अपनी बात

झारखण्डियों संभलों, होश में आओ, हेमन्त जी आंखे खोलिये, ध्यान दीजिये, सावन-भादो खत्म हो गया, पर कुएं-तालाब में एक बूंद पानी नहीं, अगर यही हाल अगले साल भी हो गया तो क्या होगा?

28 सितम्बर से हथिया (हस्त) नक्षत्र चढ़ गया। इस नक्षत्र में भी अतिवृष्टि के योग है। इस वर्ष भारतीय नक्षत्रों को देखा जाये तो करीब-करीब सारे नक्षत्रों में बारिश के योग थे। बरसनेवाले बादल उमड़-घुमड़कर आकाश में मंडराएं भी, पर लोगों की मूर्खता और विकास की सनक ने उन बादलों को हमसे दूर कर दिया। ऐसा हो भी क्यों नहीं, घने वनों से भरा रहनेवाला ये झारखण्ड कंक्रीटों के जंगल में जो परिवर्तित होता जा रहा है।

जिन बादलों को रोककर बारिश कराने का काम यहां के जंगल किया करते थे, अब वे कहीं दिखाई ही नहीं देते। एक समय था जब  सिल्ली से लेकर नामकुम तक के इलाके घने वनों से आच्छादित रहते थे, पर अब वे दिखाई नहीं देते। कभी रामगढ़ से रांची आने पर पहाड़ पर जंगल दिखाई दिया करते थे, अब पहाड़ ही नहीं तो जंगल कहां से दिखाई देंगे। इसलिए वे भी समाप्त हो गये। रांची की सड़कों के दोनों किनारों पर बड़े-बड़े घने पेड़ दिखाई देते थे, वे भी विकास की भेंट चढ़ गये। अब तो रांची स्मार्ट सिटी बन रहा है। जिसमें कंक्रीट के जंगलो की इंट्री हो चुकी है। जो वहां पेड़ थे, उन्हें भी श्मशान में परिवर्तित कर दिया गया है। गजब की सोच है, भाई और गजब का विकास है।

आप कहेंगे, ये लिखने की आज जरुरत क्यों पड़ गई। भाई वो इसलिए कि वर्षा के हिन्दी महीनों में सावन और भादो के ही नाम आते हैं। सावन तो कब का बीत चुका और कल भादो भी खत्म हो गया। आश्विन ने डेरा-डंडा जमा लिया है। वर्षाकाल खत्म हो चुका। शरद ऋतु आ चुकी है। लेकिन रांची के सारे के सारे तालाबों की इस बार दयनीय स्थिति है। जो तालाब पिछले साल जलप्लावित होकर सड़कों पर बहा करते थे। आज उन तालाबों में पानी नहीं हैं। स्थिति ऐसी है कि उन तालाबों में अब दुर्गा विसर्जन कैसे होगा? कुम्हार दिये और गणेश-लक्ष्मी बनाने के लिए पानी कहां से लायेंगे, छठ कैसे मनेगा? यह यक्ष प्रश्न अब सामने हैं।

हालांकि आप इसका भी विकल्प ढूंढ लेंगे। मोटर चलायेंगे। हर घर के लोग छठ मनाने के लिए घर पर ही कृत्रिम तालाब बना लेंगे। जमकर पानी का दोहन करेंगे। फिर उस बेशकीमती पानी को अपने ही हाथों से नष्ट करेंगे, ये भी नहीं सोचेंगे कि अगर इसी प्रकार अगले वर्ष भी वर्षाकाल में बारिश ने दगा दे दिया तो फिर आगे क्या होगा? क्या इसकी कोई गारंटी देगा कि अगले वर्ष भी ये स्थिति नहीं होगी?

पूरे विश्व में पानी के लिए हाहाकार है। जब मैं रांची में ईटीवी में कार्यरत था। तब रांची के भूगर्भ जल निदेशालय में कार्यरत इसके निदेशक एस एल एस जागेसर जी कहा करते थे कि अगर रांचीवासी नहीं चेते, पानी का संरक्षण व वाटर रिचार्ज पर ध्यान नहीं दिया तो आनेवाले 40 सालों में पानी रांची मे दिखाई नहीं देगा। उनकी बात आज सच दिखाई दे रही है। कल तक जो तालाबों में पानी दिखाई देता था, आज कही पानी नहीं दिखाई दे रहा है। वर्षाकाल में जब ये हाल है तो अभी तो बहुत कुछ बाकी है। आज की रांची के तालाबों का ये दृश्य आनेवाली भयावहता को दिखाने के लिए पर्याप्त है।

आश्चर्य यह भी है कि लोग समझ रहे हैं, फिर भी जो लोग नये घर बना रहे हैं। वे अपने यहां पानी को रिचार्ज करने के लिए कुछ नहीं कर रहे। उलटे मोटर लगाकर खूब पानी मनमाने ढंग से बहा रहे हैं, बर्बाद कर रहे हैं। जहां मैं रहता हूं। वहां एक-दो घर को छोड़कर सभी के घरों में चार पहियेवाहन हैं। कुछ के घर में दो-दो चारपहिये वाहन है, वह भी बिना मतलब के, दिखाने के लिए, क्योंकि चारपहिये वाहन भी अब स्टेटस सिंबल हो गये हैं।

कई के घरों में दो से अधिक दो पहियेवाहन है। यही पर एक घर ऐसा है कि हफ्ते में दो-दो तीन-तीन बार अपनी चार पहियावाहन को घर से बाहर निकालकर धोता रहता है। पानी बर्बाद करता रहता है, तथा चार पहियेवाहन को धोने के क्रम में जो पेट्रोल व डीजल से युक्त गंदा पानी निकलता हैं, वो वहीं बहकर फिर धरती के अंदर समाने के लिए तैयार रहता हैं, मतलब अंदर के भी जल को बर्बाद करने का काम ये लोग करते हैं, पर इन्हें शर्म नहीं आती।

बोलने पर उलटे लड़ पड़ते हैं। होना तो ये चाहिए कि अगर आपके पास चार पहियेवाहन हैं तो उसे उस जगह पर जाकर साफ-सफाई करनी चाहिए, जिसके लिए ये स्थान बना है। लेकिन मेरी मर्जी का जो जज्बा हैं, भला कोई उसे क्यों चुनौती देगा। आश्चर्य यह भी है कि रांची नगर निगम के कर्मचारी व अधिकारी भी ऐसे लोगों को दंडित नहीं करते, जिन्होंने पानी को बर्बाद करने का ठेका ले रखा है, या अपने घरों में वर्षा जल को भूमि के अंदर तक पहुंचाने के लिए कोई प्रबंध ही नहीं किया है।

रांची की प्रमुख नदियां जैसे स्वर्णरेखा, हरमू व जुमार को तो लोगों ने गला दबा दिया है। इसके उद्गम स्थलों को ही लोगों ने बर्बाद करने की ठान ली है। ऐसे में एक तो वर्षा का न होना, तालाब का सूख जाना और फिर नदियों के उद्गम स्थल पर भी प्रश्नचिह्न लगा देना, क्या बताता है? हमारे यहां तो लोग तब जगते हैं, जब सब कुछ लूट जाता है। मतलब कुआं तब खोदते हैं, जब घर में आग लगती है। लेकिन लोगों को नहीं पता कि अब जब घर में आग लगेगी तो कुआं खोदने पर भी पानी निकल ही जायेगा, इसकी भी कोई गारंटी नहीं हैं।

राज्य सरकार को चाहिए कि इसे गंभीरता से लें। 2023 में बारिश की कमी ने झारखण्ड के भविष्य पर गंभीर रेखाएं खींच दी हैं। यहां की गैर-जिम्मेदार जनता को जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाएं। पानी की बर्बादी को रोकने के लिए दंडात्मक कार्रवाई करें, क्योंकि ऐसे ये सुननेवाले नहीं हैं। जिन्होंने अपने घर में मोटर लगाकर अंधाधुंध पानी बर्बाद करने का जो ठेका ले रखा हैं। बिना नगर निगम के आदेश के मनमाने ढंग से मकान बना रहे हैं और पानी का बेवजह बर्बादी कर रहे हैं, उन पर भी कार्रवाई करें। नहीं तो स्थिति और भयावह होगी। लोग बिना पानी के मरेंगे और पानी का निर्माण आप कर ही लेंगे, इसकी कोई वैज्ञानिक आविष्कार हमारे समझ में अब तक नहीं हुआ है। इसे जितना जल्दी लोग समझ लें, अच्छा रहेगा।