कितना अच्छा होता PM मोदी भाजपा के सांसदों/विधायकों के मन की बात को सुन ‘भाजपा सांसद/विधायक संतान पुनर्वास योजना’ लागू करवा देते
कितना अच्छा रहता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी झारखण्ड के कुछ भाजपा सांसदों/विधायकों के मन में उमड़ रहे, उनके संतानों के मोह को देखते हुए, उनके लिए आनेवाले लोकसभा चुनाव व विधानसभा चुनाव को देखते हुए ‘भाजपा सांसद/विधायक सन्तान पुनर्वास योजना’ लागू करने पर विचार करते। इससे फायदा यह होता कि कम से कम वे भाजपा सांसद व विधायक जिन्हें दुबारा टिकट मिलने की संभावना नहीं हैं, वे इस योजना का लाभ उठाते हुए अपने संतानों अथवा अपनी पत्नियों या साले/सालियों को ही भाजपा का टिकट दिलवाकर उन्हें चुनाव लड़वा देते।
चुनाव लड़ने के बाद अगर जीतते तो सांसद-विधायक को मिलनेवाली सांसद-विधायक कोटे की राशि का रसास्वादन करते, सांसद-विधायकों को मिलनेवाले भारी-भरकम वेतन और उन्हें मिलनेवाली विशेष प्रकार की लाभ के वे मजे लेते और अंत में जब तक जिन्दा रहते अपने और अपने परिवार के बचे हुए लोगों को आजीवन पेंशन भी दिलवाते, जिससे उनका जीवन स्वर्ग के समान धरती पर बीतता, आखिर भाजपा के लिए सांसद/विधायक बनकर जो उन्होंने शानदार जीवन यापन किया, उसका लाज भी रखना तो भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं का धर्म बनता है।
बताइये पिता या पति सांसद या विधायक बन कर मजे लें और बाद में उसकी संतान या पत्नी या उनके साले-सालियां सड़कों पर भीख मांगे, ये क्या किसी प्रकार से उचित है? नहीं न। इसलिए इस पर भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं को पुनर्विचार करना चाहिए, क्योंकि अब लोकसभा या विधानसभा चुनाव में कितना देर ही हैं?
सूत्र बताते हैं कि इधर भाजपा के कई सांसदों और विधायकों को इस बात का आभास हो गया है कि उनका इस बार पत्ता कटना तय है। इसलिए उन्होंने अभी से ही अपने संतानों, साले-सालियों, बेटे-बेटियों, बहूओं के लिए भाजपा का टिकट मिले, इसके लिए मगजमारी शुरु कर दी है। इधर जब से इन सांसदों-विधायकों ने इस प्रकार की मगजमारी शुरु की है।
इनकी मगजमारी देखकर वैसे भाजपा कार्यकर्ता जो चाहते है कि अब उन्हें सांसद-विधायक बनकर सांसद/विधायक को मिलनेवाले करोड़ों की राशि का रसास्वादन करने की बारी हैं, उनकी सांसे ही अटक गई हैं, क्योंकि वे देख चुके है कि भाजपा का टिकट लेकर सांसद/विधायक बननेवाले कुछ नेता किस प्रकार से देश-सेवा के नाम पर अब तक अपना व अपने परिवार की सेवा करते रहे हैं।
ऐसे टिकट की चाह रखनेवाले कोरे भाजपा कार्यकर्ता, चाहते हैं कि अब उनके भी हाड़ में हल्दी लगने का समय हो गया है। इसलिए उन्हें भी सांसद/विधायक बनकर वो हर प्रकार का लाभ लेने के वे उत्तराधिकारी हैं, जिसका लाभ वर्तमान या पूर्व में भाजपा के टिकट पर सांसद/विधायक बने लोग मजे ले रहे हैं। एक भाजपा कार्यकर्ता ने विद्रोही24 को नाम न छापने के शर्त पर बताया कि वर्तमान में कौन ऐसा सांसद नहीं हैं, जो यह नहीं चाहता कि उसे दुबारा टिकट न मिले और अगर दुबारा टिकट न मिले तो उसके स्थान पर उसके संतानों या साले-सालियों या पत्नियों को टिकट न मिले।
कुछ नेता तो अभी से ही अपने संतानों व रिश्तेदारों को भाजपा में घुसाकर उसे महत्वपूर्ण स्थान दिलाने का जुगत लगा चुके हैं। जिसके कारण उन जगहों के भाजपा कार्यकर्ताओं में मायूसी है, जो भाजपा के टिकट को लेकर चुनाव लड़ने का मन बना चुके हैं। राजनीतिक पंडितों की मानें, तो पूर्व में भारत की दो पार्टियां -एक भाजपा और दूसरी वामपंथी पार्टियां। कैडर पार्टी के नाम से जानी जाती थी। इन पार्टियों से कहां से कौन उम्मीदवार होगा? खुद उस उम्मीदवार को पता नहीं होता था, जब टिकट मिलता तो पता लगता, पर जैसे-जैसे पतन का स्तर नीचे चलता गया।
इन दोनों पार्टियों में परिवारवाद हावी होता गया। जैसे कोई सांसद/विधायक मर गया तो उसके बेटे/बेटियों या पति/पत्नियों को आनन-फानन में पार्टी की प्राथमिक सदस्यता दिलवाकर उसे उस स्थान से चुनाव लड़ाकर सांसद/विधायक बनाने का काम किया गया। पहले ये काम छुप/छुपाकर होता था, पर आज तो ताल ठोककर हो रहा है। ऐसे में अब इन पार्टियों से ईमानदारी, चरित्र, सत्यनिष्ठा, समर्पण की बात करना ही बेमानी है।
स्थिति तो यह भी है कि इस पतन के कारण ही अब कई वर्षों में इन पार्टी में रहने और उसके मजे लेने के बाद भी कई लोग बागी होकर, स्वयं या अपने परिवार के सदस्यों को दूसरे दलों से खड़ा करवाकर पार्टी को नाक में दम कर रखे हैं। लेकिन, इधर भाजपा में पनपी इस कुसंस्कृति ने भाजपा को कहीं का नहीं छोड़ा है। इसलिए कई राजनीतिक पंडित तो अब खुलकर कहने लगे हैं कि भाजपा अब कांग्रेस की ‘बी’ टीम बन चुकी है। अगर भाजपा इस कुसंस्कृति पर रोक नहीं लगाई तो आज कांग्रेस झेल रही हैं, आनेवाले समय में भाजपा भी झेलने को तैयार रहे।