अपनी बात

प्रदेश भाजपा में फैली घृणा, वैमनस्यता व आपसी कटुता की विषवेल हटा पाना बाबूलाल मरांडी के लिए आसान नहीं, पहले से खार खाये बैठे पुराने भाजपा नेता बनेंगे सिरदर्द

पहले जो घृणा, वैमनस्यता व आपसी कटुता की विषवेल जो झारखण्ड के बड़े-बड़े तथाकथित भाजपा नेताओं ने पूरे झारखण्ड के भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच जाकर बोए हैं और जो वह बीज आज विशाल वृक्ष बन चुका है। उस घृणा, वैमनस्यता व आपसी कटुता की वृक्ष को गिराये बिना भाजपा कभी झारखण्ड में अब अपनी जड़ें नहीं जमा सकती। ये बातें भाजपा के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी को गांठ बांध लेनी चाहिए।

ये टिफिन बैठक, ये संगठन को मजबूत करने के नाम पर संगठन मंत्री का हवा-हवाई दौरा व बूथ मैनेजमेंट का हव्वा खड़ा कर देने से अगर आपको लगता है कि भाजपा प्रदेश में मजबूत हो जायेगी तो यहां आप पूर्णतः गलत है। जब 2019 में भाजपा के हाथों से झारखण्ड की सत्ता खिसक गई थी, तो हमें लगा था कि अब कनफूंकवों की शामत आनेवाली है, पर जैसे-जैसे वर्ष बीतते गये, हमनें महसूस किया कि कनफूंकवे प्रदेश भाजपा में और मजबूत हो गये। नतीजतन भाजपा कमजोर होती चली गई।

आप जरा सोचिये। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष आपके पहले दीपक प्रकाश थे। प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए या न रहते हुए दीपक प्रकाश को क्या मिला और एक सामान्य भाजपा कार्यकर्ता को क्या मिला, यह जगजाहिर है। जैसे ही दीपक प्रकाश प्रदेश अध्यक्ष बनते हैं, उन्हें अलादीन का चिराग हाथ लग जाता है। वे देखते ही देखते राज्यसभा के सदस्य बन जाते हैं, प्रदेश अध्यक्ष तो थे ही। अब जबकि प्रदेश अध्यक्ष नहीं हैं, तो वे राज्यसभा का आनन्द भी ले रहे हैं, पार्टी ने उन्हें राष्ट्रीय कार्यसमिति का सदस्य भी बना दिया।

यही हाल रघुवर दास का था। जब वे मुख्यमंत्री पद पर थे। तो उनके इशारों पर ही सब कुछ होता था। पार्टी गर्त में चली गई। उनकी सत्ता भी गई और वे पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिये गये। क्या भाजपा का कार्यकर्ता इतना मूर्ख है, वो नहीं जानता कि उसे उल्लू बनाया जा रहा है। पर जो राजनीतिक पंडित हैं, वो तो जानते हैं कि केन्द्रीय नेतृत्व किसी को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दे या राष्ट्रीय कार्यसमिति का सदस्य बना दे। इनकी हैसियत इतनी भी नहीं कि वे भाजपा को एक सीट स्वयं अपने बलबूते पर दिला सकें।

सच्चाई यह है कि दीपक प्रकाश हों, रघुवर दास हों या अर्जुन मुंडा। सभी ने भाजपा कार्यकर्ताओं को अपना जागीर समझा। जैसे पाये, वैसे उन्हें दौड़ाते रहे और अपनी स्थिति मजबूत करते रहे। जिसमें ये सारे नेता खुद और इनके परिजन तो मजबूत होते चले गये, लेकिन पार्टी धराशायी होती चली गई। कोई मुगालते में न रहे कि 2014 में जो झारखण्ड में भाजपा आई थी। वो रघुवर दास के नेतृत्व या उस वक्त के झारखण्ड प्रभारी या संगठन मंत्री के कीर्तियों के बल पर आई थी। बल्कि ये प्रभाव था, भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का, जिन्होंने अपनी कार्य शैली से झारखण्ड की जनता का दिल जीत लिया था।

आज भी कमोबेश यही स्थिति है। आप झारखण्ड के किसी गांव, कस्बे, शहर या किसी इलाके में चले जाएं, आप वहां की सामान्य जनता अथवा खास जनता से सम्पर्क करें। आज भी ये लोग जो भी वोट देंगे। वो नरेन्द्र मोदी के नाम पर ही देंगे, न कि भाजपा के प्रदेशस्तरीय नेताओं के नाम पर। हां, ये बात अलग है कि बाबूलाल मरांडी राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री रहे हैं। उनके कार्यकाल में प्रदेश ने रफ्तार पकड़ी थी। इससे कोई इनकार भी नहीं कर सकता। यह शत प्रतिशत सत्य है, पर जैसे ही बाबूलाल मरांडी के हाथों से सत्ता निकलकर अन्य के हाथों में गई। विपक्षी दलों को कहने का मौका मिल गया कि आखिर भाजपा ने तो सर्वाधिक वर्षों तक झारखण्ड में राज किया, इसने झारखण्ड को क्या दिया। जिसका जवाब भाजपा के प्रदेशस्तरीय नेताओं के पास नहीं होता।

गोड्डा से एक सांसद है – निशिकांत दूबे। उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र में जो काम किया है। उनके काम से पूरा झारखण्ड प्रभावित है। कई संसदीय क्षेत्र की जनता तो अब ये भी कहने लगी है कि काश ऐसा सांसद मेरे इलाके में भी होता। तो उनके यहां से भी कम से कम गोवा तक के लिए ट्रेन तो खुल जाता। एम्स तो आ जाता। हवाई अड्डा तो बन जाता। जहां ट्रेन तक नहीं आती, वहां ट्रेन तो आ जाती। मतलब निशिकांत दूबे ने क्या नहीं कर दिया। अपने इलाके के लिए, वो काम किया, जो आज तक किसी ने नहीं किया।

ठीक ऐसा ही काम रांची के सांसद संजय सेठ ने भी किया है। रातू रोड में बन रहा सड़क उसका सबसे बड़ा उदाहरण है। साथ ही कई कार्यक्रम जो उन्होंने रांची में किये हैं या जिस प्रकार से अपने संसदीय क्षेत्र की जनता की सेवा में वो जो लगे रहते हैं, वो बताने के लिए काफी है कि उनकी यहां क्या स्थिति है। पर दीपक प्रकाश, रघुवर दास, अर्जुन मुंडा के पास कहने के लिए क्या है?

अर्जुन मुंडा तो पिछले चार सालों से केन्द्र में आदिवासी मंत्रालय संभाले हुए हैं। झारखण्ड को उससे क्या फायदा मिला। वे बता दें। हम भी थोड़ा जानें। रघुवर दास ने तो ऐसा हाथी उड़ाया कि खुद ही उड़ गये। दीपक प्रकाश ने तो भाजपा का दीपक ही बुझा दिया था। आज भी भाजपा कार्यकर्ताओं में जो निराशा है। उसका मूल कारण है कि भाजपा कार्यकर्ताओं को भाजपा के प्रदेशस्तरीय नेता सम्मान नहीं देते। यहीं नहीं, जो भाजपा के कट्टर समर्थक हैं, जो संघ से जुड़े हुए पुराने स्वयंसेवक हैं, वे जब कुछ उन्हें सलाह देते हैं। तो कनफूंकवे ऐसा तमाशा खड़ा करते हैं कि ये लोग उस पर केस भी अपने लोगों से ठुकवाते हैं, ताकि वो व्यक्ति केस लड़ते-लड़ते थक जाये और उसकी बोलती बंद हो जाये। पर यहां होता है – ठीक उलटा!

आज जो भाजपा की स्थिति है। अगर सुप्रियो भट्टाचार्य ने 2004 का प्रमाण देते हुए भाजपा की आनेवाली स्थिति का लोकसभा में बखान किया है, तो कहीं से भी गलत नहीं। जो स्थितियां हैं, उसमें भाजपा के लिए एक सीट भी लोकसभा का निकाल पाना संभव नहीं, क्योंकि पूर्व प्रदेश अध्यक्षों और अन्य नेताओं ने ऐसा विषवेल तैयार कर दिया है कि उसे समूल नष्ट कर पाना ही बाबूलाल मरांडी के लिए कठिन है।

हालांकि जिस दिन उन्होंने दीपक प्रकाश के मंडलियों को कहा कि वे काम करते रहें। ठीक ही कहा, नहीं तो ये मंडलियां ही पहले इनका सिरदर्द बनती। हालांकि अभी भी ये सिरदर्द ही है। आज भी एक भाजपा कार्यकर्ता ने विद्रोही24 को बताया कि आज भाजपा में कौन है? वही है या उन्हें ही मौका दिया गया है, जो किसी न किसी बड़े व्यवसायिक प्रतिष्ठानों या निजी संस्थाओं से जुड़े हैं, ऐसे में सामान्य कार्यकर्ता क्या करेगा, वो तो स्वयं को ठगा महसूस ही कर रहा।