अच्छा हुआ दुमका की बैठक में प्रदेश संगठन मंत्री कर्मवीर सिंह या महामंत्री प्रदीप वर्मा नहीं पहुंचे, नहीं तो भाजपा कार्यकर्ताओं का गुस्सा और उबाल मारता, इनकी हालत पस्त होते देर नहीं लगती
आज दुमका में भाजपा का विशेष बैठक आयोजित था। यह बैठक मूल रुप से दुमका में भाजपा की हुई शर्मनाक पराजय को लेकर बुलाया गया था। जिसमें रांची से विशेष रुप से आदित्य साहू और बालमुकुंद सहाय पहुंचे थे। प्रदेश महामंत्री प्रदीप वर्मा के चहेते जिला अध्यक्ष गौरवकांत जो दुमका लोकसभा का वोटर भी नहीं है।
उसको तथा उसका एक प्रमुख खास व्यक्ति निवास मंडल जो प्रदेश कार्य समिति का सदस्य है और दुमका लोकसभा का सहसंयोजक भी था। इन दोनों को लेकर जिन लोगों को बैठक में नहीं बुलाया गया था। अग्रसेन भवन धर्मशाला के गेट पर उतरते ही आदित्य साहू और बाल मुकुंद सहाय का भारी विरोध हुआ।
दो बजे से आहुत यह बैठक बहुत विलम्ब से प्रारंभ हो पाई। जो लोग विरोध कर रहे थे। उन सभी लोगों से हल्ला गुल्ला न हो, ज्यादा हंगामा नहीं हो, इसके लिए आदित्य साहू और बालमुकुंद सहाय एक-एक कर कमरे में मिल रहे थे और जब शिकायत और जो घोटाला प्रदीप वर्मा के साथ-साथ कर्मवीर सिंह से संबंधित था, उसे सुनकर इनकी हक्की-बक्की गुम हो गई।
इन दोनों को भरोसा ही नहीं था कि प्रदेश संगठन मंत्री कर्मवीर और प्रदेश महामंत्री प्रदीप वर्मा के खिलाफ यहां के भाजपा कार्यकर्ताओं का इतना बड़ा गुस्सा फूटेगा। सारे कार्यकर्ताओं का आरोप था कि ये वो लोग है, जिन्होंने कार्यकर्ताओं का शोषण किया। स्वयं होटलों के एसी रुमों में आकर ठहरते रहे, मटरगश्ती करते रहे और कार्यकर्ताओं को कुछ समझा ही नहीं।
अगर कोई कार्यकर्ता इन्हें फोन भी करता तो ये फोन उठाना भी गवारां नहीं समझते। ये लोग कभी गांवों का रूख तक नहीं किया। बस होटलों तक स्वयं को सिमटा कर रखा। सारे हो हल्ला कर रहे कार्यकर्ता राकेश प्रसाद, प्रदीप वर्मा, कर्मवीर और दीपक प्रकाश के चहेते गौरवकांत को जिलाध्यक्ष पद से हटाने की मांग कर रहे थे। इनका कहना था कि जो दुमका का है नहीं वो जिलाध्यक्ष बनकर कैसे बैठ गया? वो तो यहां का मतदाता भी नहीं हैं।
जहां बैठक हो रही थी। वहां के सारे कार्यकर्ताओं का मोबाइल बंद करा दिया गया था। पत्रकारों को अंदर जाने तक की मनाही थी। वहां जो हंगामा कर रहे भाजपा कार्यकर्ताओं का कहना था कि पूरे चुनाव कार्यकाल तक देखा जाये तो यहां भाजपा का प्रभारी प्रदीप वर्मा व आदित्य साहू, दीपक प्रकाश आदि नेता इस प्रकार से यहां दौरा करने आते थे, जैसे लगता हो कि वे वनभोज में शामिल होने आ रहे हो।
कार्यकर्ताओं को तो इन्होंने कुछ समझा ही नहीं। पैरों तले रौंदते रहे। उसका सुंदर उदाहरण है, जब विवेकानन्द राय जी जैसे भाजपा कार्यकर्ता के पिता जी का देहांत हुआ। उनके पिताजी का दाह संस्कार हो रहा था। उस वक्त प्रदीप वर्मा ने उनके साथ जैसा व्यवहार किया। वो तो एक दानव भी नहीं कर सकता।
कार्यकर्ताओं का कहना था कि प्रदीप वर्मा को तो पोस्ट करने नहीं आता। वे अपने ही कार्यकर्ताओं को दानव-दैत्य से अधिक कुछ नहीं समझते। इन्हें तो बात करने की तमीज तक नहीं। पता नहीं किस बात का घमंड है और पता नहीं कि उस व्यक्ति में क्या है कि संघ से लेकर भाजपा तक का उपर से नीचे तक व्यक्ति उसके आगे परिक्रमा करना अपनी शान समझता है। अगर यही हाल रहा तो भाजपा अभी दुमका से गई है। विधानसभा में तो पूरी तरह समाप्त हो जायेगी।