जे पत्रकार पर हित करे, उ नेतवन बड़ लोग। फिरि गयो ‘हरिवंश’ राज्यसभा, ‘नीतीश’ लगायो जोर।।
जे पत्रकार पर हित करे, उ नेतवन बड़ लोग।
फिरि गयो ‘हरिवंश’ राज्यसभा, ‘नीतीश’ लगायो जोर।।
अर्थात् वे नेता धन्य हैं, महान हैं, जो पत्रकारों के हित में लगे रहते हैं, ठीक उसी प्रकार जैसे बिहार के मुख्यमंत्री, पत्रकार उद्धारक नीतीश कुमार, अपने परम प्रिय भक्त पत्रकार हरिवंश नारायण सिंह उर्फ हरिवंश के सम्मान की रक्षा करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।
एक बार फिर बिहार के मुख्यमंत्री, जदयू नेता एवं राजनीति में पलटीमार राजनीति को स्थापित करने के लिए पूरे देश में विख्यात नीतीश कुमार ने अपने स्वभावानुसार जातीय राजनीति पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए हरिवंश नारायण सिंह को दूसरी बार राज्यसभा से टिकट दे दी।
जैसे ही नीतीश कुमार ने इस बात की हरी झंडी दी। बिहार-उत्तर प्रदेश के राजपूत समुदायों तथा राजपूत पत्रकारों में हर्ष की लहर देखी जा रही हैं, विभिन्न सोशल साइटों पर नीतीश कुमार और हरिवंश नारायण सिंह की जय-जयकार हो रही हैं, उनके उज्जवल पक्ष को लोग सोशल साइट पर रखकर जय-जय कर रहे हैं, यही अपने समाज की असली सच्चाई है।
अगर नीतीश कुमार, इस बार थोड़ी सी पलटी मार दिये होते और हरिवंश को इस बार राज्यसभा का टिकट नहीं मिलता तो फिर देखते, हरिवंश की सोशल साइट पर कैसे धुलाई होती? चूंकि अपना समाज ही ऐसा है कि वो गलतियां सिर्फ उसी में ढूंढता हैं जो दीन-हीन होता है, जो मजबूत होता है, जिन पर बड़े लोगों का वरद्हस्त होता है, उसमें उसे खामियां नजर ही नहीं आती।
हालांकि हर आदमी में कुछ अच्छाइयां और बुराइयां होती है, वो हरिवंश नारायण सिंह में भी है, नीतीश कुमार ने फिर से इन्हें राज्यसभा में भेजने का मन बनाया, तो सिर्फ यह भक्तियोग के कारण ही हुआ है, सहजीविता के कारण ही हुआ है। हरिवंश ने अपनी नीतीश भक्ति में कही कोई कसर नहीं छोड़ी और नीतीश ने भी अपने भक्त की भक्ति में कोई खोट नहीं देखा, ऐसे में वहीं हुआ जो होना था।
हमें भी कौन सा इन दोनों महानुभावों में देशभक्ति देखनी हैं, जो ये दोनों दिखा रहे हैं, वहीं देखनी हैं, जो इनसे लाभान्वित हैं वे जय-जय करेंगे ही और जिनको इन दोनों से कोई लेना-देना नहीं, उन्हें इनकी इन भक्ति से क्या मतलब? देश में बहुत लोग सांसद बने, बहुत लोग प्रधानमंत्री बने और बहुत लोग राष्ट्रपति बन गये, कितने लोगों को लोग जानते हैं?
लोग उन्हीं को जानते हैं, जिन्होंने राजनीतिज्ञों के प्रति भक्ति न दिखाकर देश को ही अपना सब कुछ माना, जैसे वर्तमान में आप किसी से पूछिये कि तुम कितने राष्ट्रपति को जानते हो, तो वे और किसी का नाम ले या न लें पर एपीजे अब्दुल कलाम का नाम जरुर लेंगे यानी एपीजे अब्दुल कलाम साहेब का नाम लोग उनके मरणोपरांत भी बड़े ही अदब से लेते हैं चाहे वह कोई भी क्यों न हो?