अपनी बात

झारखण्ड RSS के पदाधिकारियों ने सरसंघचालक मोहन भागवत की मर्यादाओं का ख्याल नहीं रखा

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अधिकारियों ने सरसंघचालक मोहन भागवत की मर्यादा को कल यानी शुक्रवार को ताक पर रख दिया और जैसे मन किया वैसे लोगों को उनके समकक्ष बिठा दिया। झारखण्ड स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इन अधिकारियों ने सरसंघचालक मोहन भागवत की रांची यात्रा को विवादास्पद बनाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी।

कल यानी शुक्रवार को झारखण्ड राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े पदाधिकारियों ने रांची के आइआइएम और झारखण्ड स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन स्टेडियम में सरसंघचालक मोहन भागवत के कार्यक्रमों के दौरान संघ में आस्था नहीं रखनेवालों को मोहन भागवत के समकक्ष बिठाने की कोशिश की, जो किसी भी प्रकार से संघ के प्रति निष्ठा नहीं रखते और न ही पूर्व में कभी संघ के कार्यक्रमों में दिलचस्पी ली।

ये वे लोग हैं, जिन्होंने अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए संघ के कार्यक्रमों में संघ के ही राज्य स्थित पदाधिकारियों का सहारा लिया और बड़ी तेजी से सरसंघचालक मोहन भागवत के बगल में बैठने में भी सफल हो गये। जो संघ के अधिकारी ये कहते नहीं थकते कि संघ को जानना है तो संघ की शाखाओं में आइये। अब वे ही बताएं कि आनन्द भूषण या अमिताभ चौधरी संघ के किस शाखा के स्वयंसेवक है या इन्होंने कब संघ की शाखाओं में जाने की कोशिश की है।

दरअसल ये वे लोग हैं, जिन्होंने समय को पहचाना और अपने आप में तब्दीली लाई, फिर संघ के उच्चाधिकारियों से संपर्क साधा और सत्ता का फायदा उठाया, और आज तो यह स्थिति हो गई कि ये सरसंघचालक मोहन भागवत के बगल में बैठने में भी कामयाब हो गये। यानी इतनी तरक्की तो आज तक संघ का एक सामान्य स्वयंसेवक भी नहीं कर पाया, जो तरक्की झारखण्ड के संघ के पदाधिकारियों से मेल रखने के कारण इन महानुभावों ने कर ली।

आश्चर्य है कि संघ के अधिकारी, ऐसे लोगों को मोहन भागवत तक पहुंचाने में सफलता प्राप्त कराने के लिए अपने पद का गलत इस्तेमाल किया। सूत्र बताते है कि आइआइएम सभागार में जब मोहन भागवत बैठक ले रहे थे, वहां आनन्द भूषण भी पहुंच गये, और जहां मोहन भागवत भोजन कर रहे थे, उनके बगल में बैठकर भोजन तक ग्रहण किया और इसमें मुख्य भूमिका संपर्क प्रमुख राजीव कमल बिट्टू तथा सह प्रांत कार्यवाह राकेश लाल ने निभाई। अब ये दोनों ही बताएं कि आनन्द भूषण कब स्वयंसेवक बने कि उनके लिए इतनी उदारता बरत दी गई।

यही हाल जेएससीए स्टेडियम में दिखी। जहां आयोजित खिलाड़ियों की बैठक में क्षेत्र संघचालक सिद्धनाथ सिंह और सरसंघचालक मोहन भागवत के बगल में डायस पर बैठे अमिताभ चौधरी भी नजर आ गये, अब सवाल उठता है कि अमिताभ चौधरी कब से स्वयंसेवक हो गये? और अमिताभ चौधरी को वहां बैठाने का मतलब क्या था?

एक स्वयंसेवक ने विद्रोही24.कॉम को बताया कि कल के इन दोनों बैठकों और उसमें सरसंघचालक मोहन भागवत के साथ ऐसे-ऐसे लोगों के उठने-बैठने से उन्हें निराशा हुई है, क्योंकि एक तरफ सरसंघचालक और संघ के उच्चाधिकारी कहते है कि जिन्हें संघ से लाभ चाहिए, वे संघ में न आए, पर यहां तो संघ से लाभ लेनेवालों की एक लंबी सूची तैयार हैं, और ऐसे लोगों को फायदा पहुंचाने में संघ के ही उच्चाधिकारी शामिल है।

सरसंघचालक मोहन भागवत के कार्यक्रम में ऐसे लोगों को शामिल करना और उन्हें महत्वपूर्ण स्थान मिलना बताता है कि अब सामान्य स्वयंसेवकों की संघ में कोई महत्व नहीं। अब सभी ले-दे की परम्परा को पोषित करने में लगे हैं, अगर यही हाल रहा तो संघ से जुड़े लोगों को, संघनिष्ठ स्वयंसेवकों को पीड़ा ही पहुंचेगी, क्योंकि संघ में आज भी वैसे स्वयंसेवकों की एक बहुत बड़ी शृंखला हैं, जो एक बोली पर संघ के लिए मर-मिटने को तैयार हैं, राष्ट्र की सेवा संघ के माध्यम से करने का आजीवन व्रत ले रखा है।