही हैं। इधर राजनीतिक पंडित बताते है कि पीएन सिंह को शून्य पर ले जाने की कोशिश प्रदेश भाजपा के लिए महंगा साबित हो सकता है। आज भी पीएन सिंह को चाहने और माननेवालों की संख्या कम नहीं।
विद्रोही24 के विश्वसनीय सूत्र बताते है कि श्रवण यादव अपने पूरे राजनीतिक जीवन में पहली बार जिला कमेटी में स्थान बनाया, 20 साल पूर्व यह प्रखंड का संयोजक था और अब सीधे इसे जिलाध्यक्ष बना दिया गया। इसी बीच कभी किसी कोई पद पर नहीं रहा। ऐसे में तो कोई भी व्यक्ति सवाल उठायेगा ही? सूत्र बताते है कि इस व्यक्ति पर झरिया चुनाव के समय भीतरघात का भी आरोप हैं। कभी इसे चुनाव में कोई जिम्मेदारी तक नहीं मिली।
शायद लगता है कि झरिया में ही रहनेवाले सरोज सिंह जो बाबूलाल मरांडी और कर्मवीर सिंह के अभी खास बने हुए हैं, जिनका ज्यादातर समय रांची में ही बीतता है, धनबाद से लोकसभा का चुनाव भी लड़ने का ऐलान कर चुके हैं। इनके कहने पर इसे महानगर अध्यक्ष बना दिया गया, लोग बताते है कि सरोज सिंह ने घोषणा के पूर्व ही धनबाद परिसदन में पार्टी के लोगों के सामने यह डंके की चोट पर कहा था कि श्रवण राय ही हर हाल में जिलाध्यक्ष बनेंगे, कोई रोक नहीं सकता।
विद्रोही24 के विश्वसनीय सूत्र यह भी बताते है कि जिसे कर्मवीर सिंह ने महानगर अध्यक्ष बनाया है। उसे तो भाजपा की पंचनिष्ठा और एकात्म मानव दर्शन का भी पता नहीं हैं। उसे भाजपा के बारे में पांच मिनट बोलने को कहा जाये, बोल नहीं सकता। आखिर इसे किस आधार पर इतनी बड़ी जिम्मेदारी दे दी गई। उधर धनबाद ग्रामीण में भी मुंडा पंजाबी घनश्याम ग्रोवर जो पहली बार पार्टी में जिला उपाध्यक्ष बने थे, उन्हें ग्रामीण अध्यक्ष की जिम्मेदारी दे दी गई। ऐसे में धनबाद में भाजपा की मिट्टी पलीद तय है।
हालांकि प्रदेश कार्यालय ने इन दोनों के नामों पर मुहर लगा दी, लेकिन अभी तक किसी भाजपा के प्रमुख नेताओं या कार्यकर्ताओं ने इनका स्वागत तक नहीं किया। मतलब इनके पद मिलने से ऐसा सन्नाटा छाया हुआ हैं, वो भी भाजपा में। जिसे देखकर दूसरे दलों में खुशियां छाई हुई हैं। कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि जिस काम को हमलोग नहीं कर पाये, वो हमारा काम भाजपा के प्रदेश नेताओं ने कर दिया। इसका लाभ आनेवाले समय में इंडिया गठबंधन को जरुर मिलेगा।
कुछ तो यह भी कहते हैं कि जब झरिया से ही किसी को जिलाध्यक्ष बनाना था तो राज कुमार अग्रवाल में क्या बुराइयां थी। वो भाजपा के स्थापना काल से हैं। वे तो निर्दलीय रुप में मेयर का चुनाव लड़े और बिना साधन के 26 हजार वोट पाये और जब यादवों से ही इतना प्रेम था तो श्रीराम यादव में क्या बुराई थी, कम से कम इन पर तो कोई अपराधिक केस नहीं था। सूत्र तो यह भी बता रहे हैं, घनश्याम ग्रोवर को अध्यक्ष बनाने में गोविन्दपुर के धन्ना सेठ ने अपना बोरा खोला, वहीं दूसरी ओर श्रवण यादव को बनाने में झरिया के एक बड़े नेता ने कहा कि प्रदेश को पैसा हम ही पहुंचा रहे हैं, तो नेता धनबाद का कौन बनायेगा हम ही न। क्या समझे?