झारखण्ड मे पूर्व मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने ऐसी राजनीतिक चाल चली कि, बेचारी भाजपा गाना गाने लगी, दिल के अरमां आंसूओं में बह गए …
झारखण्ड में पूर्व मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने ऐसी राजनीतिक चाल चल दी कि बेचारी भाजपा फिल्म निकाह का गाना गाने लगी। गाने के बोल थे – दिल के अरमां आंसूओं में बह गए, हम वफा करके भी तन्हा रह गए, दिल के अरमां आसूओं में बह गए … बेचारी भाजपा। क्या-क्या नहीं सोच रखी थी। हेमन्त सोरेन को जेल भेजेंगे।
जेल जाने पर जैसे ही हेमन्त सोरेन अपनी पत्नी कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री बनाने की पेशकश करेंगे। झामुमो में विद्रोह हो जायेगा। बसन्त सोरेन और सीता सोरेन इसके बाद विद्रोह का बिगुल फूंकेंगे। झामुमो कई टूकड़ों में बंट जायेगा। फिर हम उसमें से एक टूकड़े को लेकर, झारखण्ड में अपनी सरकार बनायेंगे। हर-हर मोदी, घर-घर मोदी का नारा लगायेंगे।
लेकिन ये क्या? यहां तो सब उलटा हो गया। न कल्पना सोरेन मुख्यमंत्री बनीं। न सीता सोरेन और न ही बसंत सोरेन ने बिगुल फूंका। न पार्टी टूटी, न झामुमो के विधायक टूटे। उलटे हेमन्त सोरेन पूरे देश में आदिवासियों के एक बड़े नेता के रुप में प्रतिष्ठित हो गये। कल तक जो झारखण्ड तक सीमित थे। आज हेमन्त सोरेन का नाम लोकसभा और राज्यसभा में गूंज रहा है। केन्द्र की भाजपा सरकार को बोलते नहीं बन रहा है।
कमाल तो यह भी हो रहा है कि जो मीडिया केन्द्र की भाजपा सरकार के इशारे पर हेमन्त सोरेन के खिलाफ अनाप-शनाप बक रही थी। उनके खिलाफ रांची के एससी-एसटी थाने में प्राथमिकी तक दर्ज हो रहे हैं। जिस भाजपा में कभी बाबूलाल मरांडी और अर्जुन मुंडा स्वयं को आदिवासी नेता के रुप में प्रतिष्ठित करवा रहे थे, इन दोनों की छवि, हेमन्त सोरेन के आगे धूमिल हो चुकी है।
झारखण्ड ही नहीं, बल्कि पूरे देश के मीडिया हाउस में न चाहकर भी लोगों को हेमन्त सोरेन के बारे में चर्चा करना पड़ रहा है। जो मीडिया हाउस और भाजपा के लोग हेमन्त सोरेन को भगोड़ा कहकर चिढ़ा रहे थे, उनकी आज बोलती बंद है। कल ही भाजपा विधायक दल का रांची के प्रदेश कार्यालय में बैठक था। लेकिन उस बैठक में सारे भाजपाइयों के चेहरे लटके हुए थे। आखिर ये चेहरा क्यों लटका हुआ था। हर कोई समझ सकता है।
दरअसल हेमन्त सोरेन ने अपनी राजनीतिक गतिविधियों से ऐसी बैटिंग की है कि इस बैटिंग की कल्पना भाजपा के राजनीतिक रणनीतिकार भी नहीं समझ पायें होंगे। राजनीतिक पंडित तो बताते हैं कि भाजपा के झारखण्ड प्रभारी पिछले कई दिनों से रांची में बैठे हुए थे। शायद उन्हें भरोसा दिलाया गया था कि झामुमो-कांग्रेस में विद्रोह की स्थिति बनेगी और भाजपा को इसका फायदा मिलेगा। लेकिन उन्हें भी निराशा हाथ लगी।
इधर भाजपा के प्रदेशस्तरीय नेताओं ने जो ताने-बाने बूने थे। सबके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही हैं। अब क्या बयान देंगे। नई सरकार तो अभी-अभी आई है। उसके खिलाफ अब बोलने को नया क्या है? अब तो थोड़ा इन्तजार करना पड़ेगा। तब तक लोकसभा का चुनाव और उसमें भाजपा को फायदा ही हो जायेगा, इसकी गारंटी भी नहीं, क्योंकि सारे राजनीतिक फायदे तो फिलहाल झामुमो उठा ले गई।
अब इनके पास है क्या? यानी वो लोकोक्ति याद है न – माया में दोनों गये, माया मिली न राम। तो भाजपा को न सत्ता मिली और न ही आनेवाले समय में लोकसभा चुनाव में वो फायदा ही उठा पायेगी। राजनीतिक फायदा तो अब न चाहकर भी झामुमो गठबंधन को ही मिलेगा।
मतलब नरेन्द्र मोदी की सारी कसरत काफूर और रही सही कसर इस पार्टी के प्रदेश संगठन मंत्री कर्मवीर सिंह ने निकाल दी। जिसने संगठन को मजबूत करने के नाम पर ऐसे-ऐसे लोगों को जिलाध्यक्ष बना दिया। जिसको लेकर भाजपा के समर्पित कार्यकर्ता ही गुस्से में हैं और पार्टी से किनारा करने लगे हैं। तो नुकसान किसका होना है। वो भाजपा आज ही बेहतर ढंग से समझ लें तो ज्यादा अच्छा रहेगा।