आश्चर्य है, रांची प्रेस क्लब के मतदाताओं ने कैसे-कैसे लोगों को चुन लिया, जो रांची प्रेस क्लब को दिशा नहीं दे सकते, उन्हें अब बुद्धि की भी बैशाखी चाहिये
रांची प्रेस क्लब के चुने हुए नये-नये पदधारियों ने अपने लिए एक भारी-भरकम मार्गदर्शक मंडल बनाया है। ये मार्गदर्शक मंडल इन्हें बुद्धि देंगे और उनके बुद्धि से मार्गदर्शन प्राप्त कर ये पदधारी रांची प्रेस क्लब का सम्मान बढ़ायेंगे। मतलब प्रत्यक्ष रुप से तो नहीं, लेकिन अप्रत्यक्ष रुप से इस भारी-भरकम मार्गदर्शक मंडल में विराजमान लोगों का ही साम्राज्य चलेगा।
आश्चर्य है कि चुने गये पदधारियों की संख्या यानी अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव, संयुक्त सचिव, कोषाध्यक्ष एवं कार्यकारिणी सदस्यों को लेकर मात्र 15 हैं। जबकि मार्गदर्शक मंडल में रखे गये महानुभावों की संख्या 26 हैं, मतलब पदधारियों से ज्यादा बुद्धि देनेवालों की संख्या हो गई हैं, जो यह बताने के लिए काफी है कि आनेवाले दिनों में यहां ‘ज्यादा जोगी मठ उजाड़’ वाली लोकोक्ति सिद्ध होगी।
जिस व्यक्ति ने यह दिमाग लगाया है या जिस व्यक्ति की दिमाग की यह उपज है। भाई उसके दिमाग को दाद देनी होगी। उसने अपने जैसे भाई-बंधुओं का खुब ख्याल रखा है। जिसने उसे पद दिलाने में विशेष भूमिका निभाई। उसे कैसे उपकृत किया जाये, उसके लिए उसने क्या दिमाग लगाया है? अपने खुराफाती दिमाग की इस उपज को जमीन पर उतारने के लिए उसने इस मार्गदर्शक मंडल में एक-दो ऐसे लोगों को भी जोड़ा हैं, जिनकी छवि साफ-सुथरी है और इसी की आड़ में उसने मित्रतारुपी धर्म का बखूबी निर्वहण भी किया है। सायंकालीन-सेवा का भी ख्याल रखा है।
भाई, ऐसी सोचवाले महान व्यक्तित्व को मैं सैल्यूट करता हूं। इसी मार्गदर्शक मंडल में एक ऐसा व्यक्ति भी शामिल है, जिसके कारनामे को पूरे देश ने देखा है, कि वो किस तरह पत्रकारिता का चोला ओढ़कर पत्रकारिता पेशे की धज्जियां उड़ाई हैं। उन्हें भी इस मार्गदर्शक मंडल में शामिल कर रांची प्रेस क्लब ने सिद्ध कर दिया कि वो रांची प्रेस क्लब को कहां ले जाना चाहता है। आश्चर्य तो तब होगा कि जब मार्गदर्शक मंडल की टीम कभी एक साथ बैठेगी तो उस मार्गदर्शक मंडल में वो भी बैठा होगा और बुद्धि दे रहा होगा, साथ ही उसकी बुद्धि से रांची प्रेस क्लब अनुप्राणित हो रहा होगा।
कमाल है, जैसे ही रांची प्रेस क्लब के इस मार्गदर्शक मंडल का समाचार अखबारों में आया। कई पत्रकारों ने इस पर अंगूलियां उठाई और अपना दर्द साझा किया। उनमें एक पत्रकार नवेन्दू उन्मेष भी है। जरा देखिये, उनकी पीड़ा को …। वे लिखते हैं और इसे रांची प्रेस क्लब से ही जुड़े एक व्हाट्सएप ग्रुप पर साझा भी किया। गौर फरमाये …
“रांची प्रेस क्लब के द्वारा गठित कमेटी में शामिल कुछ नामों को लेकर मेरा विरोध है। मेरा मानना है कि जब बिहार प्रेस बिल को लेकर रांची में धरना प्रदर्शन किया जा रहा था तो इनमें शायद ही कोई चेहरा मुझे नजर आया था। सबसे दुखद बात यह है कि 1948 में रांची से प्रकाशित प्रथम हिन्दी दैनिक के प्रकाशन से लेकर मेरे परिवार का रांची की पत्रकारिता में योगदान के बावजूद मुझे भी भुला दिया जाता है।
अब तो मैं सोचता हू़ं कि रांची प्रेस क्लब का सदस्य मुझे बगैर किसी उम्मीद के इसलिए बना रहना चाहिए कि मेरे मरने के बाद कुछ पत्रकार शोक सभा आयोजित कर मेरी दिवंगत आत्मा को कम से कम श्रद्धांजलि तो देंगे। हालांकि मैं बता देना चाहता हूं कि मैं जब तक जिन्दा हूं देश व विदेश की दो सौ से अधिक पत्र-पत्रिकाओ में प्रति माह मेरे ही फीचर रांची से नजर आयेंगे। मेरा मानना है लिखने वाला ही असल पत्रकार होता है और मैं आज भी नियमित रूप से लिखता और देश-विदेश की पत्र-पत्रिकाओं में छपता हूं।”
जैसे ही एक पत्रकार ने नवेन्दू उन्मेष की इस लिखित वक्तव्य को मेरे पास संप्रेषित किया। मैंने नवेन्दू उन्मेष से बातचीत की और उनसे बातचीत के क्रम में कहा कि नवेन्दूजी जो लोग आपको जिन्दा रहने पर नहीं पूछ रहे, उनसे ये आशा रखना कि वे आपके मरने के बाद आपके लिए शोकसभा करेंगे, क्या ये अतिशयोक्ति नहीं। आप इनलोगों से ये क्यों आशा रखते हैं कि ये आपका मरणोपरांत भी सम्मान करेंगे। अरे जिनका खुद ही कोई सम्मान नहीं, उनसे सम्मान की आशा! इन्होंने कब किसका सम्मान किया।
इनका सम्मान तो किसी खास व्यक्ति से शुरु होता है और उसी खास व्यक्ति पर खत्म हो जाता है। इसके प्रमाण है मेरे पास। मैं तो उस खास व्यक्ति को साफ कहुंगा कि वो इस तिकड़म में क्यों रहता हैं, वो पर्दे के पीछे से क्यों खेल रचता है, वो खुद ही चुनाव क्यों नहीं लड़ जाता? वो क्यों दूसरे को आगे रखकर अपनी गोटी सेंकता है। क्या वो समझता है कि हम सब बेवकूफ है। अगर उसकी यह सोच हैं तो मैं उसकी सोच पर तरस खाता हूं।
नवेन्दू उन्मेष कोई अकेले व्यक्ति नहीं, जिन्होंने मार्गदर्शक मंडल पर सवालिया निशान खड़े किये हैं। ऐसे कई लोग हैं, जो इस मुद्दे पर सवाल खड़े कर रहे हैं। नवेन्दू उन्मेष ने सिर्फ इतना किया कि वे सामने आ खड़े हुए। आश्चर्य है, रांची प्रेस क्लब के मतदाताओं ने कैसे-कैसे लोगों को चुन लिया, जो रांची प्रेस क्लब को दिशा नहीं दे सकतें, उन्हें अब बुद्धि की भी बैशाखी चाहिये।