पीएम नरेन्द्र मोदी के सामने बदन ऐठने से अच्छा कि इंडिया गठबंधन जनादेश का सम्मान करें, भाजपा को सलाह वो प्रदीप वर्मा, आदित्य साहू और कर्मवीर सिंह जैसे लोगों से तौबा करें, नहीं तो…
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने बदन ऐठनें से अच्छा है कि इंडिया गठबंधन जनादेश का सम्मान करें, क्योंकि सारे विपक्षी एक होकर लड़ने के बावजूद भाजपा की कुल सीटों की अपेक्षा छः सीटें कम यानी 234 पर ही सिमट गये। स्वयं के अस्तित्व को दांव पर लगाकर अपने विरोधी को नष्ट करने का संकल्प भी कांग्रेस को अंततः नुकसान ही पहुंचाई है।
वो नुकसान अभी इसे पता नहीं लग रहा, लेकिन आनेवाले समय में जब उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होंगे या कालान्तराल में लोकसभा के चुनाव होंगे तो आनेवाले समय में कांग्रेस को उनके कार्यकर्ता भी नहीं पहचान रहें होंगे, सारे के सारे समाजवादी पार्टी के लाल टोपी को पहनकर अखिलेश-अखिलेश जप रहे होंगे। क्षण भर के सुख के लिए कांग्रेस ने जो दांव खेला हैं, यह उस पर ही भारी पड़ेंगी, इसमें कोई किन्तु-परन्तु नहीं हैं।
अगर नहीं बात समझ में आ रही तो बिहार और यूपी में जाकर अकेले वे सभा करके देख लें। पता लग जायेगा। आज भाजपा विपक्ष के भारी विरोधों के बावजूद, लगातार केन्द्र में दस साल सत्ता संभालने के बावजूद पूरे विपक्ष को मिले 234 सीटों से ज्यादा 240 सीटें ले आई। जबकि उसकी पूरी गठबंधन यानी एनडीए गठबंधन 292 सीटें लाई।
चूंकि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन लोकसभा चुनाव के पहले ही बन चुकी थी और साथ-साथ लड़ी थी। ऐसे में जनादेश भी एनडीए के पक्ष में ही गया है। ऐसे भी एनडीए के बड़े नेताओं में शीर्ष पर नरेन्द्र मोदी ही थे। वे खुद भी जीते और लोगों को जीता भी दिया। तीसरे टर्म के प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार वे ऐसे ही नहीं हैं।
आज भी विपक्ष के किसी नेता में यह दम नहीं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर यह आरोप लगा दें कि उन्होंने अपने खानदान में से किसी एक को भी भाजपा के टिकट से चुनाव लड़वाया और यही बात जदयू के नीतीश कुमार पर भी लागू होती है। लेकिन इंडिया गठबंधन में ऐसा नहीं हैं। यहां तो डबल डिजिट में सिमट जानेवाली कांग्रेस पर तो परिवारवाद के ऐसे दाग है कि वो इससे उबर ही नहीं पाई हैं।
समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल तो इसके धुरी है। इन्हें परिवार के बाद ही सब कुछ नजर आता है। इसलिए जिनके मकान शीशे के बने होते हैं तो वो किसी दूसरे पर पत्थर नहीं फेंकतें। जो लोग नरेन्द्र मोदी को जानते हैं। वे यह भी जानते है कि भाजपा को जो नुकसान हुआ है। वो मोदी के चलते नहीं। अगर मोदी के चलते होता तो यह नुकसान मध्यप्रदेश और दिल्ली जैसे कई राज्यों में भी दीखता।
ओड़िशा और अरुणाचल प्रदेश जैसे विधानसभा चुनावों में भी दिखता। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। जहां-जहां हार हुई। वो हार वहां के स्थानीय नेताओं के गलत नीतियों के कारण हुआ। जिसका जब भाजपा आकलन करेगी तो उसे पता लग जायेगा। झारखण्ड में भी भाजपा को पांच सीटों का नुकसान हुआ। यह नुकसान तो वो नुकसान है, जिसकी चर्चा रांची से दिल्ली तक है।
सारी की सारी अनुसूचित जनजातिवाली सीटें भाजपा गवां बैठी और यह सब हुआ संगठन मंत्री कर्मवीर सिंह, महामंत्री प्रदीप वर्मा और आदित्य साहू जैसे भाजपा नेताओं के कारण, जिन्होंने भाजपा कार्यकर्ताओं की कोई इज्जत ही नहीं दी। ये उन्हें कीड़ें-मकोड़े की तरह समझकर मसलते रहे और खुद राज्यसभा पहुंचकर जीवन का परम सुख भोगने में लग गये।
अगर भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं ने ऐसे नेताओं पर अंकुश नहीं लगाया, तो भाजपा के दुर्दिन विधानसभा चुनाव में भी दिखेंगे, क्योंकि आज भी विद्रोही24 डंके की चोट पर कह रहा है कि झारखण्ड में हेमन्त सोरेन को चुनौती देनेवाला भाजपा में कोई प्रदेशस्तरीय नेता नहीं। कल्पना सोरेन ने हेमन्त सोरेन की गैर-मौजूदगी में भी दिखा दिया कि झारखण्ड के हर कोने में हेमन्त सोरेन मौजूद हैं। चाहे आप माने या न माने।