भविष्य में भारतीय सेना जहां भी सर्जिकल स्ट्राइक करें, वहां विपक्षी नेताओं को पहले फेंकें, ताकि वे मानव लाशें गिन सकें
अब चूंकि वायुसेना चीफ बी एस धनोआ ने बालाकोट में भारतीय वायु सेना द्वारा किये गये हमले को लेकर स्पष्ट कर दिया कि भारतीय लड़ाकू विमानों ने अपना टारगेट सफलतापूर्वक हिट किया, और टारगेट हिट करने के बाद मानव लाशों को गिनना उनका काम नहीं है, इसके बाद इस प्रकरण पर सवाल उठानेवालों को अब सवाल उठाना बंद कर देना चाहिए।
क्योंकि इससे भारतीय सेना का मनोबल गिरता है, और इसके बावजूद भी विपक्षी दल के नेताओं द्वारा प्रश्न चिह्न लगाने का क्रम जारी रहता है, तो भारतीय सेना को चाहिए कि अगली बार जब भी कोई टारगेट हिट करने का काम वो करें, तो अचानक ममता बनर्जी, दिग्विजय सिंह, पी चिदम्बरम जैसे राजनीतिज्ञों को लास्ट मोमेंट में उठाकर, उन स्थलों पर पहले उन्हें फेंकें, जहां वे टारगेट हिट करने गये हो, ताकि टारगेट हिट करने के बाद वे लाशों को आराम से गिन सकें तथा सही मायनों में टारगेट हिट होने के बाद अपने समर्थकों, पाकिस्तानी मीडिया, विदेशी मीडिया तथा पाकिस्तान समर्थक भारतीय मीडिया और यहां की जनता को सही–सही बात बता सकें कि सचमुच में टारगेट हिट हुआ या नहीं।
भारत सरकार को भी चाहिए इस कार्य में भारतीय सेना की वह मदद करें ताकि आनेवाले दिनों में किसी राजनीतिक दलों के मूर्ख नेताओं, बेवकूफ मीडिया तथा गदहों की जमात के द्वारा बेकार के सवाल नहीं उठाया जा सकें। हद हो गई, संपूर्ण विश्व में भारत ही एकमात्र देश हैं, जहां की कुछ मीडिया, नेता तथा कुछ सामाजिक संगठन ऐसे–ऐसे सवाल दागते हैं, जो भारत की संप्रभुता को ही चुनौती दे देते हो, जरा इन गधों की जमात से पूछिए कि अमरीका ने जब लादेन को मारा था, तब कितने अमरीकियों ने अमरीकी राष्ट्रपति से लादेन के मारे जाने की सबूत के तौर पर लाश दिखाने की मांग की थी?
लेकिन भारत में जरा देखिये, पीएम मोदी के बहाने भारतीय सेना की इज्जत उतारी जा रही है, और उसमें भी बेशर्मी की लबादा ओढ़कर, वे लोग सवाल पूछ रहे हैं, जिन्होंने मुंबई की घटना के बाद, अपने–अपने घरों में बैठकर, अपनी–अपनी पत्नियों के आंचल में मुंह छुपाकर बैठे हुए थे।
इसमें कोई दो मत नहीं कि भारतीय वायु सेना ही नहीं, बल्कि भारतीय सेना में कार्यरत वे लाखों सैनिक, वीर योद्धा, आश्चर्य करते होंगे कि वे किस देश की हिफाजत के लिए युद्ध कर रहे हैं, उस देश के लिए जहां के नेता, लोग, और कुछ मीडिया उनकी वीरता पर ही शक करते हैं, वे लाशों की गिनती की प्रुफ मांग रहे हैं, वे विपरीत परिस्थितियों में लड़कर भारतीय स्वाभिमान की रक्षा कर रहे हैं, इसकी बात नहीं उठाकर, विदेशी मीडिया की बातों पर ज्यादा भरोसा कर रहे हैं और हमारी वीरता पर ही शक कर रहे हैं।
वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेन्द्र नाथ विद्रोही24.कॉम से बातचीत में कहते हैं कि लोकतांत्रिक देश में विरोध का तरीका हमेशा बैलेट से होता रहा हैं और होता रहेगा, आज बैलेट का स्थान इवीएम मशीनों ने ले लिया है। किसी से राजनीतिक, वैचारिक, मतभेद हो सकते हैं, किसी के चेहरे से एलर्जी हो सकती है ( जैसा कि न दिनों ज्यादातर विपक्षी नेताओं एवं स्वयं घोषित बुद्धिजीवियों को नरेन्द्र मोदी के चेहरे से हो रही हैं ), लेकिन सेना के शौर्य और उसकी बहादुरी पर सवाल उठानेवाले सीधे–सीधे देशद्रोही हैं।
1947 से आज तक किसी भी युद्ध में न तो किसी प्रधानमंत्री से मरनेवाले शत्रुओं और न ही मरनेवाले शहीदों की गिनती करने की अपेक्षा की गई। ये दिमागी दिवालियापन है, जब हम ऐसे किसी सैन्य अभियान के बाद मरनेवाले दुश्मनों या दुश्मनों के हुए नुकसान का प्रमाण मांग रहे हैं। भारत में इन दिनों नया वर्ग जन्म लिया है, जो देशभक्ति और देशद्रोह का फर्क अब नहीं जान पा रहा। मोदी विरोध और सैनिकों से उनके अभियान से हिसाब–किताब मांगने में ठीक उतना ही फर्क है, जितना डाल पर बैठकर, उसी डाल को काटनेवाले कालिदास और अभिज्ञान शांकुतलम् की रचना करनेवाले कालिदास में था।