झारखण्ड की वर्तमान राजनीति में पूरी तरह अनफिट सुबोधकांत सहाय को प्रदेश अध्यक्ष बनाना, मतलब कांग्रेस का झारखण्ड में लूटिया गोल कराना है
झारखण्ड की वर्तमान राजनीति में पूरी तरह अनफिट हो चुके सुबोधकांत सहाय को अगर कांग्रेस फिर से प्रदेश अध्यक्ष बनाकर फिट करना चाहती है, तो इसका मतलब हुआ कि कांग्रेस खुद चाहती है कि उसका जो भी बचा-खुचा झारखण्ड में जनाधार हैं, वो समाप्त हो जाये। हां, एक समय था कि सुबोध कांत सहाय का जनाधार था, जब वे जनता पार्टी में थे। चक्र बीच हल लिये किसान का झंडा ढोते थे। लोकनायक जयप्रकाश नारायण को अपना नेता मानते थे।
चंद्रशेखर के चहेते थे। चंद्रशेखर ने अपने चार महीने के शासनकाल में इन्हें महत्वपूर्ण मंत्रालय भी सौंप दिये थे, क्योंकि उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था। बाद में जब सुबोधकांत सहाय ने देखा कि उनकी राजनीति नहीं चल पा रही, कुछ फायदा नहीं हो रहा, तो उन्होंने कांग्रेस का हाथ पकड़ा। संयोग था। जनता अटल बिहारी वाजपेयी से नाराज चल रही थी। वे रांची से कांग्रेस के टिकट पर लड़ें और सीधे दिल्ली पहुंच गये। देखते ही देखते मनमोहन सिंह के मंत्रालय में भी उन्हें जगह मिल गई और उन्होंने इसका फायदा भी उठाया। बाद में इन पर दाग भी लगे। ये तो सुबोधकांत सहाय को भी पता होगा। भाजपा ने इन पर खुब उस दौरान भ्रष्टाचार के गोले भी दागे। जिससे वे लहुलूहान भी हुए और फिर रांची सीट उन्होंने गवां दी।
सच्चाई यह है कि कांग्रेस का झारखण्ड में अब कोई जनाधार नहीं हैं। जो भी इसका जनाधार था। उस जनाधार पर भाजपा ने कब्जा कर लिया और जो बचा-खुचा था वो झामुमो और राजद ने आपस में बांट लिया। हां, ये बात और है कि कुछ मिशनरियां और उससे जुड़े लोग या वैसे आदिवासी जो धर्मांतरित होकर ईसाई बन गये हैं। उन आदिवासी बने ईसाईयों को राहुल व सोनिया में अपनत्व दिखता है। जिस कारण वे न चाहकर भी राहुल व सोनिया के नाम पर ही कांग्रेस को वोट देते हैं। इसमें न तो सुबोधकांत सहाय की भूमिका है और न किसी और झारखण्डी नेता की। मतलब यहां कोई भी प्रदेश अध्यक्ष बनेगा, धर्मांतरित आदिवासी ईसाई कांग्रेस को ही वोट देंगे या कांग्रेस से जिसका गठबंधन होगा, उसी को वोट देंगे, जिसकी संख्या उतनी भी नहीं, जितनी की ढिंढोरा पीटी जाती है।
यहां अगर किसी पार्टी का जनाधार है, तो वह हैं भारतीय जनता पार्टी और दूसरी झारखण्ड मुक्ति मोर्चा। कभी यहां लालू की पार्टी राजद भी कमाल दिखाती थी। पर आज वैसी स्थिति नहीं हैं। यहां आज ये तीनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ लें तो इन सभी का सफाया हो जाये, पर अगर तीनों मिलकर लड़ें तो भाजपा के लिए निश्चित ही एक-एक सीट निकालना मुश्किल हो जाये। इसलिए जब मिलकर लड़ना है तो कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष सुबोधकांत सहाय हो या और कोई, क्या फर्क पड़ता है।
राजनीतिक पंडितों की मानें, तो कांग्रेस को चाहिए कि सुबोधकांत सहाय को आराम करने की सलाह दें तथा उन्हें अभिभावक के रुप में झारखण्ड में कांग्रेस को मजबूती प्रदान करने का जिम्मेवारी सौंपे तथा किसी युवा को प्रदेश अध्यक्ष का पद सौंपे। ऐसे भी जो वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर हैं, उससे किसी को गिला-शिकवा भी नहीं हैं। इसलिए बिढ़नी के खोते में हाथ डालने का ये समय नहीं। लेकिन अगर कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय नेतृत्व ये समझ कर चल रहा है कि सुबोध कांत सहाय को पार्टी अध्यक्ष बना देने से कांग्रेस यहां मजबूत हो जायेगी तो ये दिवास्वप्न के अलावा कुछ नहीं, क्योंकि कांग्रेस जो भी सीट लायेगी, वो गठबंधन और झामुमो के आशीर्वाद के कारण, न कि अपनी बदौलत।