“यह अक्षम्य अपराध है, इसे माफ नहीं किया जा सकता, ऐसे लोगों को अस्पृश्यता निवारण कानून के तहत दंडित किया जाना चाहिए”
“यह अक्षम्य अपराध है, इसे माफ नहीं किया जा सकता, ऐसे लोगों को अस्पृश्यता निवारण कानून के तहत दंडित किया जाना चाहिए और जो लोग ऐसे लोगों को बचाने का काम करते हो, उन पर भी यह कानून लागू होना चाहिए।” आज रांची से प्रकाशित प्रभात खबर के प्रथम पृष्ठ पर छपी खबर से मन बहुत ही क्षुब्ध है। खबर है ही क्षुब्ध करनेवाली। शीर्षक है – दलित के हाथों बना खाना खाने से किया इनकार। हजारीबाग के विष्णुगढ़ के बनासो में बने कोरेंटिन सेन्टर की घटना।
यह खबर पढ़ते ही मुझे काठ मार गया। वो इसलिए कि एक कोरोना है – जो किसी से भेदभाव नहीं कर रहा, वो सबको अपने आगोश में ले रहा है, पर समाज में कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो अपनी घृणात्मक सोच से पूरे हिन्दू समाज को कलंकित करने में लगे हैं। आश्चर्य यह भी हुआ कि जिन्हें ऐसे लोगों को दंडित करना था, वे उन्हें सुविधा प्रदान कर रहे हैं। यानी जिसने यह कहकर भोजन करने से मना कर दिया कि वह दलित के हाथों से बना खाना नहीं खायेगा, उन्हें दंडित करने के बजाय, सुखा राशन उपलब्ध करा दिया।
अब ऐसे में समाज कैसे आगे बढ़ेगा? आखिर अस्पृश्यता निवारण कानून जो देश में लागू है, उसको कौन जमीन पर उतारेगा। हम तो राज्य की हेमन्त सरकार से मांग करेंगे कि ऐसे लोग जो आज भी राज्य में अस्पृश्यता फैला रहे हैं, उन्हें ऐसी सजा दें, ताकि कोई व्यक्ति किसी का भी अपमान नहीं कर सकें।
मेरा तो मानना है, इस प्रकार की सोच वाले जितने भी घृणात्मक सोच के व्यक्ति है, उन्हें कह देना चाहिए कि तुम अपने से खेती कर क्यों नहीं अन्न उपजा लेते, कमाल है अन्न उपजाने में जातिगत सूचक से तुम्हें परहेज नहीं। ट्रेन से आये और किस-किसके हाथ का बना खाये, तुम्हें परहेज नहीं और कोरेन्टिन सेन्टर में आते ही भेदभाव शुरु।
मेरे विचार से इस घटना के लिए जिला प्रशासन भी दोषी है, क्योंकि उसने ऐसे लोगों पर कार्रवाई करने के बजाय, उनके उपर सख्ती से पेश आने के बजाय, उन्हें वो सारी सुविधाएं प्रदान कर दी, जिससे इस प्रकार की घटनाओं को बढ़ने में और मदद मिलेगी। आदमी, आदमी से नफरत करें। इससे बढ़कर अमानवीय घटना दूसरी कोई हो ही नहीं सकती।
यह किसी भी राज्य के लिए या वहां की सरकार के लिए कलंक है। जहां भी इस प्रकार की सोच वाले लोग है, वहां समाज को चाहिए कि ऐसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार करें, ताकि उन्हें स्वयं को आदमी कहने में शर्म महसूस हो। कमाल है इस आधुनिक भारत में जहां देश का अपना संविधान है, उस संविधान का पालन न कर, अपनी अमानवीय बातें मनवाना, देश के लिए खतरनाक है।