अपनी बात

हेमन्त व उनकी पुलिस को दोष देने के बजाय भाजपा नेता, प्रदीप, आदित्य, दीपक, संजय, सीपी, समरी, नवीन, वरुण बताएं कि रांची में रहकर ये मोराबादी मैदान क्यों नहीं भर पाये, क्या इन पर भी रोक थी?

अरे भाजपाइयों कुछ तो शर्म करो, अगर हेमन्त सोरेन की सरकार ने/उनकी पुलिस ने राज्य के दूसरे जिलों से आ रहे आपके कार्यकर्ताओं को रोकने की कोशिश की या रोक लिया तो आपके ये रांची में बैठे भाजपा से अनुप्राणित होनेवाले आधा दर्जन से भी ज्यादा मूर्धन्य नेताओं की टोली क्या कर रही थी? झाल बजा रही थी? वो कल अपनी बलहीनता का श्राद्ध कर रही थी।

कमाल की बात करते हो। भाजपा से तरमाल खाओगे आप और जब मर-मिटने की बात आयेगी तो मर-मिटने का काम दूसरे जिलों के कार्यकर्ताओं पर थोप दोगे? यह सवाल आपलोगों से क्यों नहीं पूछा जाना चाहिए कि आपकी ही कथनानुसार जब सारे जिलों  से आनेवाले कार्यकर्ताओं को उनके ही जिलों या रांची के आउटर साइड में ही रोक लिया गया तो आपके रांची के अंदर जो इतनी बड़ी फौज हैं, वो किस बिल में घुस गई थी?

आपको यह स्वीकारना ही होगा कि आप अब वो भाजपा नहीं हो, आप वातानुकूल होटलों, स्वनिर्मित वातानूकुलित कार्यालयों व घरों में आराम फरमानेवाले नेता हो। आप अपने कार्यकर्ताओं के छाती पर पांव रखकर/उनके सीने पर मूंग दलकर अपना तथा अपने परिवार का उत्सव मनानेवाले नेता हो।

आज रांची का एक-एक भाजपा कार्यकर्ता पूछ रहा है। रांची से तीन-तीन सांसद राज्यसभा पहुंच गये। नाम बताउं। लो नाम सुनो – प्रदीप वर्मा, आदित्य साहू, दीपक प्रकाश। इन तीनों नेताओं ने अपने बल पर कितने लोगों को रांची के मोराबादी में लाने की जुगत भिड़ाई? दूसरा रांची में ही तीन-तीन आपके विधायक।

नाम बताउं। तो लो सुनो – सीपी सिंह, समरीलाल, नवीन जायसवाल। इन तीनों नेताओं ने कितने लोगों को अपने साथ मोराबादी मैदान में लाया? एक सांसद संजय सेठ जो आज केन्द्र में मंत्री भी हैं। उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र से कितने लोगों को मोराबादी में लाया? आप ही का एक महानगरध्यक्ष है। नाम है -वरुण साहू। जब वो मोराबादी मैदान पहुंचा तो उसके साथ कितने लोग थे ?

अपनी गलती, बलहीनता, मूर्खता पर ध्यान न देकर दूसरे पर दोष मढ़ना ये कब से आपलोगों ने सीख लिया? सच्चाई यह है कि विद्रोही24 ने तो पहले ही अनुमान लगा लिया था कि आपकी सभा में आप कितना भी कूथ लें, दस हजार से ज्यादा की भीड़ नहीं पहुंचेगी और हुआ भी यहीं। जहां की आप बात कर रहे हो कि आपके द्वारा लाई गई भीड़ को रोका जा रहा था, आप उसी वीडियो को देखो कि उन्हें रोकने के बाद कितने लोग आंदोलनरत हैं। उसी से पता लग जायेगा कि भाजपा आज कहां हैं?

सच्चाई यही है कि जब से नई जिला कमेटी बनी है। पूरे प्रदेश में भूचाल आ गया है। आप जिन नेताओं को राज्यसभा में भेजे हो या जिन पर जिम्मेदारी का भार सौंपा हैं। उनकी इतनी हिम्मत नहीं कि वे इन समस्याओं को चुटकी में हल कर दें। उसका मूल कारण वे अपनी समस्याओं तथा अपने परिवार की समस्याओं को समाप्त करने के लिए राज्यसभा पहुंचे हैं। जो व्यक्ति अपने परिवार और परिवार की समस्याओं तक सिमटा हो, वो व्यक्ति समाज, दल या देश की क्या सेवा करेगा?

आपलोगों में नाना जी देशमुख, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, डा. मुरली मनोहर जोशी को देखना भी मूर्खता को सिद्ध करने के बराबर हैं। आप तो भाजपा की नई पौध हो। ढुलू महतो जैसे लोग आपके कर्णधार है और वैसे ही लोगों को जीताने तथा टिकट दिलाने में आप सब कुछ दांव पर लगाने के लिए तैयार रहते हो। ऐसे में भाजपा की धज्जियां कल उड़नी तो तय ही थी। इसमें हाय-तौबा कैसा? हां, अब भी देर नहीं हुई है, थोड़ा श्रम करिये, भाजपा कार्यकर्ताओं के हृदय पर जो जख्म पड़े हैं, उनके हृदय पर मलहम लगाइये।

लेकिन ये आपसे नहीं होगा, क्योंकि स्वार्थपरक व्यक्ति कब से देश और दल की बात सोचने लगा? आपको तो जो आइना दिखाता है। उसे आप अपना कट्टर दुश्मन मानते हो। उसके खिलाफ नाना प्रकार के षडयंत्र रचते हो। उनके सबक सिखाने के लिए सदैव तत्पर रहते हो। ऐसे में आज विधानसभा का चुनाव हो जाये तो परिणाम क्या आयेगा, मालूम है? आप नेता प्रतिपक्ष चुनने के लायक भी नहीं रहोगे।

अंत में, आपके प्रभाव में आकर जिन-जिन अखबारों ने आपके कल के कार्यक्रम में आपके द्वारा बटोरी गई भीड़ के जो आज बड़े-बड़े फोटो छापे हैं। कम से कम उन फोटों में दिख रहे लोगों की ही गिनती कर लो। आपकी सारी गलतफहमियां दूर हो जायेंगी कि कल की आपके रैली में कितने लोग आये थे? और उसमें कितने युवा थे? और कितने बुढ़े? और अगर गिनती में दिक्कत हो तो विद्रोही24 का कार्यालय आपके स्वागत के लिए तैयार है। वो बता देगा कि आपके कल के रैली में मात्र पांच से सात हजार ही लोग उपस्थित थे, जिनमें कुछ अनुशासित भी नहीं थे। उनके इरादे नेक नहीं थे।

ऐसे अब तो कुछ ऐसे लोग भी नये-नये विचारक के रूप में पैदा ले लिये हैं कि जो कहते है कि रैली में मार-धार न हो, लाठी-चार्ज न हो, कुछ कार्यकर्ताओं पर लाठियां न चटके, कुछ अस्पताल में भर्ती न हो, तो फिर रैली कहां? अगर इस विचारधारा को देखें तो फिर तो आप इन सब में उस्ताद हो, क्योंकि ये सब नहीं करते, तो फिर तो आज के अखबारों में आप इतना पेज नहीं ले पाते।

आजकल तो अखबार के कैमरामैन भी इस प्रकार के फोटो लेने के लिए गिद्ध की तरह नजर गड़ाए रखते हैं, अब तो कुछ कैमरामैन ऐसे भी हैं, कि ऐसा होने/करने के लिए दृश्य क्रियेट भी करते/कराते हैं। इसलिए अब तो कुछ कहना और लिखना भी बेकार है। लेकिन जान लीजिये, कि कल की आपकी रैली अपने मकसद में पूरी तरह विफल रही, साथ ही आपके विपक्षियों के मनोबल को बढ़ा दी। वे लोग जान गये कि आप मैदान में कहीं नहीं हैं और आपके मनोबल को किसी और ने नहीं, आपके समर्पित कार्यकर्ताओं ने ही अच्छी तरह से तोड़ दिया है। अब बस ताली बजाते रहिये और दिल्ली के नेताओं को आज के अखबार की कटिंग भेजकर अपना दिल बहलाते रहिये।