क्या सरकार द्वारा धर्मांतरण पर विज्ञापन के माध्यम से किसी समुदाय को टारगेट करना ठीक हैं?
आज राज्य सरकार ने जो विज्ञापन निकाली है, वह इस प्रकार है…
उपर में भगवान बिरसा मुंडा और स्व. कार्तिक उरांव जी की तस्वीर है, इनके अगल-बगल पं. दीन दयाल उपाध्याय की जन्म शताब्दी और झारखण्ड सरकार का लोगो हैं। पूरे एक पृष्ठ के विज्ञापन में एक ओर महात्मा गांधी की तस्वीर और नीचे मुख्यमंत्री रघुवर दास का लोक-लुभावन चित्र दिया गया है। विज्ञापन में लिखा है – भगवान बिरसा मुंडा और स्व. कार्तिक उरांव का सपना पूरा करने की दिशा में पहल।
“यदि ईसाई मिशनरी समझते है कि ईसाई धर्म में धर्मांतरण से ही मनुष्य का आध्यात्मिक उद्धार संभव है, तो आप यह काम मुझसे या महादेव देसाई से क्यों नहीं शुरु करते। क्यों इन भोले-भाले, अबोध, अज्ञानी, गरीब और वनवासियों के धर्मांतरण पर जोर देते हैं। ये बेचारे तो ईसा और मुहम्मद में भेद नहीं कर सकते और न आपके धर्मोपदेश को समझने की पात्रता रखते हैं। वे तो गाय के समान मूक और सरल हैं। जिन भोले-भाले अनपढ़ दलितों और वनवासियों की गरीबी का दोहन करके आप ईसाई बनाते है वे ईसा के नहीं ‘चावल’ अर्थात् पेट के लिए ईसाई होते हैं”
- महात्मा गांधी।
रघुवर सरकार का विज्ञापन आधा-अधूरा, जनता को सही बात समझाने में विफल, कटुता बढ़ने के आसार
बात रघुवर सरकार ने जो यह विज्ञापन निकाली है, उसमें साफ लिखा है कि भगवान बिरसा मुंडा और स्व. कार्तिक उरांव का सपना पूरा करने की दिशा में पहल, पर वह पहल क्या है? यह विज्ञापन में कहीं नहीं दिखता, लेकिन दिमाग पर जोर डालने से यह पता चलता है कि सरकार यह बताना चाहती है कि वह जो पिछले दिनों कैबिनेट के माध्यम से झारखण्ड धर्म स्वतंत्र विधेयक 2017 को पारित कराया है, ये विज्ञापन उसी के इर्द-गिर्द चक्कर काटता है, और यह सीधे ईसाई मिशनरियों को एक प्रकार से चुनौती है, कि सरकार उनसे हर प्रकार से निबटने को तैयार है, अगर राज्य सरकार की ये मंशा है तो इस मंशा को किसी भी प्रकार से सहीं नहीं ठहराया जा सकता। रघुवर सरकार को यह भी मान लेना चाहिए कि धर्मांतरण केवल ईसाई मिशनरियां ही नहीं कराती और भी यहां धार्मिक संगठन है, जो इस प्रकार के खेल में बरसों से लगे है, उनका धर्मांतरण कराने का तरीका ऐसा चल रहा है कि उनसे निबटने में राज्य सरकार की पुलिस और अन्य जांच एंजेंसियों के हाथ-पांव फूल जाते है, इसलिए एक समुदाय को टारगेट करके इस प्रकार का विज्ञापन निकालना, किसी भी प्रकार से सही नहीं हैं।
जबरन धर्मांतरण पर रोक के लिए कानून पहले से ही बना हुआ है
ऐसे भी राज्य सरकार को मालूम होना चाहिए कि जबरन धर्मांतरण कराने पर रोक हेतु संविधान में पहले से ही कानून बना हैं, जिसके आधार पर ऐसे लोगों पर कार्रवाई होती रहती है, कानून उन पर शिंकजा कसता रहता है। झारखण्ड में चल रहा तारा शाहदेव का मामला एक प्रत्यक्ष उदाहरण है। आम तौर पर राज्य व केन्द्र सरकार द्वारा जो भी विज्ञापन निकाला जाता है, वह जनता को सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न जनोपयोगी सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए होता हैं, न कि चिढ़ाने अथवा धमकी देने के लिए। जैसा कि इस विज्ञापन से परिलक्षित होता है। झारखण्ड धर्म स्वतंत्र विधेयक 2017 को महात्मा गांधी के इस बयान से जोड़ना भी घातक है, क्योंकि राष्ट्रपिता ने जिस संदर्भ में ये बातें कही, वो संदर्भ आज के दिन में बेमानी है।
महात्मा गांधी और राज्य सरकार के भाव में आकाश जमीन का अंतर
राज्य सरकार ने अपने विज्ञापन में यह लिख दिया कि ये शब्द महात्मा गांधी के हैं, पर ये नहीं लिखा कि इन्होंने कब कहा? जब महात्मा गांधी ने ये बात कहीं तो उस वक्त देश के हालात कुछ और थे। आज आजादी के 70 साल हो गये, जिसमें 12 साल आप भी किसी न किसी रुप में केन्द्र में और 15 साल राज्य में सत्ता संभाले है, ऐसे में अगर आपने गरीबी नहीं मिटाई और अज्ञानता दूर नहीं की, तो इसके लिए आप भी जिम्मेवार है, इसलिए केवल आप ईसाई मिशनरियों को इसके लिए दोषी नहीं ठहरा सकते, कि वे प्रलोभन देकर धर्मांतरण करा रहे है। आप स्वयं बताइये कि गुमला में एक पिता को एंबुलेंस आप नहीं दिला सके कि वह अपने बच्चे को शव ले जा सके और अपनी प्रचार-प्रसार के लिए कई एलईडी वाहन प्रोजेक्ट बिल्डिंग से निकलवा दिये, ये क्या बताता है? क्या जनता मूर्ख है?
सरकार का काम किसी समुदाय को टारगेट करना नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता तैयार करना-कराना
इसलिए हम आपको बता दे कि सरकार का काम किसी भी समुदाय को टारगेट कर, उसके सम्मान के साथ खेलना नहीं होता और न ही नीचा दिखाना होता है, ऐसे में समाज में कटुता पैदा होती है। जो धर्मांतरण करते है, उनकी मजबूरियां समझिये और उनकी वह मजबूरी दूर करिये, जो आप किसी जिंदगी में नहीं कर सकते, क्योंकि आप कनफूंकवों के बीच बैठें है, वो आपसे कभी अच्छा काम करवाने नहीं देंगे। वे जनता से आपको दूरियां बनवाकर आपको कटघरे में लाकर खड़ा कर देंगे। अगर नहीं आपको मालूम तो जरा आपके द्वारा निकाले गये, आज ही के विज्ञापन को देखिये और पूछिये कि, हे विज्ञापन निर्माताओँ, तुमने ये तो लिख दिया भगवान बिरसा मुंडा और स्व. कार्तिक उरांव का सपना पूरा करने की दिशा में पहल, पर वह पहल क्या है? ये तो तुम जनता को बताओगे न। विज्ञापन निकालने का मतलब, कटुता पैदा करना नहीं, सामाजिक समरसता पैदा करना होता है। आज का सरकारी विज्ञापन पूरे झारखण्ड में ऐसा सामाजिक कटुता बोया है, कि निकट समय में इस क्षति की पूर्ति नहीं की जा सकती। इस आज के विज्ञापन ने सिद्ध कर दिया कि राज्य में स्थिति बहुत ही खराब है, और इसे सुधारने की कोशिश नहीं की जा रही।
धर्मांतरण केवल ईसाई मिशनरियां हीं नहीं करती, और भी करते हैं, उन पर भी शिंकजा कसिये।
सरकार जान लें कि धर्मांतरण के लिए केवल ईसाई मिशनरियां ही दोषी नहीं है, ऐसी और भी धार्मिंक संगठन है, जो इस कार्य को बखूबी निभा रहे हैं और आपकी ताकत नहीं कि उन्हें इस प्रकार से विज्ञापन के माध्यम से चुनौती दे दें। कहते है, सबका साथ, सबका विकास, पर यहां तो एक को धमकी, दूसरे को प्यार।