एक ने पूछा – Is it journalism? मैंने कहा – Yes, It is journalism.
झारखण्ड के कभी किसी भाजपाई मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार रह चुके तथा फिलहाल एक एनजीओ के माध्यम से अपने कार्य को आगे बढ़ा रहे अति सम्मानित व्यक्ति ने मेरे फेसबुक पर दिये गये एक पोस्ट पर पुछ दिया कि क्या जो मैं लिख रहा हूं, वह पत्रकारिता है? तो हमें लगा कि इसका जवाब देना चाहिए, पर जवाब चूंकि अतिलघुत्तरीय हो नहीं सकता, विस्तृत उसका जवाब है, तो मैंने सोचा कि इसका जवाब विस्तार से देना चाहिए।
इधर कई भाजपाइयों और भाजपा समर्थक पत्रकारों ने भी, जिनकी औकात एक मच्छड़ से ज्यादा कुछ नहीं, वे भी हमारे फेसबुक पर उछल रहे हैं, धमा-चौकड़ी मचा रहे हैं, जैसे लगता है कि इन महाशयों का समूह पूर्णतः दूध से धुला है, जब से पैदा लिये हैं, तब से ईमानदारी की दूध और ईमानदारी के पौष्टिक आहारों से अपने शरीर को पाला तथा फिलहाल देश के एकमात्र शुभचिन्तक वहीं है, बाकी अन्य पार्टियों में राष्ट्रविरोधियों की जमात आकर बैठ गई हैं।
एक समय था, जब इसी पार्टी में अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी का युग चला करता था। जहां विरोधियों को भी उतना ही सम्मान मिलता था, जितना अपनों का। मजाल है कि कोई भाजपा का कार्यकर्ता किसी विरोधी पार्टी के नेताओं को कुछ बोल दें, अगर किसी ने बोला तो उसकी क्लास लग गई, पर आज अमित शाह जैसे लोगों का युग है, शायद इन्होंने सीखा रखा है कि जो भी तुम्हारे कानों को ठीक न लगें, बस उसकी क्लास लगानी शुरु कर दो। ठीक है, अगर यहीं आपकी नई कार्यशैली हैं तो हम इसका भी स्वागत करते हैं, क्योंकि हमने बहुतों को झेला है, एक और सहीं, हमें क्या फर्क पड़ता हैं? घास पर बैठा हूं, दिक्कत तो उन्हें हैं, जो महलों में रहते हैं।
बात हो रही हैं मेरी पत्रकारिता पर उठ रहे सवाल की, तो सभी लोग जवाब भी मेरा सुन लें और बताएं कि…
- कांग्रेस, झाविमो, माकपा, भाकपा, भाकपा माले, झामुमो आदि दलों या अन्य सामाजिक संगठनों की बात करें, तो गलत और सिर्फ भाजपा की बात करें तो हम सहीं कैसे? अरे भाई जो पत्रकार या अखबार या चैनल किसी खूंटे में बंध जाये तो फिर वहां पत्रकारिता क्या खाक होगी?
- केन्द्र में सत्ता आपकी, राज्य में सत्ता आपकी, नगर निगम में भी आप ही के लोग, जिला परिषद में भी आपके लोग और हम सवाल पूछे यहां के विपक्षी दलों से, कटघरे में खड़ा करे विपक्षी नेताओं को?
- पिछले पन्द्रह सालों से आप झारखण्ड में हैं, और हर गलत का जवाब हम विपक्षी दलों के नेताओं से पूछे?
- क्या पत्रकारिता का मतलब, सत्ता की दलाली करना होता है, सत्ता की आरती उतारना होता है, सत्ता की हर गलत बातों को सही करके जनता के समक्ष प्रस्तुत करना होता है, जैसा कि झारखण्ड से प्रसारित – प्रकाशित विभिन्न अखबारों व चैनलों के संपादकों और मालिकों का समूह कर रहा हैं?
- क्या पत्रकारिता का मतलब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के आगे संकीर्तन करना, नृत्य करना, उनसे गुरुमंत्र लेना, उनके साथ भोजन करना और फिर उनके साथ सेल्फी लेकर, मन में गौरव का भाव रखकर घर जाना होता है?
- क्या पत्रकारिता का मतलब सत्ता से संबंधित विभिन्न एनजीओ द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम के लिए पेज उपलब्ध कराना तथा चैनल में स्लॉट रखना और उसके बदले धन राशि इकट्ठा करना और नाजायज ढंग से जमीन खरीदना होता है, ताकि हम बता सकें कि हम भी किसी धनाढ्य से कम नहीं?
- क्या पत्रकारिता का मतलब, बड़े-बडे पूंजीपतियों और नेताओं के बेटे-बेटियों की शादी में गोवा जाकर, वहां की पवित्र समुद्री तटों पर सत्ता और सरकार के साथ मिलकर पवित्र स्नान करना होता है?
- क्या पत्रकारिता का मतलब, सत्ता की आरती उतारते हुए जीवन खपाना और उसके बदले सूचना आयुक्त बनना या राज्यसभा पहुंच जाना या अपने परिवारों को मजबूत आर्थिक शक्ति बनाने के लिए पैरवी करते हुए उन्हें प्रतिष्ठित पदों तक पहुंचाना होता है?
- क्या पत्रकारिता का मतलब, आइएएस और आइपीएस के दरवाजों पर नाक रगड़ना और अपनी इज्जत की फलुदा बनाते हुए, गुलामी का रिकार्ड बनाना होता है?
कैसे-कैसे लोग अब समाज में आ गये है, जो पत्रकारिता की नई परिभाषा गढ़ रहे हैं, और जो सही मायनों में पत्रकारिता कर रहा हैं, राज्य सरकार की गलत नीतियों का विरोध कर रहा हैं, जो जनहित में बाते कर रहा हैं, उससे पुछ रहे हैं कि Is it journalism?
अरे पुछना है तो पुछिये, उन अखबारों व चैनलों में बैठनेवाले गद्दारों से कि उन्होंने पत्रकारिता के नाम पर अब तक कौन ऐसा कार्य किया है, जिससे झारखण्ड की धरती उन पर गर्व कर सकें? ये तो सीएम के साथ अपना पी-आर बनाने में लगे हैं, ताकि कल हम इनकी कृपा से अच्छी जगहों पर सेट हो जाये, ताकि बुढ़ापा आराम से कट जाये और जब तक जिन्दा रहे, सोने की चम्मच मुंह में सटा रहे।
मैं तो देख रहा हूं कि पिछले सत्रह सालों से ऐसे लोगों ने ही झारखण्ड को इस स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया कि भूख से संतोषी की मौत हो जाती हैं, और ये मुद्दा तब बनता है, जब झारखण्ड के बाहर के पत्रकारों की टीम, इस मुद्दे को उछालती है? सीएम बिना हेलमेट के दुपहिये चलाता है, पर इसमें उन्हें कोई गलती नहीं दिखती, यहां हाथी उड़ा देती है सरकार और अखबार व चैनल उसकी जय-जय करते हैं और जो सही मायनों में पत्रकारिता कर रहा हैं, उसको नाना प्रकार के त्रास दे रहे हैं, ताकि वो पत्रकारिता ही नहीं, बल्कि झारखण्ड ही छोड़ दें।
ऐसे लोग जान लें कि सत्ता या सत्ता में शामिल लोग हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते, जब तक जिंदा हूं, गलत को गलत बोलूंगा और सही को सही बोलूंगा, वह भी बिना किसी राग-लपेट के? जिनको जो बोलना है, बोले जो दोषारोपण हम पर करना है करें? किसी को रोका भी नहीं हैं मैने।
सर को प्रणाम ,
आपके लेख पढ़ने के बाद शरीर में एक नई रक्तसंचार का अनुभव होता है । लगता है कि अभी भी हम ज़िंदा हैं और ऐसा प्रयास करना है कि मेरा जीवन धरती पर बोझ न बने और कुछ नहीं तो धरती पर रहने का कम से कम क़र्ज़ ज़रूर चुका जाऊँ।
हम आपको अपना गुरुदेव मान चुके हैं । यदि आपको कोई आपत्ती न हो तो कृपया मुझे क्षणिक मात्र भी आशीष देंगे ।
आपका शिष्य
अमित सिंह