धर्म

अंतर्ज्ञान मेरुदंड को जागृत करने से आता है, यह क्रियायोग से ही संभव है, क्रिया योग का दैनिक अभ्यास, वह सब कुछ संभव बना देता है, जो आप के लिये जरुरी है – स्वामी चिदानन्द गिरि

सेल्फ रियलाइजेशन फैलोशिप के अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय के प्रार्थना कक्ष से दीक्षांत समारोह के समापन अवसर पर विश्व में फैले लाखों अनुयायियों को संबोधित करते हुए स्वामी चिदानन्द गिरि ने कहा कि यह समापन नहीं बल्कि यह अगले चरण में परिवर्तन मात्र हैं। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार से आप सभी दीक्षांत समारोह में भाग लेकर स्वयं को आनन्दित महसूस कर रहे थे, ठीक उसी प्रकार का आनन्द उन्हें भी अनुभव हो रहा था।

स्वामी चिदानन्द गिरि ने कहा कि गुरुजी के सभी भक्त भगवान की अद्वितीय रचना हैं, इसलिए वे बताना चाहेंगे कि भक्त अपने साथ क्या ले जायेंगे? इसके लिए आप स्वयं अपनी आंखें बंद करें और सुनें कि आप अपने साथ क्या ले जा रहे हैं। आप महसूस करें, स्वयं को दिव्य अनुभूतियों से जोड़ें।

मैं शाश्वत शांति में डूबा हूं। यह मेरे अस्तित्व के कण-कण में व्याप्त है। मैं उस शांति में जी रहा हूं। परमात्मा की सत्ता मेरे भीतर और बाहर शांति भर रही है।

मैं शाश्वत ज्ञान में डूबा हूं। यह मेरे अस्तित्व के कण-कण में व्याप्त है। मैं उस ज्ञान में जी रहा हूं। परमात्मा की सत्ता मेरे भीतर और बाहर मार्गदर्शन कर रही है।

मैं शाश्वत प्रेम में डूबा हूं। यह मेरे अस्तित्व के कण-कण में व्याप्त है। मैं उस प्रेम में जी रहा हूं। परमात्मा की सत्ता मेरे भीतर और बाहर सर्वत्र प्रेम फैला रही है।

मैं शाश्वत आनन्द में डूबा हूं। यह मेरे अस्तित्व के कण-कण में व्याप्त है। मैं उस आनन्द में जी रहा हूं। परमात्मा की सत्ता मेरे भीतर और बाहर मुझे आनन्दित कर रही है।

शाश्वत ओम् मेरे अस्तित्व में स्पंदित होता है। परमात्मा आपकी कृपा और शक्ति से मैं अवश्य सफल होउंगा।

स्वामी चिदानन्द गिरि ने कहा कि वे सभी संन्यासियों की ओर से एक बात कहना चाहेंगे कि प्रत्येक सत्संग, ध्यान और कीर्तन या सप्ताह का कोई कार्यक्रम जिसमें आप सभी ने भाग लिया हैं, इसका केवल एकमात्र कारण है, क्योंकि हम जानते हैं कि गुरुजी हमसब से कितना प्रेम करते हैं। यह कितने आनन्द की बात है कि हम उनके लिए कुछ करें, जिनसे गुरुजी प्रेम करते हैं।

स्वामी चिदानन्द गिरि जी ने कहा कि गुरुजी ने 1936 में यही कहा था, “मैं अब व्याख्यान नहीं देना चाहता, जगन्माता कहती हैं कि केवल भक्तों के साथ मेरे प्रेम में मगन रहो। मैं बस यही करना चाहता हूं, मेरी अन्य कोई इच्छा नहीं है। जो लोग मेरे पास आएंगे, वे यही इच्छा लेकर आएंगे। भारत के कुछ महान शिक्षक बहुत कम बोलते थे। उन्होंने अनुयायियों को अपने भीतर जाकर महसूस करने की सीख दी और उनसे पूछा कि उन्होंने क्या अनुभव किया है।

इस बदलती अनिश्चित दुनिया में, आप अक्सर बहुत अकेलापन महसूस करते हैं। केवल ईश्वर तुम्हें कभी निराश नहीं करेंगें। आपकी खुशी और वह सब जो आप सोचते हैं, बासी हो जायेंगे, आप जो भी कुछ और चाहते हैं। भगवान जब आपके पास होते हैं, तो आप उसे और अधिक चाहते हैं। एकमात्र वास्तविक उपदेश ईश्वर का प्रेम है। ईश्वर की वह महान शक्ति, इस संसार में स्पंदन कर रही है। यह बहुत पवित्र है। इसीलिए मैं सिर्फ जिज्ञासा वालों को आकर्षित नहीं करना चाहता। मैं अपने शब्दों से हर जगह की प्यासी आत्माओं को ईश्वर प्रेम देना चाहता हूं।

गुरुओं की महिमा को पुनर्जीवित करना होगा। वे जंगल में बैठे रहते थे। दिव्य समागम में, कोई बातचीत नहीं, कोई अनुयायी बनाने की कोशिश नहीं, बस ईश्वर प्रेम के चुंबकत्व से आकर्षित सच्ची आत्माओं से घिरे हुए। कल्पना कीजिए क्या आनंद, क्या महिमा। ईश्वरीय ऐक्य का स्थान, यही माउंट वाशिंगटन बनने जा रहा है। इस प्रकार हमें उसे खोजना चाहिए। उसे महसूस करिये, उसके बारे में बात करिये, और जो लोग यहां आते हैं वे केवल भगवान के बारे में गाते और बात करते हुए चले जायेंगे।” ये शब्द गुरुदेव द्वारा तब कहे गए थे जब उनके पास केवल माउंट वाशिंगटन तथा रांची आश्रम थे।

स्वामी चिदानन्द गिरि ने कहा कि इस दीक्षांत समारोह में आपको जो भी अनुभव हुए हैं। उसे बनाए रखें। उसे साझा भी करें। उन्होंने कहा कि कुछ महीनों पहले वे भारत यात्रा पर थे। वहां उन्होंने क्रियायोग शरणम् की चर्चा की थी। उन्होंने कहा कि हम कितने भाग्यशाली है कि पिछले कुछ वर्षों में हमने देखा यह कैसे विस्तारित हुआ और विश्व भर में अधिक से अधिक आत्माओं ने इसे अपने में आत्मसात् किया।

स्वामी चिदानन्द गिरि ने कहा कि हमें वर्ष में दो बार एकांतवास, लंबे समय तक ध्यान, ईश्वर की उपस्थिति का अभ्यास आदि के लिए एकांतवास पर जाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। ऐसे एकांतवास के आखिरी दिन, उन्हें कुछ चिंता हो रही थी कि वे कैसे शांति और आनन्द जो उन्होंने एकत्रित की है, उसे बनाये रखेंगे। तभी उन्होंने गुरु जी की आत्मकथा पर नजर डाली। जब गुरुजी अमेरिका के लिए प्रस्थान कर रहे थे, बाबाजी गुरुजी को आश्वासन देने आए और कहा था – डरो नहीं, तुम्हारी रक्षा की जायेगी।

स्वामी चिदानन्द गिरि ने कहा कि आपको भी पता होना चाहिए कि गुरुजी आपसे कितना प्यार करते हैं और आपकी कितनी परवाह करते हैं। आपके लिए उन्होंने कितना सुन्दर आश्रय, क्रिया योग मार्ग और शिक्षाओं का निर्माण किया है। उन्होंने कहा कि गुरुजी ने केवल आश्रय ही नहीं बनाया, बल्कि जब हम उस आश्रय में पहुंचे तो हमारे लिए उन्होंने मध्यस्थता भी की है। यह मध्यस्थता सभी के लिये है। गुरुजी साफ कहते हैं कि ईश्वर ने तुम्हें मेरे पास भेजा है, मैं तुम्हें निराश नहीं होने दूंगा।

स्वामी चिदानन्द गिरि ने कहा कि गुरुजी क्या नहीं जानते थे, वे महसूस करते थे कि सामान्य लोगों को किन-किन परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है। गलत मोड़ लेना कितना आसान है। उन्होंने कहा कि यदि आप ईश्वर से मार्गदर्शन मांगते हैं तो आप ऐसा नहीं करते, आप जो भी करें, प्रार्थना द्वारा संचालित करना सीखें। यदि आप ध्यान में आप स्थिरता में गहराई तक उतरते हैं और आप सच्चे मन से उनसे पूछते हैं तो वे अवश्य बतायेंगे कि आपके लिये क्या करना उचित है?

स्वामी चिदानन्द गिरि ने कहा कि यदि आपमें ईमानदारी है तो आप गलत नहीं हो सकते। भले ही आप अस्थायी रुप से गलती करते हो, यदि आप उनसे मार्गदर्शन प्राप्त करने की कोशिश करेंगे तो आपकी गलती सुधरती चली जायेगी। इसके लिए आपको ईश्वर का मार्गदर्शन और उनका उत्तर प्राप्त करने की क्षमता विकसित करने का प्रयास करना होगा और ये तभी होगा जब हम अपने अंतर्ज्ञान को जागृत करेंगे। यह अंतर्ज्ञान मेरुदंड को जागृत करने से आता है। यह क्रियायोग से ही संभव है।

क्रिया योग का दैनिक अभ्यास, वह सब कुछ संभव बना देता है, जिसके बारे में हमने विस्तार से बताया। क्रिया योग के अभ्यास से ही अंतर्ज्ञान विकसित होता है। अंत में, स्वामी चिदानन्द गिरि ने परमहंस योगानन्द की वो कही हुई बातों को दोहराया – ‘ईश्वर के अनन्त आनन्द और स्वतंत्रता के तट तक पहुंचने के लिए ध्यान के अपने दैनिक अभ्यास में बने रहें। यदि आपने जाने का मन बना लिया है तो आपको मोह के किसी भी जाल से रोका नहीं जा सकता।’