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कृष्ण बिहारी मिश्र की नजरों में… पटना पहुंची लालकृष्ण आडवाणी की वो अद्भुत-अविस्मरणीय रामरथ यात्रा और पटनावासियों का श्रीरामप्रेम

23 अक्टूबर 1990 इस दिन सारे पटनावासी लालकृष्ण आडवाणी और उनके रामरथ को बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। पटना के गांधी मैदान में संध्या चार बजे उनकी सभा होनेवाली थी। लेकिन यह सभा संध्या चार बजे न होकर रात्रि के साढ़े दस बजे हुई और उस देर रात भी पटना का ऐतिहासिक गांधी मैदान लालकृष्ण आडवाणी को सुनने और उनके रामरथ को देखने के लिए उमड़ पड़ा था। भीड़ अप्रत्याशित थी।

दूसरे दिन पटना से प्रकाशित होनेवाली सारी अखबारों ने लालकृष्ण आडवाणी और उनके रामरथ से जुड़ी अप्रत्याशित सभा को अपने- अपने अखबारों में प्रमुख स्थान दिया, क्योंकि इसके सिवा उनके पास कोई चारा भी नहीं था। हालांकि उस वक्त पटना व दिल्ली में लालकृष्ण आडवाणी और उनके रामरथ की कट्टर दुश्मन की सरकार विराजमान थी, जो नहीं चाहती थी कि लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा और उनकी सभा को वो स्थान मिले, जो उस वक्त बिहार और अन्य राज्यों में मिल रहे थे।

हालांकि देश के अन्य भागों में सफलतापूर्वक लालकृष्ण आडवाणी रामरथ यात्रा कर चुके थे, क्योंकि लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी रामरथ यात्रा 25 सितम्बर 1990 को सोमनाथ से शुरु की थी और इसे अयोध्या तक जाना था। उस वक्त रामरथ यात्रा में देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी मौजूद थे, लेकिन उस वक्त नरेन्द्र मोदी को कोई जानता नहीं था। सभी के केन्द्र बिन्दु लालकृष्ण आडवाणी थे।

इधर बिहार में लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा 19 अक्टूबर 1990 से शुरु होनेवाली थी। बिहार के संघ और उससे जुड़े आनुषांगिक संगठनों और भारतीय जनता पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं ने आडवाणी की इस यात्रा को लेकर काफी तैयारी कर ली थी। तैयारी ऐसी थी कि यह यात्रा इतिहास बना दें और हुआ भी ऐसा ही, क्योंकि यहां मैंने पहले ही बता दिया था कि आडवाणी के घुर-विरोधियों की सरकार थी।

उस वक्त बिहार के मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव कई बार दिल्ली जाकर लालकृष्ण आडवाणी को मनाने का काम कर रहे थे और उनसे प्रार्थना कर रहे थे कि वे अपनी रामरथ यात्रा रोक दें। वे इसके लिए तर्क भी देते थे कि बिहार में उनकी यात्रा को वो पब्लिसिटी नहीं मिलेगी जो अन्य जगहों पर मिली है। बिहार दूसरा राज्य है। वो क्रांतिकारियों का राज्य है। वो ये सब धर्म की राजनीति में विश्वास नहीं करता।

लालू प्रसाद ऐसा इसलिए बोलते थे कि उन्हें अपने आप पर बहुत ही घमंड था। एक खास जाति के लोगों के वे नेता भी बनकर उभरे थे और वे लोग उनके एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार रहा करते थे। इसलिए उनको विश्वास था कि लालकृष्ण आडवाणी की रामरथ यात्रा को फ्लाप कराने में उनके लोग रुचि दिखायेंगे। लेकिन हुआ ठीक इसका उलटा।

इधर लालू बार-बार आडवाणी को रथयात्रा करने से मना कर रहे थे और आडवाणी बार-बार यही कहते कि उनकी रथयात्रा जारी रहेगी और लीजिये वो दिन आ भी गया। 19 अक्टूबर 1990 को धनबाद से लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा प्रारम्भ हुई। लोग बताते हैं कि धनबाद में ही जो आडवाणी का रथयात्रा ने रंग पकड़ना शुरु किया, उनके रथ के पहिये घुमने शुरु हुए और जनता ने जो उस रामरथ के प्रति अपना भाव प्रकट करना शुरु किया। लालू प्रसाद के दिमाग घुम गये।

लोग बताते हैं कि धनबाद में ही लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा तीन किलोमीटर लम्बी थी। कई जगहों पर मुस्लिम भी आडवाणी की रथयात्रा को देखने के लिए सड़कों पर उतर गये। इधर लालू और उनके चाहनेवालों ने अपने दिल को यह कहकर समझाया कि चूंकि धनबाद और दक्षिण बिहार में चूंकि आरएसएस की यहां पकड़ मजबूत है, इसलिए ऐसा वहां दिख रहा हैं, जैसे ही मध्य बिहार और उत्तर बिहार में यह रथयात्रा आयेगी, आडवाणी का भ्रम टूट जायेगा।

लेकिन हर जगह लालू को मुंह की खानी पड़ी। सभी जगह पासा पलटता जा रहा था। जैसे-जैसे रथयात्रा का दिन बढ़ता चला जा रहा था। रामरथ को देखने के लिए, आडवाणी को सुनने के लिए बिहार में भीड़ बढ़ती जा रही थी। कई जगहों पर महिलाएं अपने बच्चों, कई परिवार अपने पूरे सदस्यों के साथ आडवाणी के रामरथ को छूने के लिए लालायित दिखे। जैसे लगता हो कि उनके पास भगवान राम ही पहुंच चुके हैं।

आडवाणी की रथयात्रा बिहार में तहलका मचा रही थी और इधर केन्द्र में तत्कालीन प्रधानमंत्री वी पी सिंह और पटना में लालू प्रसाद यादव की नींद उड़ी जा रही थी। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आडवाणी की रथयात्रा से कैसे निबटा जाये। दूसरी ओर लाल कृष्ण आडवाणी को  ये आशा तनिक भी नहीं थी कि उनकी रथयात्रा को बिहार में ऐसा ऐतिहासिक स्वागत होगा। वे बिहारवासियों के अंदर छुपे राम के प्रति सुंदर भाव को देख खुद कई जगहों पर भाव-विह्वल होते दिखे।

उन्होंने उनके भावों को देख कई जगहों पर सर झूकाकर उनका अभिवादन किया और रथ से ही लोगों से कहते – सौंगध राम की खाते हैं, जनता जवाब देती – हम मंदिर वहीं बनायेंगे और इस प्रकार लोगों से आगे बढ़ने का आशीर्वाद मांगते। जनता धीरे-धीरे उनके रथ से पीछे हटती और उनका रथ तेजी से बढ़ता हुआ नहीं, बल्कि सरकता हुआ आगे बढ़ता।

इधर दक्षिण बिहार से जैसे-जैसे मध्यबिहार की ओर उनका रथ बढ़ रहा था। पटना नजदीक आता गया। हमलोग उस वक्त दानापुर में रहते थे। हमारे मुहल्ले के कई लोगों ने आडवाणी के रथ को देखने के लिए और उस रथयात्रा में शामिल होने के लिए प्रोग्राम बनाया। चूंकि हमलोगों को बताया गया था कि पटना में लालकृष्ण आडवाणी जी की चार बजे सभा हैं और हमलोग शुरु से जानते थे कि आडवाणी जी समय के पक्के पाबंद हैं। वे चार बजे पक्का पटना पहुंच जायेंगे।

इसलिए हमलोग पटना न आकर दिन के एक बजे  ही दीदारगंज पटना सिटी पहुंच गये, क्योंकि आडवाणी जी का रथ यहीं से पटना में प्रवेश करनेवाला था। लेकिन ये क्या? कोई सही-सही बता ही नहीं पा रहा था कि आडवाणी जी पटना तो दूर दीदारगंज कब पहुंचेंगे। कोई बोलता बस नजदीक ही आ गये हैं पर वो नजदीक कब दूरियां में बदल जाती, पता ही नहीं चलता। उस वक्त मोबाइल भी नहीं था कि लोग पता लगा लेते। अगर किसी के यहां टेलीफोन होता भी था तो वो बस इक्के-दूक्के घरों में ही होता जिनके लिये वो जरुरी होता।

इसी बीच सायं छः बज गये और आडवाणी जी का रथ हमारे सामने था। रथ पर सवार आडवाणी जी सभी का अभिवादन स्वीकार कर रहे थे। रथ धीरे-धीरे ससर रहा था। हमें ये जानते देर नहीं लगी कि देर का कारण क्या है? हर कोई आडवाणी और उनके रथ को निहार कर अपने आंखों में कैद कर लेना चाह रहा था। सभी के मुख से केवल जयश्रीराम ही निकल रहा था। ठीक उसी प्रकार जैसे कि आजादी के समय लोगों के मुख से वंदे मातरम् निकला करते थे। जयश्रीराम अभिवादन का मंत्र बन चुका था।

जैसे-जैसे पटना सिटी की सकड़ी रास्तों से आडवाणी का रथ आगे बढ़ रहा था। वैसे-वैसे भीड़ भी सड़कों पर उतरती जा रही थी। कही लोग श्रीराम और हनुमान की झांकी बनाकर रामरथ का स्वागत कर रहे थे तो कही रथ की आरती उतारी जा रही थी। कही लालकृष्ण आडवाणी को फूल-मालाओं से लादा जा रहा था तो कोई एक झलक पाने के लिए बेकरार था और इसी क्रम में दीदारगंज से पटना पहुंचने में एक सामान्य गाड़ी से जो चालीस-पचास मिनट से ज्यादा नहीं लगते हैं, आडवाणी जी की रथ को पहुंचने में चार घंटे से भी ज्यादा लग गये।

शायद यही कारण था कि जब लालकृष्ण आडवाणी साढ़े दस बजे रात को गांधी मैदान में भाषण दे रहे थे तब उन्होंने कहा था कि – “पटना में आकर तो उन्हें लग रहा है कि शायद ही कोई व्यक्ति आज घर में होगा, सभी लोग तो सड़कों पर हैं। मुझे हाजीपुर में भी सभा करनी है, वहां का टाइम संध्या पांच बजे हैं, लेकिन लगता है कि वहां अब उन्हें दूसरे दिन सुबह पांच बजे सभा करनी होगी, क्योंकि जो भीड़ उमड़ रही हैं, उस भीड़ को देखकर ऐसा ही लग रहा है। पटना के ऐतिहासक गांधी मैदान में  जो भीड़ उमड़ी हैं और इस देर रात में, वो बताने के लिए काफी है कि पटना और दिल्ली की सरकार देख लें कि जनता क्या चाहती है। फिर वे लोगों से कहते हैं – सौंगध राम की खाते हैं, जनता साथ देती है और कहती है – हम मंदिर वहीं बनायेंगे।”

पटना की देर रात आडवाणी की ऐतिहासिक विशाल जनसभा और पटना की गलियों और सड़कों पर उतरा समुद्र-ज्वार लालू प्रसाद का नींद उड़ा चुका था और दूसरे दिन अखबारों की सुर्खियों ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा। उसी वक्त अंदाजा लग गया था कि लालू प्रसाद और वीपी सिंह कुछ कलाबाजी दिखायेंगे और वो कलाबाजी दिखी जब 24 अक्टूबर को जब सारी दुनिया सो रही थी तो आडवाणी जी को अहले सुबह गिरफ्तार कर लिया गया और वहीं से उन्हें दुमका के मसानजोर भेज दिया गया।

हालांकि आडवाणी की रथ अयोध्या नहीं पहुंची। लेकिन करोड़ों भारतवासियों और देश के बाहर रहनेवाले दूसरे देशों में रहनेवाले असंख्य हिन्दूओं में भगवान राम के प्रति जो भाव में कमी आ गई थी, उस भाव को और बढ़ाने में सहायता पहुंचाई। लोगों को लगा कि सांस्कृतिक पुनरुत्थान के इस यज्ञ में हर भारतीयों को सहयोग देना चाहिए। कांग्रेस और भाजपा की विरोधी पार्टियां जिसने हर दम राम पर सवाल उठाएं, जिन्होंने राम को कभी स्वीकार नहीं किया, भाजपा के इस राममंदिर के आंदोलन पर हमेशा प्रश्नचिह्न खड़े किये।

इन लोगों ने भाजपा के उपर सवाल खड़ा करते हुए एक नया नारा खुद से चुन लिया और भाजपाइयों को चिढ़ाने लगे कि ‘मंदिर वहीं बनायेंगे पर तारीख नहीं बतायेंगे।’ और जब आज मंदिर बनकर तैयार है वो तारीख भी बता रहे हैं कि इस दिन उद्घाटन होगा। वे श्रीराममंदिर जाने से ऐतराज कर रहे हैं। किसी ने ठीक ही कहा है कि भगवान की भक्ति और राम का आशीर्वाद आततायियों को थोड़े ही प्राप्त होता है। ये तो उसी को प्राप्त होगा जो श्रीराम का है। श्रीराम का कौन है? वो तो पूरा विश्व देख रहा हैं। भगवान श्रीराम देख रहे हैं।

धन्य है, प्रधानमंत्री श्रीनरेन्द्र मोदी, जिन्हें यह सौभाग्य प्राप्त हुआ। जिन पर श्रीराम की कृपा है। नहीं तो विश्व में आज भी बहुत सारे लोग हैं, जो छटपटा रहे हैं कि भगवान राम उनको ऐसे समय में बुला लें। लेकिन, ऐसी सौभाग्य हमें भी कहां। लेकिन, इस बात का तो गर्व हैं कि जिस श्रीरामजन्मभूमि मंदिर के लिए हमारे पूर्वजों ने साढ़े पांच सौ वर्षों तक संघर्ष किया। वो राममंदिर आज हमारे सामने बनकर तैयार है।

आज नहीं तो कल भगवान श्रीराम हमें अपना दर्शन जरुर देंगे, क्योंकि मैंने देखा है कि जब 1981 में, जब मैं मात्र 14 साल का था, हमारे पिताजी सपरिवार तीर्थयात्रा के लिए निकले थे। उसी दौरान हमलोग अयोध्या पहुंचे थे। अयोध्या की स्थिति उस वक्त बहुत ही खराब थी। अयोध्या स्टेशन पर बिजली तक नहीं थी, अंधेरा छाया हुआ था। सड़कों पर भी अंधेरा छाया था। जैसे-तैसे हमलोग धर्मशाला पहुंचे और हमारे पिताजी हम-सब को छोड़कर उस स्थान पर पहुंचे जहां राम-लला विराजमान थे और उनका दर्शन कर जब वे हमलोगों के पास लौटे थे तब उनके चेहरे का भाव, मैंने पढ़ लिया था।

लेकिन अब मैं जब अयोध्या जाउँगा तो भगवान श्रीराम को देख, अपने स्वर्ग में रह रहे पिता को जरुर बताउंगा कि अपने रामजी अपने जन्मस्थान पर दिव्यता के साथ पहुंच चुके हैं। अयोध्या में उनके जन्मस्थान पर श्रीराममंदिर बन चुका है, लोग बड़ी संख्या में आकर उनका दर्शन लाभ कर रहे हैं। ऐसे भी भारत और राम को एक दूसरे से कौन जुदा कर सकता है। भगवान राम तो भारत की मिट्टी मे समाये हैं, उस मिट्टी से हमारे राम को कौन निकाल सकता है?