नगर निकाय चुनाव में भाजपा को शिकस्त मिलना तय, झामुमो-कांग्रेस की बल्ले-बल्ले
पूरे प्रदेश में आज नगर निकाय का चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न हो गया। पहली बार राज्य की मतदाताओं ने राज्य निर्वाचन आयोग की कड़ी आलोचना की तथा अपना आक्रोश व्यक्त किया। यहीं नहीं रांची में तो यहां के उपायुक्त पर विभिन्न मतदान केन्द्र के मतदाताओं ने अपना गुस्सा निकाला। कई मतदान केन्द्रों पर जब मतदाता पहुंचे तो उन्हें पता चला कि उनका मतदान केन्द्र बदला जा चुका है। जिसकी जानकारी राज्य निर्वाचन आयोग या जिला प्रशासन ने मतदाताओं को नहीं दी और न ही खुद को जनहित में पत्रकारिता करने का दंभ भरनेवालों समाचार पत्रों ने दी।
कुछ समाचार पत्रों ने बड़े-बड़े संपादकीय लिख डाले कि, जनता मतदान करें, पर इन समाचार पत्रों ने ये नहीं बताया कि किन-किन क्षेत्रों के मतदाताओं के मतदान केन्द्र कहां और क्यों बदल दिये गये? जबकि मतदान का उपदेश देने से ज्यादा ये बताना जरुरी था कि किन-किन क्षेत्रों के मतदान केन्द्र कब और कैसे बदल गये। अचानक मतदान केन्द्र बदल दिये जाने से लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा, लोग दिन भर चक्कर लगाते रहे। कई मतदाता मतदान करने से वंचित रह गये।
मतदान केन्द्र के अचानक बदल दिये जाने से मतदाताओं को हुई परेशानी पर करीब-करीब सारी की सारी राजनीतिक दलों ने राज्य निर्वाचन आयोग एवं जिला प्रशासन की कड़ी आलोचना की है। भाजपा के पूर्व प्रवक्ता प्रेम कटारुका ने कहा कि राजनीतिक दलों ने वोट के लिए देशवासियों को जातीयता में बांटा, और जिला प्रशासन ने अपनी अकर्मण्यता से परिवार को बांटा, जिसका परिणाम हुआ कि दिन भर मतदाता परेशान रहा और मतदान की प्रतिशतता में कमी आई।
वरीय अधिवक्ता अभय मिश्र का कहना था कि आज मतदाता से ज्यादा मतदाता सूची में नाम खोजकर अंत में नाम न मिलने से निराश लौटते ज्यादा लोग नजर आ रहे थे। सामाजिक कार्यकर्ता प्रणय दत्ता का कहना था कि क्या आउटसोर्सिंग/अस्थायी व्यवस्था के तहत बूथ गठन हुआ था? एक बार राज्य निर्वाचन आयोग/रांची के उपायुक्त जांच करें कि अचानक मतदान केन्द्रों को और मतदाताओं को इधर से उधर क्यों फेंक दिया गया? उन्होंने फेसबुक पर लिखा कि उन्हें खुद अपने मतदान केन्द्र को ढूंढने में तीन घंटे लग गये, और ढाई किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ी।
दूसरी ओर पूरे प्रदेश में आज संपन्न हुए नगर निकाय चुनाव में भाजपा की हालत पस्त दीख रही हैं, जबकि झामुमो और कांग्रेस की बल्ले-बल्ले हैं। मतदान समाप्त होते ही, विभिन्न नगर निगमों एवं नगरपालिकाओं के विभिन्न मतदान केन्द्रों पर झामुमो और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के चेहरे खिले नजर आये। पहली बार झामुमो उन क्षेत्रों में तेजी से उभरती नजर आ रही है, जहां झामुमो का नाम लेनेवाला कोई नहीं था। रांची, मेदिनीनगर, गढ़वा, दुमका, गिरिडीह, गुमला, लोहरदगा, चिरकुंडा, फुसरो, बोकारो आदि कई क्षेत्रों में झामुमो-कांग्रेस का पलड़ा भारी दिखा।
जो सूचनाएं आ रही हैं, उससे साफ लग रहा है कि सर्वाधिक प्रमुख नगर निकायों पर झामुमो का कब्जा होने जा रहा हैं। भाजपा से लोगों की दूरी का प्रमुख कारण मुख्यमंत्री रघुवर दास का रवैया, विकासात्मक कार्यों में लूट-खसोट, भाजपा कार्यकर्ताओं का अचानक निष्क्रिय हो जाना तथा सरकार की लोकप्रियता में भारी गिरावट का होना बताया जा रहा हैं, जबकि झामुमो की जीत का कारण उसकी लोकप्रियता तथा आदिवासी, अल्पसंख्यकों एवं पिछड़े तथा सवर्ण वोटों का उसके प्रति झुकाव बताया जा रहा है। हालांकि मतगणना की तिथि 20 अप्रैल हैं, फिर भी आज का मतदान भाजपा का नींद उड़ाने के लिए काफी हैं, जबकि झामुमो, कांग्रेस और विपक्षी दलों के नेताओं व कार्यकर्ताओं में संजीवनी का काम कर दिया।