धर्म

जानिये योग को…

इन दिनों योग के नाम पर बहुत सारी दुकानें खुल चुकी है, और खुलने की तैयारी में भी है। आश्चर्य इस बात की भी, कि इस मुर्खों की दुनिया में योग की दुकान खोलनेवाले, देखते ही देखते करोड़ों में खेल रहे है और मूर्खों का समूह इसे ही योग समझ कर अपनी इतिश्री करा ले रहा है…

जबकि सच्चाई यह है कि जो वे कर रहे है, या जो करा रहे है, उनका योग से कोई लेना – देना नहीं है और न वे योग को जानते है…

तो फिर योग है क्या?

संस्कृत साहित्य में इसे एक वाक्य में रेखांकित किया जा चुका है…

योगश्चितवृत्तिनिरोध:।।

अर्थात् चित्त को विभिन्न वृत्तियों अर्थात् आकारों में परिणत होने से रोकना ही योग है।

तदा द्रष्टुः स्वरुपे अवस्थानम्।।

यानी उस समय अर्थात् इस निरोध की अवस्था में द्रष्टा पुरुष अपने अपरिवर्तनशील स्वरुप में अवस्थित रहता है।

वृत्तिसारुप्यमितरत्र।।

इस निरोध की अवस्था को छोड़कर दूसरे समय में द्रष्टा वृत्ति के साथ एकरुप होकर रहता है।

अब ये जानना जरुरी है कि

वृत्तियां क्या है?

यह कितने प्रकार की होती है?

क्योंकि बिना इसे जाने हम योग की ओर आकृष्ट नहीं हो सकते अथवा योग के मूल स्वरुप को नहीं जान सकते।

वृत्तियां पांच प्रकार ही होती है, जिनमें कुछ क्लेशयुक्त होती है और कुछ क्लेशरहित। ये है प्रमाण, विपर्यय, विकल्प, निद्रा और स्मृति यानि सत्यज्ञान, भ्रमज्ञान, शब्दभ्रम, निद्रा और स्मृति।

आम तौर पर बहुत सारे चालाक कथित योगगुरु इसी योग को गलत तरीके से पेश करके अपनी धूर्तता से पूरे भारत को बर्बाद करने पर तुले है और इसी की आड़ में वे सारे धंधे कर रहे है, जिनकी योग इजाजत नहीं देता…

योग शरीर में स्थित आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का नाम है, और ये सिर्फ ध्यान से ही हो सकता है, न कि दूसरी पद्धतियों से…

छोटे-बड़े व्यायाम करने से आप अपने शरीर को स्वस्थ रख सकते है, ये जरुरी भी है, क्योंकि आपकी आत्मा जिस शरीर में रहती है, उसका जीर्ण-शीर्ण होना, किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं है, इसलिए जिस शरीर में आत्मा का वास है, उस पर ध्यान देना जरुरी है, ठीक उसी तरह जैसे आप जिस घर में रहते है, उसका आप दैनिक देखभाल करते है, उसकी साफ-सफाई करते है, अगर आप उसकी साफ-सफाई नहीं करें तो वह घर रहनेलायक नहीं होता, अंततः उस घर को आपको छोड़ना पड़ जाता है, इसलिए शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम जरुरी है, पर व्यायाम को योग नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इससे चित्त को विभिन्न वृतियों में परिणत होने से नहीं रोका जा सकता, इसके लिए सिर्फ और सिर्फ ध्यान ही जरुरी है…

योग कितने प्रकार के होते है…

इसकी भी धूर्त लोग, अपने – अपने ढंग से व्याख्या कर दी है, जितने धूर्त, उतने योग, जबकि योग मात्र 4 प्रकार के है, यानी प्रभु के पास जाने के चार मार्ग। वे है –

कर्मयोग

ज्ञानयोग

भक्तियोग

हठयोग

इन चारों में से किसी को अपनाकर आप परमपिता परमेश्वर के परम आनन्द में गोता लगा सकते है, पर इसके लिए भी शरीर का स्वस्थ होना और ध्यान करना आवश्यक है।

एक बात और…

परम पिता परमेश्वर के आनन्द में गोता लगाने की इच्छा रखनेवालों को यह भी जान लेना आवश्यक है कि आप है क्या?

क्या आप स्वयं को शरीर मानते है?

या

आप स्वयं को आत्मा मानते है, जो शरीर रुपी पिंजड़ें से आबद्ध है, अगर आप स्वयं को आत्मा मानते है, जो शरीर रुपी पिंजड़ें से आबद्ध है, तो आप सत्य की पहली सीढ़ी को पार कर चुके है, फिर आपको शरीर को स्वस्थ रखने के लिए योगासन और ध्यान को समझने में ज्यादा कठिनाई नहीं आयेगी।

थोड़ा और मेहनत करें, श्रीमद्भवगद्गीता और पतजंलि के योगसूत्र को पढ़े और उस पर अमल करें, निश्चित है कि आप बहुत जल्द ही स्वयं को जान लेंगे और फिर कहीं कोई दिक्कत नहीं।

याद रखिये, योग व्यायाम का नाम नहीं, शरीर के अंगों को इधर-उधर घुमाने का नाम नहीं, मन को काबू करने और उसे अपनी इच्छानुसार चलाने तथा ईश्वर को प्राप्त करने का नाम है, ये संभव है, आप कर सकते है, आपको इस संसार में इसी के लिए भेजा गया है।

चूंकि एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय योग दिवस आ रहा है, लोग अपने – अपने माध्यम से योग को रेखांकित करने का काम करेंगे, आप उनके भ्रमजाल में न पड़ें।

झारखण्ड और उसमें भी खासकर रांची के लिए खुशी की बात है कि यहां दो अच्छे संस्थान है, जो इस ओर ज्यादा जागरुक है।

एक – राम कृष्ण मिशन।

दुसरा – योगदा सत्संग सोसाइटी।

यहां रहनेवाले योग साधक आपको उस उच्चतम बिंदु तक ले जा सकते है, फिर भी इसके लिए आपका प्रयास ही सर्वाधिक बहुपयोगी होगा, हालांकि इस भ्रमजाल में कोई जरुरी नहीं कि आप यहां तक पहुंच ही जाये या यहां आने पर भी आपको मुक्ति मिल ही जाये,

क्योंकि, आप जितने अधिक अंदर से मजबूत होंगे, आप जितने अपने मन को स्थिर और काबू में ऱखने का प्रयास करेंगे, आपको सफलता उतनी ही तीव्रता से प्राप्त होगी।

चूंकि होता यह है कि मनुष्य को तीन प्रकार की व्याधियां, उसके जन्म से ही पीछा करना प्रारंभ कर देती है। वे व्याधियां है – शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक। मनुष्य हालांकि स्वयं को व्याधिरहित मानता है, पर सत्य यहीं है कि उसकी मानसिक अवस्था, उस रुप में नहीं होती, जैसा योग के माध्यम से परम आनन्द को प्राप्त कर रहे परमयोगियों को होती है।

एक बात और, यह भी आप भूल जाइये कि इस योग पर अधिकार, ईश्वर के परम आनन्द को प्राप्त करने का अधिकार सिर्फ योगियों, संन्यासियों, वैराग्य जीवन प्राप्त करनेवालों का है, अगर ऐसा होता तो भगवान शिव, भगवान कृष्ण गृहस्थाश्रम में रहकर योग के माध्यम से परम आनन्द को प्राप्त नहीं कर पाते, इसलिए आपको क्या बनना है?

आप किसलिए यहां आये है?

ये तय करना आपको है, आप योग के असली स्वरुप को पहचानिये, सारे काम छोड़कर, कम से कम दिन भर में सुबह-शाम ध्यान करना प्रारम्भ करिये, फिर देखिये, एक न एक दिन ऐसा आयेगा कि आपको लगेगा कि आप ने उन्हें प्राप्त कर लिया, जिसके लिए आप इस दुनिया में आये है…

2 thoughts on “जानिये योग को…

  • राजेसज

    ध्यानों धर्म:
    सुंदर लेख,
    आभार ,प्रणाम

  • राजेश कृष्ण

    ध्यानों धर्म:
    सुंदर लेख,
    आभार ,प्रणाम

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