अपनी बात

जनहित में झारखण्ड लैंड म्यूटेशन एक्ट 2020 में उल्लेखित विवादितों से हेमन्त सरकार जितना जल्द दूरी बना ले, उतना ही अच्छा है

इससे अच्छा तो बिहार लैंड म्यूटेशन एक्ट 2011 है, जहां बिहार के नागरिकों को उनके अधिकार सुरक्षित है, जहां कोई भी बिहार का नागरिक अपने जमीन के मामले में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी दिखने पर वह अंचलाधिकारी समेत भू-राजस्व से संबंधित किसी भी अन्य अधिकारी के खिलाफ थाने में प्राथमिकी या न्यायालय में अपनी शिकायते दर्ज करा सकता है।

लेकिन झारखण्ड लैंड म्यूटेशन एक्ट 2020 में इस पूरे मामले को उठा लिया जाना, या इसमें अतिरिक्त प्रावधान जोड़ दिया जाना कि इसके लिए कोई भी आम आदमी को ये अधिकार ही समाप्त कर दिया गया हो कि एक्ट धारा 22 के तहत अब कोई अंचलाधिकारी व अन्य अधिकारियों द्वारा जमीन से संबंधित मामलों के निबटारे को लेकर किसी भी थाने में प्राथमिकी या न्यायालय में शिकायत दर्ज नहीं की जा सकती।

बताता है कि इससे झारखण्ड में क्या होगा? शायद यही कारण रहा है कि भूमि संरक्षण से संबंधित मामलों को लेकर बने जन-संगठनों ने इस पर आपत्ति दर्ज करा दी है, तथा हेमन्त सरकार को इसके खिलाफ चेतावनी भी जारी कर दी है। इन संगठनों का कहना है कि भाजपा ऐसा करती है तो समझ में आता है कि भाजपा इन्हीं सभी कामों के लिए जानी जाती है, पर हेमन्त सोरेन के कार्यकाल में ऐसे विधेयक को विधानसभा से पारित कराने की योजना समझ से परे है।

सूत्र बता रहे है कि झारखण्ड लैंड म्यूटेशन एक्ट 2020 को लेकर कैबिनेट की सहमति मिल चुकी है और इसे मानसून सत्र में ही पास करने की सरकार ने योजना बना रखी है। इस बिल में उल्लेखित प्रावधानों जैसे म्यूटेशन, जमाबंदी रद्द करने और किसानों की खाता पुस्तिका आदि पर किसी को कोई आपत्ति नहीं है, आपत्ति इस बात को लेकर है कि आखिर भूमि से संबंधित मामलों में गड़बड़ी पाई जाने पर अंचलाधिकारी व अन्य अधिकारियों के खिलाफ थाने या न्यायालय में शिकायत दर्ज न किये जाने की बातें क्यों की गई है?

जबकि झारखण्ड में ज्यादातर मामले अंचलाधिकारियों और अन्य अधिकारियों के खिलाफ ही देखने को मिल रही है, अगर ये बिल विधानसभा से पारित हो जाता है, तब तो इन अधिकारियों की बल्ले-बल्ले हो जायेगी और ये गड़बड़ियों को और अंजाम देंगे, क्योंकि फिर तो इन्हें कानूनी रक्षात्मक छूट मिल जायेगी, जिससे अंततः हानि यहां के आदिवासियों-मूलवासियों को ही है।

क्योंकि अभी भी इन्हें कानूनी बारीकियों में उलझा कर ऐसा रख दिया है कि ये खुद तो जैसे-तैसे जिंदगी गुजारते हैं, पर इन्हीं की जमीन पर भू-माफिया, भ्रष्ट अंचलाधिकारियों से मिलकर कब्जा कर लेते हैं और इनके जमीन के असली वारिस बन जा रहे हैं। हमें लगता है कि हेमन्त सरकार इस पर विचार करेगी और ऐस प्रावधानों से खुद को अलग करेगी, साथ ही लोगों को इस विधेयक से सही मायनों में उनके अधिकारों की रक्षा हो, ऐसी सोच के साथ इस विधेयक पर पुनर्विचार करेगी।