अपनी बात

क्या सचमुच चुटिया में बना सुरेश्वर महादेव मंदिर कर्नाटक के कोटिलिंगेश्वर मंदिर जैसा है, जैसा कि मीडिया बता रही हैं या बात कुछ और है?

इन दिनों रांची के चुटिया कतारीबगान में उद्घाटन हो रहे सुरेश्वर महादेव मंदिर की धूम है। रांची के अखबारों-चैनलों-पोर्टलों ने इस मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रमों को हाथों-हाथ लिया हैं और इसकी खूब जमकर प्रशंसा कर रहे हैं, उस प्रशंसा में वे क्या-क्या लिख या बक दे रहे हैं, उन्हें पता भी नहीं चल रहा और लोग इन अखबारों-चैनलों-पोर्टलों की बातों को सच मानकर भावविह्वल होकर बड़ी संख्या में चुटिया कतारीबगान सुरेश्वर महादेव मंदिर में चल रहे कार्यक्रमों को देखने के लिए पधार रहे हैं।

26 अप्रैल को रांची से प्रकाशित अखबार प्रभात खबर ने इसकी तुलना कर्नाटक के कोलार स्थित कोटिलिंगेश्वर मंदिर से कर दी, तथा चुटिया में शिवलिंग की उंचाई को 108 फीट बता दिया और यही से शुरु हो गई भारी गड़बड़ी, फिर क्या था देर-सबेर रांची के सारे अखबार कूद पड़े और इसका महिमामंडन शुरु कर दिया।

जब महिमा मंडन शुरु हुआ तो तीन मर्ई को अक्षय तृतीया के दिन निकले कलश यात्रा को एक अखबार संभवतः दैनिक भास्कर ने बता दिया कि कलश यात्रा की लंबाई करीब पांच किलोमीटर थी, ऐसा आयोजकों ने दावा किया है, जबकि सच्चाई यह है कि जहां मंदिर है, वहां से लेकर बनस तालाब तक की दूरी चार किलोमीटर से भी बहुत कम है। मतलब जहां से कलश यात्रा निकलनी है और जहां से कलश यात्रा लौटनी हैं, उसकी दूरी चार किलोमीटर से भी कम है।

अब इसे भावावेश कहे या शिव की भक्ति या अतिरेक, अखबार वाले, चैनलवाले और पोर्टल वाले जाने, पर जनता को सच्चाई जानना जरुरी है कि सही में सच्चाई क्या है? दरअसल कर्नाटक के कोटिलिंगेश्वर मंदिर के परिसर में एक शिवलिंग है, जिसकी ऊंचाई 108 फीट हैं, ठीक इसके सामने एक विशाल नंदी है और इसके चारों ओर एक करोड़ से भी अधिक छोटे-बड़े शिवलिंग हैं, जो आगंतुकों द्वारा स्थापित किये जाते हैं, जबकि इसके ठीक उलट रांची के चुटिया में स्थित सुरेश्वर महादेव मंदिर में शिवलिंग की जगह शिवलिंग के आकार का एक मंदिर तैयार कर दिया गया हैं, जिसमें भी काफी गड़बड़ियां हैं, जिसे ठीक अब नहीं किया जा सकता।

कर्नाटक के कोटिलिंगेश्वर में आज भी शिवलिंग का अर्घा उत्तर दिशा की ओर है, ऐसे भी शिवलिंग की जहां भी प्रतिमा स्थापित की जाती हैं, उसका अर्घा जब भी होगा, वो उत्तर दिशा की ओर ही होगा, न कि दक्षिण दिशा की ओर। यहां जो मंदिर शिवलिंग के रुप में बनाया गया हैं, उसका अर्घा ही दक्षिण दिशा की ओर हैं, जिसे कोई भी देख सकता हैं, पर इस मंदिर के गर्भगृह में जो शिवलिंग स्थापित होगा, उसका अर्घा उत्तर दिशा की ओर होगा, ऐसा यहां यज्ञ व स्थापना करा रहे आचार्य पं. दिवाकर शास्त्री बताते हैं।

विद्रोही24 ने जब मंदिर परिसर का अवलोकन किया, तो देखा कि शिवलिंग के रुप में विद्यमान इस मंदिर के उपरि भाग में यानी शीर्ष पर तड़ित चालक लगाया गया हैं, जिससे मंदिर को व्रजपात से बचाया जा सकें, जबकि आम तौर पर शिवलिंग के उपर कोई भी चीजें लगाने का प्रावधान शास्त्रों में नहीं हैं। जब मंदिर निर्माण की सेवा में लगे सुरेश साहू, संतोष कुमार और आलोक कुमार से हमने बातचीत की।

तब उन्होंने इस मंदिर रुपी बाहरी शिवलिंग की ऊचाई फाउंडेशन से 108 फीट हैं, ऐसा बताया। मतलब आप समझ सकते है कि कर्नाटक के कोटिलिंगेश्वर मंदिर और इस मंदिर में कितना बड़ा अंतर है, जिसे समझा ही नहीं गया और इसकी तुलना पता नहीं कैसे अखबारों, चैनलों व पोर्टलों ने कोटिलिंगेश्वर से कर दी।

हां, इस मंदिर की कुछ विशेषताएं हैं, जिसे आप देखने के लिए आ सकते हैं। झारखण्ड में इस प्रकार का मंदिर, जो शिवलिंग की आकृति का हैं, ऐसा कही नहीं हैं। मंदिर की वास्तुकला देखनेलायक है। इस मंदिर के निर्माण में करीब डेढ़ करोड़ रुपये लगे हैं। यह मंदिर जनसामान्य के द्वारा बनाया गया है। अगर आप शिव में रुचि रखते हैं, झारखण्ड में हैं या आपके परिवार के लोग बाहर में रहते हैं तो उन्हें एक बार तो आपको यहां लाना ही पड़ेगा, क्योंकि ये एक आकर्षण का केन्द्र तो है ही।

पं. दिवाकर शास्त्री ने विद्रोही24 को बताया कि इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना होने के बाद से ही भगवान शिव की षोडषोपचार से पूजा शुरु हो जायेगी, जो अनिश्चितकाल तक चलता रहेगा। पर्यटन के दृष्टिकोणसे भी राज्य सरकार को इसमें रुचि लेना चाहिए, क्योंकि लोग यहां अब बड़ी संख्या में आयेंगे और उन आगंतुकों को बेहतर सुविधा मिले, इसके लिए राज्य सरकार को पहल करनी होगी।

एक बात और इस मंदिर के ठीक पास में इक्कीसो महादेव हैं, अगर उस ओर भी सरकार ओर सामान्य जन रुचि ले लें तो निश्चय ही यह इलाका पूरे भारत में आकर्षण का केन्द्र होगा, क्योंकि इस सुरेश्वर महादेव से ज्यादा लोगों की आज भी रुचि स्वर्णरेखा तट पर बने इक्कीसों महादेव में हैं, जिसे कोई इनकार भी नहीं कर सकता।