त्रिपुरा में भाजपा को लेनिन की प्रतिमा ध्वस्त करने का जनता ने जनादेश नहीं दिया
त्रिपुरा में जो भी कुछ हो रहा है, उसे सही नहीं ठहराया जा सकता। भाजपा को त्रिपुरा की जनता ने लेनिन की प्रतिमाओं को तोड़ने के लिए जनादेश नहीं दिया था और न ही किसी प्रकार का आतंक या माकपा कार्यकर्ताओं द्वारा पूर्व में की गई गलतियों या अत्याचारों के बदले, इन्हें भी आतंक फैलाने या अत्याचार करने का लाइसेंस दे दिया है। अच्छा रहेगा कि जितनी जल्दी हो ऐसी घटनाओं पर लगाम लगे, नहीं तो इसकी प्रतिक्रिया में अगर माकपा के लोग भी उतर आये तो आनेवाले समय में भाजपा के भी नेताओं की कई प्रतिमाएं विभिन्न चौक-चौराहों पर लगी है, ऐसे में भाजपा को ही दिक्कत होगी।
कमाल की बात है कि त्रिपुरा में लेनिन की मूर्तियां तोड़ी जा रही हैं, और झारखण्ड की विधानसभा तो लेनिन हॉल में ही चलती हैं, उसकी एक शिलापट्ट भी विधानसभा भवन में लगी हैं, जाकर कोई भी देख सकता हैं, जिस शिलापट्ट पर बड़े ही गर्व से लिखा है कि “इस भवन का नाम 22 अप्रैल 1970 को लेनिन जन्म शताब्दी के उपलक्ष्य में यहां पर हुई आम सभा में लेनिन हॉल रखा गया।“ आज भी इस लेनिन हॉल में विधानसभा की कार्यवाही बिना किसी द्वेष के चल रही है, ऐसे में त्रिपुरा के बेलोनिया सब डिवीजन के कॉलेज स्क्वायर में रुसी क्रांति के नायक व्लादिमीर लेनिन की प्रतिमा को गिराया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है।
इसमें कोई दो मत नहीं कि जहां जिस पार्टी का शासन चलता है, वहां उस पार्टी के लोगो की दबंगई खूब देखने को मिलती हैं। केरल और त्रिपुरा में संघ के स्वयंसेवकों और भाजपा कार्यकर्ताओं के खिलाफ माकपा कार्यकर्ताओं का अत्याचार और संघ के स्वयंसेवकों तथा भाजपा कार्यकर्ताओं की नृशंस हत्या उसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। कभी प. बंगाल में हुई सिंगुर की घटना माकपा कार्यकर्ताओं के अत्याचार की कहानियां कहती है, शायद माकपा के कार्यकर्ताओं की गुंडई के कारण ही बंगाल की जनता ने माकपा को सदा के लिए विदा कर दिया और उसके जगह पर तृणमूल कांग्रेस को सत्ता में बैठा दिया।
कहने का तात्पर्य हैं कि सभी दलों को कानून का शासन स्थापित करने का जनता जनादेश देती हैं, पर भारत की सभी राजनीतिक पार्टियों को लगता है कि उन्हें पांच साल मिल गया, जो चाहे करने को। यहीं प्रवृति हमारे समाज को बर्बाद करने में मुख्य भूमिका निभाती हैं। आश्चर्य की बात है कि विचारों की लड़ाई में पराजित लोग हिंसा का सहारा लेकर, अपनी बात शक्ति के बल पर मनवाना चाहते हैं, परन्तु उन्हें नहीं पता कि गांधी की हत्या और ईसा मसीह को शूली पर चढ़ा देने के बाद भी उनके विचारों को माननेवालों की संख्या में कभी कमी नहीं आई।
उसी प्रकार लेनिन की प्रतिमाओं को क्षतिग्रस्त कर, कोई यह सोचता है कि लेनिन को खत्म कर दिया तो वह महामूर्ख हैं, लेनिन कभी मर नहीं सकते, उनका विचार कभी मर नहीं सकता। अच्छा रहेगा कि लेफ्ट हो या राइट, गुंडागर्दी छोड़कर, विचारों की धरातल पर उतरें तथा एक बेहतर देश बनाने में मुख्य भूमिका निभाये।
इधर भाकपा माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने ठीक ही कहा कि भगत सिंह और उनके साथियों ने लेनिन से प्रेरणा लेते हुए अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ाइयां लड़ी थी। लिहाजा यह हमला भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रगतिशील साम्राज्यवाद विरोधी विरासत पर हैं। किसान, झुग्गी-झोपड़ीवासी, फुटपाथ दुकानदार, पकौड़ा विक्रेता आज ऐसे सारे लोग बुलडोजर की मार झेल रहे हैं। यह लड़ाई हिटलर बनाम लेनिन की है, यह लड़ाई कारपोरेट-बुलडोजर बनाम मेहनतकश लोगों और उनके जीवन व जीविका की है।
कहीं तालिबानी राह न धर लें