सिल्ली-गोमिया चुनाव परिणाम का राजनीतिक दुष्प्रभाव शुरु, झामुमो के चंपई सोरेन बने पहले शिकार
25 साल बाद अचानक पुलिस द्वारा झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के विधायक चंपई सोरेन की फाइल खोलना, वह भी तब जब गोमिया और सिल्ली में भाजपा की करारी हार हो रही हो, तथा झामुमो दोनों सीटों पर शानदार जीत को दर्ज कर, एक बार फिर से राज्य सरकार को चुनौती देने की स्थिति में हो, तो स्पष्ट हो जाता है कि राज्य सरकार के इरादे नेक नहीं है, और वह फिलहाल बदले की राजनीति पर उतर आई है।
हमें लगता है कि जैसे-जैसे अब लोकसभा व विधानसभा चुनाव की तिथियां नजदीक आयेगी, इस प्रकार के मामले तेजी से खुलेंगे तथा झामुमो और अन्य दलों के नेताओं पर राज्य सरकार अपना राजनीतिक प्रभाव दिखाकर, उनकी राजनीतिक एवं सार्वजनिक जीवन को प्रभावित करने का दांव चलेगी ताकि सत्तारुढ़ दल उसका फायदा उठा सकें, अगर इस प्रकार की राजनीति की शुरुआत झारखण्ड में प्रारंभ हो जाती है, तो आनेवाले समय के लिए यह बहुत ही घातक होगा, क्योंकि कोई जरुरी नहीं कि जिंदगी भर भाजपा ही झारखण्ड में शासन में रहेगी, अगर किसी अन्य दल का शासन यहां आ गया, तो वह भी इस प्रकार से राजनीतिक फायदे उठाने की कोशिश करेगी, और फिर किसका नुकसान होगा, वह शायद भाजपा के लोगों को भी मालूम नहीं।
कमाल है, झारखण्ड आंदोलन से जुड़ा यह मामला 1993 का है, जिसमें अभियुक्त चंपई सोरेन है, इन पर विस्फोटक रखने व साक्ष्य छुपाने का आरोप है। इसकी जानकारी चंपई सोरेन को भी है। वे इस मामले में जमानत पर भी है, पर आश्चर्य इस बात की है कि इस मामले को हुए 25 साल हो गये, लेकिन आज तक इस मामले में अभी तक चार्ज शीट दायर ही नहीं हुआ। अब राज्य सरकार और उनके पुलिस पदाधिकारी बताएं कि आखिर क्या वजह हुई कि अभी तक चार्जशीट दायर नहीं हुए, और अचानक कल ही इस फाइल को खोलने का दिन क्यों मुकर्रर हुआ? पुलिसकर्मियों द्वारा ये कहना कि एक महीने के अंदर चम्पई सोरेन के खिलाफ चार्जशीट दायर हो जायेगा, क्या झारखण्ड की जनता इतनी मूर्ख है, वह नहीं समझती कि किसके इशारे पर ये सब काम हो रहा है?
ऐसा नहीं कि केवल चंपई सोरेन ही ऐसे मामले में आरोपी है, ऐसे कई राजनीतिक दलों के नेता है, जिन पर ऐसे-ऐसे कई आरोप है, जो पैसे और राजनीतिक प्रभाव के कारण मामले को दबा कर बैठे हैं, पर क्या राज्य के मुख्यमंत्री और उनके प्रभाव में कार्य कर रहे वरीय पुलिस पदाधिकारियों का दल झामुमो के चंपई सोरेन की तरह अन्य दलों के नेताओं एवं विधायकों-सांसदों के खिलाफ भी बंद पड़े फाइलों को खोलने का विचार करेंगे, या यह कृपा केवल विपक्षी दल के नेताओं के खिलाफ ही दिखाई देगी।