जब रांची से प्रकाशित अखबारों के साख पर लगा बट्टा, तब याद आये उन्हें हिन्दपीढ़ी के दद्दा
इन दिनों गजब हो रहा हैं, गजब की पत्रकारिता देखने को मिल रही है, रांची के करीब-करीब ज्यादातर प्रमुख अखबारों में हिंदपीढ़ी से जुड़ी सकारात्मक खबरें देखने को मिल रही है, यही नहीं, अखबारों को हिंदपीढ़ी के लोगों की समस्याओं पर भी नजर पड़ी हैं, वे अपने अखबारों में प्रमुखता से इसे उठा रहे हैं और श्रेय भी ले रहे है कि उनके खबरों का प्रभाव पड़ा, सीएम हेमन्त सोरेन पहुंचे हिन्दपीढ़ी, बांटे खाद्यान्न।
सचमुच जब आप अच्छा कर रहे हैं तो उसका श्रेय भी लेना चाहिए, पर जब किसी अखबार के कारण किसी इलाके की छवि खराब हो जाती हैं तो ऐसे अखबारों को भी ईमानदारीपूर्वक उन खबरों के लिए जनता से माफी मांगनी चाहिए, माफी मांगने से कोई छोटा नहीं हो जाता, बल्कि उसकी इससे उदारता परिलक्षित होती हैं।
इसमें कोई दो मत नहीं कि रांची से छप रहे कई प्रमुख अखबारों के प्रति हिन्दपीढ़ी के लोगों का गुस्सा अभी भी कम नहीं हुआ हैं, वे आज भी बहुत नाराज हैं, अपनी नाराजगी वे बैनर एवं सोशल मीडिया के माध्यम से कई बार जाहिर कर चुके हैं, कई इलाकों में तो गये अखबारों के संवाददाताओं/छायाकारों को इनके आक्रोश का भी सामना करना पड़ा हैं, अंजुमन इस्लामिया के सदर इबरार अहमद ने तो एक अखबार का नाम लेकर, अपना गुस्सा प्रकट किया था और कहा था कि उक्त अखबार से हमें ये आशा नहीं थी। हिन्दपीढ़ी के कई इलाकों में रांची से प्रकाशित प्रमुख अखबारों को लोगों ने जलाया भी था, तथा इसे सोशल साइट पर वायरल भी किया।
जिसका प्रभाव अब देखने को मिल रहा है, अब रांची से प्रकाशित अखबार, समाचार को समाचार के रुप में ही प्रकाशित कर रहे हैं तथा उसे अतिरंजित करने से बच रहे हैं, जो प्रशंसनीय है, यही नहीं अब प्रतिदिन ऐसी खबरें वे दे रहे हैं, जिससे लगता है कि हिन्दपीढ़ी में अब पहले जैसा माहौल नहीं रहा, हालांकि वहां के लोगों को कहना है कि वहां माहौल कभी खराब नहीं रहा, बल्कि खराब करने की कोशिश की गई, आप कुछ लोगों की गलतियों व भूलों को पूरे इलाके पर नहीं थोप सकते।
हिंदपीढ़ी में रहनेवाले बहुत सारे लोगों ने विद्रोही24.कॉम को बताया कि इन दिनों कई अखबार ऐसी-ऐसी खबरें प्रकाशित कर रहे हैं, जैसे लगता है कि उनका हृदय परिवर्तन हो गया हो, पर उनका हृदय परिवर्तन हुआ या कुछ और हुआ हैं, वे बखुबी समझते हैं, इसलिए इन खबरों के बावजूद भी हिन्दपीढ़ी में आज भी लोग अखबारों को लेने से बच रहे हैं, इन सभी का कहना है कि रांची के अखबारों ने अपना विश्वास अब सदा के लिए खो दिया हैं।
अब वे कितना भी प्रयास कर लें, अब वो प्रेम अखबारों और जनता के बीच नहीं रहा, गांठ पड़ चुका हैं, वो कहते हैं न – “रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय, टूटे पर भी ना जुड़े, जुड़े गांठ पड़ि जाय” अतः अब बहुत दूरियां बन गई हैं, अब उन दूरियां को मिटाना संभव नहीं, क्योंकि इन दूरियों के जन्मदाता, कोई और नहीं खुद मीडियावाले ही हैं।