झारखण्ड के DGP व जामताड़ा SP को उच्च न्यायालय ने फटकार लगाई, इसके बाद भी इन महानुभावों को शर्म आयेगी, इसकी संभावना हमें दूर-दूर तक नजर नहीं आती
दिनांक 2 अप्रैल 2022 को रांची से प्रकाशित सारे अखबारों में राज्य के पुलिस महानिदेशक के कृतित्व को लेकर समाचारें प्रकाशित हुई, जो पूरे राज्य में चर्चा का विषय बन गई। इस समाचार में इस बात को उल्लेखित किया गया था कि राज्य के पुलिस महानिदेशक को झारखण्ड उच्च न्यायालय ने इस बात के लिए फटकार लगाया था कि जिसके खिलाफ कोई सबूत ही नहीं, उसे जेल में कैसे डाल दिया गया? लोग यह समाचार पढ़कर हैरान रह गये।
लोग इस बात से हैरान नहीं थे कि झारखण्ड उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने एक गरीब शनिचर उरांव के दर्द-मर्म को समझा, बल्कि लोगों को हैरानी इस बात के लिए थी कि झारखण्ड उच्च न्यायालय ने राज्य के पुलिस महानिदेशक को इस बात के लिए फटकार कैसे लगा दी कि जिसके खिलाफ सबूत नहीं, उसे जेल में क्यों डाला गया, क्योंकि सच्चाई तो यही है कि यहां की पुलिस तो वैसे लोगों को ही जेल में डालने पर ज्यादा दिमाग लगाती है, जिनके खिलाफ कोई सबूत नहीं होता और जो किसी व्यक्ति विशेष के कहने पर शिकार बनाये जाते हैं और उस शिकार को बिना किसी साक्ष्य के ही सूली पर लटका दिया जाता हैं, या लटकाने का प्रयास किया जाता है।
शनिचर उरांव केवल अकेला नहीं हैं। ऐसे कई शनिचर हैं। ऐसे कई शनिचर को मैं जानता हूं। जो राज्य के पुलिस महानिदेशक के पास अपनी बेगुनाही का सबूत लेकर गये, पर उनके साथ हुआ क्या? वहीं हुआ, या तो उन्हें जेल में सड़ा दिया गया, अथवा उनके केस को ऐसा उलझा दिया गया कि वो सच भी रहे और झूठा करार दे दिया गया। दो सबूतों का गवाह तो विद्रोही24 खुद हैं।
विद्रोही24 ने देखा कि कैसे एक मामले में राज्य सरकार के कनफूंकवों के इशारे पर एक झूठे केस को ट्रू करार दे दिया गया, जबकि दूसरे मामले में सत्यनिष्ठ व्यक्ति को लटकाने का बड़ी ही तन्मयता से प्रयास किया जा रहा हैं, ऐसे में इस प्रकार के अधिकारियों को फटकार लगे अथवा न लगे, इनके कानों पर जूं थोड़ी ही रेंगती हैं, ये तो वही करेंगे, जो उनके मन में आयेगा, या उपर से आदेश आयेगा, या इनके चाहनेवाले जैसा इनसे कराना चाहेंगे। अब ऐसे में हर शनिचर उरांव के लिए भगवान बनकर कोई न्यायाधीश आनन्द सेन बनकर थोड़े ही आ जायेंगे।
खुद पर शर्म करिये, जामताड़ा के शनिचर उरांव एक जुलाई 2021 से बंद हैं, उसके खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी गई, पर चार्जशीट में आरोप साबित नहीं हो रहा है। बेचारा हार-थककर झारखण्ड हाई कोर्ट पहुंचा हैं। झारखण्ड हाई कोर्ट पहुंचने में उसे किन परिस्थितियों से गुजरना पड़ा होगा, जरा परिकल्पना कीजिये।
अब जरा सोचिये कि राज्य में कितने शनिचर उरांव हैं, जो इन पुलिस महानिदेशक के देख-रेख में कार्यरत पुलिस अधिकारियों के बेवजह गुस्से के शिकार हैं, जिनकी जिन्दगी को तबाह करने में ये लोग लगे हैं। बधाई, न्यायाधीश महोदय, कम से कम आपने न्याय की दीप तो, शनिचर उरांव के मन में जलाया, इससे ज्यादा और हम क्या कह सकते हैं। एक बात के लिए हम आपको और बधाई देंगे कम से कम आपने स्वीकार तो किया कि यह तो पुलिस की अति है।