अपनी बात

झामुमो नेता सुप्रियो उवाचः भाजपा के नेताओं और निशिकांत का दही खट्टा और मेरा दही शत प्रतिशत सुस्वादु और मीठा

झामुमो के केन्द्रीय प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने दो हेडिगों के साथ एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की है। यह प्रेस विज्ञप्ति झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन से संबंधित है, जिसमें 12 सितम्बर 2022 को दिल्ली हाई कोर्ट ने शिबू सोरेन को लेकर लोकपाल में चल रही सुनवाई पर 13 दिसम्बर 2022 तक रोक लगा दी है। इस समाचार के आते ही झामुमो के केन्द्रीय प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य उछल पड़े, ऐसा उछले कि जैसे लगा कि उन्हें मन की मुराद मिल गई हो।

भाजपा के नेताओं और सांसद निशिकांत दूबे को अपने पूर्व परिचित अंदाज में मनुवादी और सामंतवादी बता दिया और शिबू सोरेन को महान द्रष्टा बताते हुए दलितों-शोषितों का प्रणेता बता दिया। सुप्रियो भट्टाचार्य द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति को ध्यान से देखें, तो सुप्रियो को अभी भी लग रहा है कि इस हेमन्त सरकार के शासन के अभी मात्र दो वर्ष ही बीते हैं, क्योंकि एक जगह सुप्रियो के प्रेस विज्ञप्ति में साफ लिखा है कि “झारखण्ड में दो साल से सत्ता सुख से दूर रहने का विरह भाजपा और सांसद निशिकांत दोनों से झेला नहीं जा रहा है”।

जबकि सच्चाई यह है कि लगभग तीन साल इस सरकार के बीतने को आये, 2024 के अंत में यहां विधानसभा के चुनाव होने सुनिश्चित है, ये चाहकर भी जनवरी 2025 नहीं ले जा सकते। सुप्रियो ने अपने प्रेस विज्ञप्ति में एक जगह यह भी लिखा है कि “एक आदिवासी मुख्यमंत्री द्वारा जनता की सेवा करना इन्हें कतई रास नहीं आ रहा है” जबकि सच्चाई यह है कि भाजपा ने भी अपने शासनकाल के दौरान दो-दो आदिवासी मुख्यमंत्री अपनी ओर से राज्य को दिये हैं, एक आदिवासी मुख्यमंत्री के कार्यकाल के दौरान तो आज के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने अपनी सेवा भी दी थी और इतिहास उलटकर देख लें तो आज भी आदिवासी या गैर-आदिवासी मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल को देखें तो बाबू लाल मरांडी जैसे आदिवासी मुख्यमंत्री का पलड़ा हमेशा से भारी रहा है।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो दिल्ली हाई कोर्ट ने कोई ज्यादा दिनों के लिए रोक नहीं लगाई है, यह रोक सिर्फ तीन महीने के लिए लगाई गई है, उसके बाद दिल्ली हाई कोर्ट क्या फैसले लेता है, ये दिल्ली हाई कोर्ट ही बतायेगा, पर कहा गया है न कि भागते भूत की लंगोटी काफी, इसी लोकोक्ति में झामुमो के केन्द्रीय प्रवक्ता लहालोट हो गये और भाजपा नेताओं तथा निशिकांत दूबे को खरी-खोटी सुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, आप खुद देखिये, सुप्रियो भट्टाचार्य की इस प्रेस विज्ञप्ति को, इसमें कोई हमने छेड़छाड़ नहीं की हैं, हुबहू आपके समक्ष प्रस्तुत कर दिया हैं, आप स्वयं निर्णय करिये…

निशिकांत और भाजपा के  तमाम षडयंत्र को पड़ रही कानून की गहरी चोट

खुद को सर्वस्व समझना अंततः उसके पतन का सबब बन जाता है। ऐसा ही भाजपा के साथ हो रहा है। झारखण्ड में दो साल से सत्ता सुख से दूर रहने का विरह भाजपा और सांसद निशिकांत दोनों से झेला नहीं जा रहा है। कभी सरकार गिराने की साजिश, कभी विधायकों को खरीदने का प्रयास, कभी संवैधानिक संस्थाओं की मदद से झामुमो अध्यक्ष दिशोम गुरु शिबू सोरेन, मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन, सरकार के मंत्रियों और विधायकों के खिलाफ सुनियोजित षडयंत्र, हर एक क्षेत्र में सांसद निशिकांत और भाजपा की तमाम कोशिशें चारों खाने चित्त हो रही है। एक ऐसे ही मामले में फिर से निशिकांत और भाजपा को मुंह की खानी पड़ी है।

दिल्ली हाई कोर्ट ने लोकपाल में चल रही सुनवाई पर लगाई रोक

गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दूबे ने राज्यसभा सांसद और झामुमो अध्यक्ष दिशोम गुरु शिबू सोरेन के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का मामला लोकपाल में पांच अगस्त 2020 को दर्ज कराया था। तत्पश्चात् 15 सितम्बर 2020 को लोकपाल ने सीबीआई को मामले की प्रारम्भिक जांच करने का निर्देश दिया था। लोकपाल में इस निर्देश के विरुद्ध झामुमो अध्यक्ष द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत चुनौती याचिका दाखिल की गई थी।

12 सितम्बर 2022 को दिल्ली हाई कोर्ट ने लोकपाल में चल रही सुनवाई पर 13 दिसम्बर 2022 तक रोक लगा दी है। जस्टिस यशवंत वर्मा की अदालत ने लोकपाल में सुनवाई पर रोक लगाते हुए कहा कि मामले पर विचार करने की जरुरत है और अगली तारीख तक लोकपाल में इस मामले में कोई सुनवाई नहीं की जाये। चुनौती में झामुमो अध्यक्ष द्वारा आपत्ति दर्ज की गई कि तथाकथित घटना के सात साल से अधिक समय बाद शिकायत दर्ज की गई और लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2013 की धारा 53 के अनुसार उक्त अवधि समाप्त होने के पश्चात ऐसी कोई जांच नहीं की जा सकती है।

चुनौती याचिका में यह भी कहा गया था कि लोकपाल के समक्ष पांच अगस्त 2020 को शिकायत दर्ज की गई थी और सीबीआई ने जुलाई 2021 में शिबू सोरेन और उनके परिवार के खिलाफ प्रारम्भिक जांच शुरु की, जबकि फरवरी 2022 के अंत तक शिकायत की कोई प्रति याचिकाकर्ता को प्रदान नहीं की गई। ज्ञात हो कि लोकपाल को सीबीआई द्वारा दी गयी अपनी तीन अलग-अलग जांच रिपोर्ट में याचिकाकर्ता निशिकांत दूबे द्वारा आरोप से संबंधित कोई साक्ष्य नहीं पाया गया। जस्टिस वर्मा ने इस मामले में लोकपाल और याचिकाकर्ता भाजपा सांसद निशिकांत दूबे को भी नोटिस भेजा है।

यह बात सर्वविदित है कि भाजपा संवैधानिक संस्थाओं का गलत उपयोग कर रही है। निशिकांत और भाजपा की ओछी मानसिकता और हरकतों से सभी वाकिफ है। एक आदिवासी मुख्यमंत्री द्वारा जनता की सेवा करना इन्हें कतई रास नहीं आ रहा है, इसलिए सामंतवादी और मनुवादी सोचवाले इन भाजपा नेताओं द्वारा येन-केन प्रकारेन कई प्रकार के हथकंडों को अपनाया जा रहा है। जिसमें वह हर बार विफल भी हो रहे हैं।

दिशोम गुरु शिबू सोरेन की सम्पत्ति देश के करोड़ों मूलवासी-आदिवासी, दलित-शोषित लोगों की विश्वास एवं श्रद्धा है। इतने अकूत संपत्ति से समृद्ध प्रतीक पुरुष आदरणीय गुरुजी हर वक्त मनुवादी एवं सामंतवादियों के खिलाफ संघर्षरत रहे हैं एवं उनकी पहचान को बनाए रखे है। भाजपा और उनके सांसद यह कान खोलकर सुन लें कि झारखण्ड मुक्ति मोर्चा संकट के समय और भी मजबूत होती है और हमारे उपर प्रहार करने की मंशावाले लोग नेस्तनाबूद हो जाते हैं।

भवदीय

सुप्रियो भट्टाचार्य