कोरोना काल में जिन्होंने अपनों को खोया या इलाज के लिए दर-बदर भटक रहे हैं, वे पूछ रहे हैं हेमन्त जी, क्या ये विज्ञापन इतना जरुरी था
क्या ये विज्ञापन इतना जरुरी था मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन जी? आखिर कौन लोग आपके आस-पास है, जो जनता के सामने आपकी छवि को नष्ट करने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं, फिर भी उन्हें सफलता नहीं मिल पा रही, लेकिन मेहनत तो इस कदर कर रहे हैं कि आपकी छवि अब गई कि तब गई। आप स्वयं बताएं कि जिस कोरोना संक्रमण काल में लोग प्रतिदिन मौत से जूझ रहे हैं, जहां प्रत्येक दिन मौतों का तांडव विभिन्न अस्पतालों में हो रहे हैं, जहां अब श्मशान भी छोटी पड़ने लगी हैं?
जहां सड़कों पर भी शव के अंतिम संस्कार हो रहे हैं, वहां इस प्रकार के विज्ञापन उन प्रभावित परिवारों तथा भयभीत जनता के दिलों पर रहम लगाने के काम करेंगे या उन्हें उद्वेलित करेंगे? जरा सोचियेगा जरुर? क्योंकि आप संवेदनशील है, बाकी लोग जो हैं सो हइये हैं। क्या ये विज्ञापन इतना जरुरी था, कि सारे अखबारों को भर-भर पेज दे दिये गये?
भाई आज झारखण्ड का स्थापना दिवस था क्या? या कोई बड़ा त्योहार या कोई बड़ा ऐसा दिन जो झारखण्ड या आपसे जुड़ा था? जिसे देखते हुए सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग ने बड़ी उदारता बरती। भाई मेरी सोच के अनुसार तो यह कार्य ठीक उस लोकोक्ति के अनुसार हैं – “शरीफ के घर आग लगे … … … …”। जिन्होंने इस प्रकार के विज्ञापन प्रकाशित करवायें हैं, मैं उसकी कड़ी निन्दा करता हूं, क्योंकि ये समय इस प्रकार के विज्ञापन छपवाने का नहीं, बल्कि दुखों के सागर में डूबे झारखण्ड की जनता के आंखों से निकलते आंसूओं को पोछने का हैं।
क्या आपको पता है कि आज ही रांची के रिम्स में आपके स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता के समक्ष इलाज के अभाव में अपने पिता को खो चुकी एक बिलखती बेटी क्या कही? जरा आप उस विडियो को देखिये और सुनिये। वो मंत्री को दुत्कारती है, यही नहीं वह वहां विजुयल उठा रहे मीडियाकर्मियों को भी फटकारती है, वो कहती है कि उसके पिता का इलाज नहीं हो सका और ये पत्रकार मंत्री का इंटरव्यू ले रहे हैं, मतलब यहां की पत्रकारिता और सरकार की क्रियाकलाप पर उसकी ऐसी बेबसी कोई भी देखेगा तो स्वयं को शर्मसार कर लेगा, पर पता नहीं आपके स्वास्थ्य सचिव को ये सब दिखता है भी या नहीं।
हमारे विचार से दिखेगा कैसे? मैंने तो अपनी आंखों से देखा कि स्वास्थ्य सचिव के के सोन के कार्यालय में हजारीबाग और गोड्डा से दो परिवार मिलने आये थे, पर के के सोन ने अपने कार्यालय में उपस्थित होने के बावजूद, उनसे मिलने से इनकार कर दिया। आज भी लोगों की पहली प्राथमिकता है कि के के सोन को स्वास्थ्य सचिव पद से हटाया जाय, क्योंकि ये कोरोना संक्रमण काल में जनता को लाभ पहुंचायेंगे, इसकी संभावना न के बराबर है, जबकि दूसरी ओर आज भी जनता डा. नितिन मदन कुलकर्णी को उक्त स्थान पर देखना चाहती है। शायद वो देख चुकी है कि पूर्व में नितिन मदन कुलकर्णी ने किस प्रकार जनता को सम्मान के साथ-साथ सेवाएं भी उपलब्ध कराई।
हमें याद है कि पिछले साल जिस प्रकार आपने (मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने) कोरोना काल में जनता को सेवाएं दी, इस साल वो सेवाएं दिख नहीं रही, क्योंकि ज्यादातर आपके अधिकारी मस्ती में हैं और अपनी सेवाओं को सही ढंग से नहीं दे पा रहे, ऐसा क्यों हुआ और कैसे हुआ? हमसे बेहतर और कौन जान सकता है?
कमाल है, आप बेड की रोना रो रहे हैं, आप निजी अस्पतालों का रोना रो रहे हैं, जबकि आपके पास इससे बेहतर-बेहतर व्यवस्था करने की क्षमता है, संसाधन है, पर आपका ध्यान उस ओर नहीं जा रहा है। देखना हैं तो अपने आस-पास के मुख्यमंत्रियों का कार्य देखिये, जिसने अपने संसाधनों का कैसे इस कालखण्ड में सदुपयोग कर रहे हैं। क्या जिस मैदान में आप क्रिकेट का मजा ले सकते हैं, वो मैदान का सदुपयोग कोरोना प्रभावित लोगों के लिए नहीं हो सकता।
जब कई सामाजिक संगठन रांची में ही रहकर, इस कालखण्ड में अपने-अपने ढंग से सेवाएं दे रहे हैं तो उनके साथ मिलकर आप बेहतर नहीं कर सकते, कर सकते है न, बस दृढ़ इच्छाशक्ति की जरुरत है, साथ ही जरुरत है ऐसे लोगों की भी जो सही में आपका मार्गदर्शन करें, पर यहां तो यह होता है कि जैसे ही कोई विपक्ष में रहता है, उसे ज्ञान देनेवाला कोई नहीं होता, पर जैसे ही सत्ता में आता हैं, सत्ता में रहनेवाला ही पता नहीं कहां-कहां से ज्ञान देनेवाले को उठा लाता है, जबकि झारखण्ड की जनता ने आपको विधानसभा चुनाव में अच्छा ज्ञान दिया था, हमें लगा कि आप उसे गिरह पार कर आगे बढ़ेंगे, पर आज का विज्ञापन बता दिया कि आप गलत लोगों के संगत में हैं।
अंत में आपको फिर कह रहा हूं कि जनता ने बिना विज्ञापन के, बिना किसी अखबार व चैनल के सहयोग पर सत्ता के सिंहासन पर विराजमान किया था, ऐसे में आप फिसल कैसे रहे हैं, जनता पर विश्वास कीजिये और जनता की सेवा में लग जाइये। एक से एक रांची में दानवीर, समाजसेवी है, उनसे मिलकर बात करें कि कैसे इस विपदा से लड़ा जाये, जनता को सेवा उपलब्ध करा दी जाये। बड़े-बड़े स्पोर्टस काम्पलेक्सों को कोविड सेन्टर बनाइये। वहां बेड-आक्सीजन की व्यवस्था कराइये।
फालतू के पैसे इधर-उधर फेकने से अच्छा है कि जनहित में उसे खर्च किया जाये। आशा है, आप इस आलेख पर ध्यान देंगे और “जनता का हेमन्त” बनकर दिखा देंगे। आप ऐसा कर सकते हैं, क्योंकि मैं आपको अच्छी तरह जानता हूं। रही बात मधुपुर विधानसभा की, उसकी चिन्ता छोड़िए, जैसे ही आप इधर सेवा पर ध्यान देंगे, उसका प्रभाव मधुपुर चुनाव पर पड़ेगा और वहां भी बिना हर्रे-फिटकरी के आपके प्रत्याशी की जीत हो जायेगी।