“इंडिया इज इंदिरा, इंदिरा इज इंडिया के बाद” अब PM मोदी की जबर्दस्त वापसी “जहां कमल, वहां मोदी”
आज अचानक कांग्रेस के एक बहुचर्चित नेता की याद आ गई। नाम है उनका – देवकांत बरुआ। जिन्होंने भारत की पूर्व प्रधानमंत्री के सम्मान में कह डाला था – “इंडिया इज इंदिरा, इंदिरा इज इंडिया।” उस वक्त उनकी वो जबर्दस्त खिंचाई हुई थी कि पूछिये मत, पर ये बात जरुर याद रखियेगा कि इस संवाद को देवकांत बरुआ ने कही थी, न कि इंदिरा गांधी ने। आज इसी तरह का मिलता जुलता डॉयलॉग हमें जमशेदपुर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मुख से सुनने को मिला – “जहां कमल, वहां मोदी।”
यानी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं स्वीकार कर रहे है कि भाजपा का मतलब नरेन्द्र मोदी, कमल छाप का मतलब नरेन्द्र मोदी और दूसरा कोई नहीं, इसलिए अगर वोट देना है तो कमल को दीजिये, कमल को वोट मिलते ही, यह वोट नरेन्द्र मोदी के पास चला जायेगा, फिर आप निश्चिंत हो जाइये, और जब नरेन्द्र मोदी भाजपा में नहीं रहेंगे तब क्या होगा? राजनीतिक पंडितों की माने तो प्रधानमंत्री के शब्दों में इसका मतलब भाजपा समाप्त।
ठीक उसी प्रकार, जैसे देवकांत बरुआ के दिमाग में आई थी, इंडिया इज इंदिरा, इंदिरा इज इंडिया। किसी के लिए यह बात छोटी सी लग सकती है, तो किसी के लिए बात ये ओछी भी हो सकती है, पर जो लोग संघ को जानते हैं, जो लोग संघ की एक राजनीतिक इकाई भाजपा को जानते हैं, वे समझ चुके है कि फिलहाल भाजपा संघ से छिटक चुकी हैं, संघ का कोई प्रभाव मोदी पर नहीं पड़ रहा।
जिस मोदी को संघ ने बनाया, आज वह व्यक्तिवाद की जड़े इस प्रकार भाजपा में जमा चुका है कि वो अपने आगे-पीछे किसी पुराने नेता को अपने पास टिकने ही नहीं दिया और जो नये लोग या समकक्ष हैं, उन्हें बता दिया कि आपको भी नरेन्द्र के शरण में आकर मोक्ष को प्राप्त करना है, रही बात आपके सम्मान की, तो वह सम्मान भी नरेन्द्र की कृपा से ही आपको प्राप्त हो सकता है, अन्यथा नहीं।
ऐसे जो लोग, भारत की जनता के माइन्ड को जानते हैं, वह यह भी जानते हैं कि जब वह किसी को प्यार करती हैं या सम्मान देती हैं तो छप्पड़ फाड़ कर देती हैं, उसके उदाहरण पं. नेहरु, लाल बहादुर शास्त्री, इन्दिरा गांधी होते हुए राजीव गांधी तक हैं, और बाद में इसका लाभ अटल बिहारी वाजपेयी को भी मिला, और फिलहाल इसका फायदा नरेन्द्र मोदी उठा रहे हैं।
नरेन्द्र मोदी के पूर्व में भी बहुत सारे इस देश में नेता हुए पर आज तक उन्होंने खुद को पार्टी से बड़ा बनने की कोशिश नहीं की, पर नरेन्द्र मोदी की जमशेदपुर में दिया गया बयान कि जहां कमल, वहां मोदी, बताने के लिए काफी है कि मोदी कमल के प्रतीक हो गये, और भाजपा अब गौण हो चुकी है, यानी नरेन्द्र मोदी का सितारा डूबा तो भाजपा भी साफ कमल भी साफ।
ऐसे में भाजपा और संघ को सोचना होगा कि आखिर ये मामला क्या हैं? पीएम मोदी को यह बात कहने की आवश्यकता क्यों पड़ गई? क्या सीएम रघुवर की जमशेदपुर पूर्व में हार की स्थिति को लेकर यह दिया गया बयान है कि जनता सीएम रघुवर को क्षमा करते हुए मोदी के नाम पर रघुवर दास को जीता दें? क्या जनता ऐसा करेगी, क्योंकि जनता तो जनता है, भारतीय लोकतंत्र की असली मालिक, वह कैसे यह बर्दाश्त कर लें कि जिसे वह नहीं चाहती, उसे वह किसी के नाम पर जीता दें और फिर अपनी छाती पर मूंग दलवाने के लिए तैयार रहे?
राजनीतिक पंडितों की मानें तो जहां कमल, वहां मोदी यह बताने के लिए काफी है कि भाजपा देर से ही सही देवकांत बरुआ की पैटर्न पर चलने लगी हैं, और जब भाजपा, कांग्रेस की देवकांत बरुआ की पैटर्न को अपना चुकी हैं तो उसे पता ही होगा कि आज देवकांत बरुआ और कांग्रेस कहां है? ऐसे में भाजपा और संघ को यह भी समझ लेना चाहिए कि आनेवाले समय में भाजपा और नरेन्द्र मोदी की क्या स्थिति होने जा रही हैं? कम से कम लालकृष्ण आडवाणी या डा. मुरली मनोहर जोशी जिस स्थिति में हैं, वैसी स्थिति में तो नहीं ही होंगे, क्योंकि इन दोनों नेताओं ने कभी भी किसी जनसभा में स्वयं को इस प्रकार से नहीं पेश किया, जैसा कि पीएम नरेन्द्र मोदी ने खुद को पेश करने की कोशिश की।