“निरहुआ” जीतेगा या हारेगा ये वक्त बतायेगा, पर उसने खुद को घाघ समझनेवाले पांच पत्रकारों को एक वैचारिक संघर्ष में जरुर धूल चटा दिया
ये जो पत्रकार होते हैं न, जो दिल्ली में बैठते हैं, जो रुपयों के बंडल देखते ही, उछलकर एक चैनल से दूसरे चैनलों की डाल पर बैठ जाते हैं, जो अपने आका के इशारों पर विभिन्न चैनल्सों में डांस व एक्टिंग करते हैं और एक विशेष दल के लिए जिससे उनके आका जुड़े होते हैं, या जिनसे उनका काम सध रहा होता हैं, उसके पक्ष में हर कुकर्म करने को तैयार रहते हैं, ये खुद को बहुत ही चालाक और एक नंबर के धूर्त समझते हैं, इन्हें लगता है कि दुनिया की सारी जानकारी, बुद्धिमता उनकी गुलाम हैं, वे सभी पर राज करने के लिए बने हैं, उनके सामने जो भी राजनीतिज्ञ या कलाकार खड़ा हैं, वो आला दर्जे का मूर्ख हैं, उसकी इज्जत से खेलना उनका सबसे बड़ा धर्म है।
इधर जूम्मे-जूम्मे कुछ दिन हुए हैं, एक चैनल आया है टीवी 9, जिसे पता नहीं कौन देखता है, नहीं पता, ऐसे तो मैं भी कोई चैनल नहीं देखता हूं, क्योंकि भारतीय चैनलों को देखने से बीपी, ब्लड सुगर, तनाव, हाइपरटेंशन होने का खतरा बना रहता है, साथ ही दिमाग में कचरा भरने का खतरा भी बना रहता हैं, क्योंकि ये पड़ारकर या गणेश शंकर विद्यार्थी नहीं, और न ही हरिजन पत्रिका के संपादन कभी कर चुके गांधी जैसे पत्रकार हैं, ये तो आला दर्जे के बड़े-बड़े व्यापारियों के आगे डांस करनेवाले पत्तलकार है, इससे ज्यादा कुछ नहीं।
इधर फेसबुक में कुछ विजुयल देख रहा था, तभी अचानक हमें टीवी 9 की एक बहस पर नजर पड़ गई, देखना चाहा कि इतने खुद को अपने से महान बननेवाले पांच-छः पत्रकारों के प्रश्नों का जवाब एक सामान्य भोजपुरी कलाकार निरहुआ कैसे दे रहा हैं? क्या वो पर्दें पर ही कलाकारी दिखाता हैं या इन जैसे धूर्तों का इलाज भी करना जानता है। मैंने पाया कि निरहुआ ने इन पांचःछः पत्रकारों की बैंड बजा दी।
ये पांच-छः पत्रकार निरहुआ पर बरसना चाहते थे, उसे हुलुलू करना चाहते थे, पर निरहुआ ने उनकी ऐसे बजाई कि ये सभी हुलुलू हो गये। हम आपको बता दे कि दिनेश लाल निरहुआ, शून्य से शिखर पर पहुंचा हैं, उसने भोजपुरी फिल्मों में अलग पहचान बनाई हैं। कुछ लोग उसे नचनिया-बजनिया भी कहकर दुरदुराते हैं, पर सच्चाई यह भी हैं कि जिसे लोग नचनिया-बजनिया कहकर उसकी इज्जत से खेलते हैं, वह गरीब-गुरबा, मेहनतकश लोगों का असली मनोरंजनकर्ता है, जिस पर किसी की नजर नहीं जाती। ये धूर्त टाइप पत्रकार तो खुद अपने हिसाब से बड़े-बड़े होटलों तथा राजनीतिज्ञों की कृपा से हर स्तर का मनोरंजन कर लेते हैं, पर जो गरीब-गुरबा, मेहनतकश लोग है, उनके लिए तो निरहुआ आज भी असली हीरो है।
संयोग से जब मैं उस विजयुल को फेसबुक पर देख रहा था तो एक रिक्शावाला भी मेरे बगल में आकर बैठ गया। उसने विडियो देखते ही कहा कि अरे इ त निरहुआ रिक्शावाला है। मैने उससे पूछा कि तुम इसको कैसे जानते हो? उसने बोला कि अरे हम उसका फिल्म देखे है, मीनाक्षी सिनेमा हॉल में साठ रुपया देके, निरहुआ रिक्शावाला, गजब रोल करता है भइया, इ बहुत बड़ा आदमी बनेगा, बड़का स्टार बनेगा।
लीजिये एक सामान्य रिक्शावाला के आगे वो कलाकार निरहुआ हीरो है, और उस हीरो को भाजपा ने टिकट दिया, वह आजमगढ़ से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहा हैं, वो सपा के उम्मीदवार अखिलेश यादव को टक्कर दे रहा हैं, वो अखिलेश यादव जिसके इशारे पर बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ और पत्रकार उठक-बैठक करते हैं, ऐसे में क्या निरहुआ की इज्जत नहीं, उसके इज्जत से लोग खेंलेंगे और अपने को सिद्ध करेंगे कि वे काबिल पत्रकार है।
जरा देखिये निरहुआ ने रामधारी सिंह दिनकर की कविता को अपने स्वाभिमान से कैसे जोड़ा, जरा देखिये उसने तुलसी के विचारों को लेकर कैसे इन पांच पत्रकारों को धो डाला, जरा देखिये ये पत्रकार जब उसके विचारों को सुनते हैं तो कैसे कटहंसी कर रहे हैं, शायद उन्हें लग रहा है कि एक निरहुआ की ये औकात कि वह उनके सामने रामधारी सिंह दिनकर की कविता बोल रहा हैं, वह भी वह कविता जिसके बारे में इन पत्रकारों को कोई जानकारी ही नहीं, ये तो समझे थे कि वे निरहुआ को धोयेंगे पर ये क्या निरहुआ ने ही इन्हें धो डाला। जिन पत्रकारों को निरुहआ ने धोया, उनके नाम हैं वरिष्ठ पत्रकार जयशंकर गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव, टीवी 9 के न्यूज डायरेक्टर हेमन्त शर्मा, कंसल्टिंग एडिटर अजीत अंजूम और पुष्पेश पंत।
सचमुच निरहुआ तुम इलेक्शन हारो या जीतो, कोई मायने नहीं रखता, पर तुमने लाखों-करोड़ों अपने प्रशंसकों का मान रख लिया, तुमने दिनकर की कविता और तुलसी के दोहों से इन धूर्त पत्रकारों को बता दिया कि केवल वहीं विद्वान नहीं, कलाकार भी विद्वान होते हैं, जिस दिन उनके जैसे कलाकार उसके सामने हो गये, तो उन जैसे पत्तलकारों की भी बोलती बंद हो जायेगी।
जरा देखिये निरहुआ कितनी शान से बोल रहा है – सुनिये हमारी बात, मेरी बात सुनिये, और कैसे हक्के-बक्के हो जा रहे हैं, ये कथित पत्रकार जो अपने व्यापारिक आकाओं के इशारों पर हर प्रकार के कुकर्म करने को तैयार रहते हैं, तथा जिनसे देश को कुछ भी प्राप्त नहीं होता, पर ये देखते ही देखते करोड़ों-अरबों में खेलने लगते हैं, और सामान्य पत्रकार जो ईमानदारी से जी रहा होता हैं, सत्य पर जी रहा होता हैं, उसे दो जून की रोटी भी ठीक से नसीब नही होती।
खींच तान
तोड़ प्राण
रख मान
बचा
स्वाभिमान❣️🙏