झारखण्ड CM हेमन्त सोरेन, रांची के संपादकों/ब्यूरो प्रमुखों को दिये दर्शन, दर्शन प्राप्त कर पत्रकार हुए अभिभूत, CM का आशीर्वाद पाने, उनके संग फोटो खिंचाने आदि को लालायित दिखे तथाकथित पत्रकार
कल गुरुवार था। ऐसे भी गुरुवार सप्ताह का खास दिन होता है। जो बताता है, कि जो गुरु हैं, वो गुरु है, उसकी पूजा अर्चना से सारे मनोकामना पूरे हो जाते है, शायद यही कारण रहा होगा कि कल गुरुवार के दिन राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन भी रांची के पत्रकारों/ब्यूरो प्रमुखों के समक्ष गुरु की तरह दिखें, रांची के तथाकथित संपादकों/ब्यूरो प्रमुखों ने उनके दिव्य दर्शन कर, अपने जीवन को धन्य किया। दर्शन पाने को लहालोट भी हुए।
मुख्यमंत्री के संग अपनी फोटो भी खिंचवाई, प्रसाद के रुप में नाश्ता ग्रहण किया और फिर स्वयं को धन्य-धन्य कर, दूसरे दिन अखबारों में इस पूरे प्रकरण की अपनी-अपनी श्रद्धा-भक्ति अनुसार अखबारों में जगह भी दी। जिससे आज मुख्यमंत्री के इमेज की चिन्ता करनेवालों, मुख्यमंत्री आवास में रहनेवालों, परिक्रमाधारियों ने भी आनन्द के गोता में डूबकी लगा लिये।
एक संपादक तो इस कार्यक्रम को देख इतना अभिभूत था, जैसे लगता हो कि वो अब रोया, तब रोया। ऐसे भी भक्ति ऐसी चीज ही हैं, कि जब भगवान और भक्त मिलते हैं, तो दोनों की स्थिति मिलने वक्त गजब की होती है। यहां भगवान के रुप में मुख्यमंत्री थे तो भक्त के रुप में संपादकों/ब्यूरो प्रमुखों की टीम थी।
आश्चर्य है कि भक्ति का आलम यह था कि भक्त बने संपादकों/ब्यूरो प्रमुखों का मास्क किसी का दाढ़ी पर नजर आ रहा था तो किसी का मुंह से बाहर था तो किसी ने इस अवसर पर मास्क लगाने की जरुरत ही नहीं समझी थी। जहां सीएम की बैठने की व्यवस्था थी, वहां सोशल डिस्टेंसिंग का विशेष ख्याल रखा गया था, लेकिन जैसे ही फोटो सेशन शुरु हुआ, सोशल डिस्टेसिंग की हवा निकल गई थी।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि एक समय ऐसा भी था कि यही संपादक और ब्यूरो प्रमुखों की टीम, कभी आज भगवान बने हेमन्त सोरेन की हालत पस्त कर दी थी, उन्हें अखबारों में जगह तक नहीं देते थे, रघुवर दास का शासनकाल का करिश्मा था कि कोई ऐसा करने को जोखिम लेना भी नहीं चाहता था, लेकिन आज स्थिति बदल गई है। आज रघुवर दास की जगह खुद सीएम हेमन्त है, आज भगवान की तरह संपादकों द्वारा पूजित हो रहे हैं। संपादकों/ब्यूरो प्रमुख की टीम उनकी चरणों में लहालोट है।
इधर कई तथाकथित संपादकों व ब्यूरो प्रमुख को मैं देख रहा हूं कि इस फोटो सेशन को अपने सोशल साइट फेसबुक पर इस प्रकार से चेप रहे हैं, जैसे लगता हो कि उनकी जिंदगी ही पूर्णतः सफल हो गई। साक्षात् भगवान से भेंट हो गई हो। सूत्र बताते है कि गुरुवार के दिन मुख्यमंत्री से किन तथाकथित संपादकों/ब्यूरो प्रमुखों को मुख्यमंत्री का दर्शन करवाकर उन्हें कृतार्थ किया जाये, उनके जीवन को धन्य किया जाये।
इसके लिए परिक्रमाधारियों(कनफूंकवों) ने एक गोपणीय सूची तैयार की थी, जिसे सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के मणीषियों ने जमीन पर उतारा और मुख्यमंत्री के दरबार में पहुंचते ही सभी ने मुख्यमंत्री के दिव्य दर्शन कर, अपने मन को उनके चरणों मे समर्पित कर दिया तथा उनका मन बोला… महाराज की जय हो।
आश्चर्य है कि एक समय था। जब इसी राज्य में एक अखबार के प्रधान संपादक हरिवंश हुआ करते थे, और वे इन सभी प्रकार के हथकंडों से खुद को दूर रखा करते थे, आज राज्यसभा के उप सभापति है। कहने का तात्पर्य है कि कोई भी व्यक्ति अगर कोई बड़ी दूरी तय किया हैं, तो कही न कहीं उसके पीछे कुछ त्याग की भावना अथवा कुछ न कुछ अलग प्रकार का संस्कार होता ही है।
ये अलग बात है कि आज उनकी पत्रकारिता की त्याग और तपस्या राज्य सभा में धूल-धूसरित हो रही हो, पर सच्चाई यही है कि पत्रकारीय जीवन में उनकी एक विशेष भूमिका तो रही ही हैं। मैंने कभी उन्हें इस प्रकार के कार्यक्रम में खुद को शामिल होते नहीं देखा। एक समय़ था कि मैं उनके इसी प्रकार के संस्कारों का कायल भी था, और कस्में खाता था।
शर्म की बात है। मुख्यमंत्री आवास में पहुंचकर संपादकों/ब्यूरो प्रमुखों की टीम फोटो सेशन करा रही है, दांत दिखा रही है, पर हिम्मत नहीं हो रहा कि मुख्यमंत्री से यह पूछे कि इसी राज्य में पूर्व मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव के आप्त सचिव रहे अरविन्द कुमार के माता-पिता की नृशंस हत्या कैसे हो गई? महिला दारोगा रुपा तिर्की की हत्या कैसे हो गई? धनबाद में जज की हत्या का होना क्या बताता है? पूरे राज्य में ट्रांसफर पोस्टिंग का धंधा अपने चरम पर हैं और ईमानदार व कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी झाऱखण्ड में हाशिये पर है, आखिर ऐसा क्यों?
भाई संपादकों/ब्यूरो प्रमुखों, आप का काम यही रह गया है, मुख्यमंत्री के दर्शन करना, आशीर्वाद ग्रहण करना, प्रसाद के रुप में नास्ता ग्रहण करना, पंचामृत के रुप में चाय पीना या जनहित में सवाल दागना, जनहित के लिए अखबारों/चैनलों को प्रस्तुत करना। फिलहाल आपने जो कल किया, वो तो राज्य की जनता से पूछिये कि राज्य की जनता क्या सोच रही हैं?
अरे आप की तो इतनी हिम्मत ही नहीं कि सड़कों पर संघर्ष कर रहे युवाओं के सामने जाने की, क्योंकि वो भी पूछने के लिए छटपटा रहे है कि गये थे मुख्यंमत्री का दर्शन करने या हमारे लिए कुछ पूछने? क्या पत्रकारों/संपादकों का अब बस यही काम रह गया है? अभी भी वक्त है, संभलिये, खुद को पहचानिये, कलम की ताकत पहचानिये, पर आप तो पेट और पेट के सिवा कुछ जानने की कोशिश ही नहीं कर रहे, तो आपकी स्थिति मंदिर-मस्जिद के आस-पास बैठे उस व्यक्ति की तरह हो गई हैं, जो भूखा-नंगा बैठा रहता है, यह सोचकर कि कोई दयालु आदमी आयेगा और दया बरसा देगा।
धन्य धन्य भय जन्म हमारा।।
तब भये नाथ दरश तुम्हारा।।
पत्तलकार बन पत्ते न चाटे
और प्रभु दरश के चित्र न बाटें
तो क्या कर के फिर नाम कमाऊं
कलम बेंच..कर माल कमाऊं।।