JMM MLA सुदिव्य कुमार ने पत्रकारों को सदन में कहा पत्तलकार, बयान को स्पंज कराने के लिए स्पीकर से गुहार, सुदिव्य झूकने को तैयार नहीं
पिछले साल इसी विधानसभा के बजट सत्र में राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने सदन को संबोधित करते हुए मीडियाकर्मियों को लताड़ते हुए कहा था – “अखबार, मीडिया, टीवी हमारी उन बातों को जरुर छापता है – जिससे हमारे दलों के अंदर मतभेद हो जाये, राज्य में आग लग जाये, हेमन्त सोरेन ने कहा 1932 के आधार पर नहीं बनेगा स्थानीय नीति” आदि-आदि। लेकिन इस साल विधानसभा के बजट सत्र में राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने नहीं बल्कि उनकी ही पार्टी के गिरिडीह विधायक सुदिव्य कुमार ने मोर्चा संभाला और कुछ कथित पत्रकारों के लिए पत्तलकार शब्द का प्रयोग कर दिया, मामला भी पिछले वाला ही हैं – 1932 का खतियान ही।
इधर जैसे ही सुदिव्य कुमार ने पत्रकारों के लिए पत्तलकार शब्द का प्रयोग किया। विधानसभा के प्रेस दीर्घा में बैठे कुछ पत्रकारों को बहुत ही बुरा लगा, जबकि कई ऐसे भी पत्रकार थे, जिन्हें सुदिव्य कुमार के इस संवाद में कुछ भी बुरा नहीं लगा। जिन्हें बुरा नहीं लगा, उनका मानना यह था कि हम पत्रकारों के बीच में कुछ पत्रकार ऐसे हैं ही जिन्होंने ऐसी स्थिति ला दी है।
दूसरी ओर कुछ ऐसे कथित पत्रकार भी दिखे, जो पत्रकारों का संगठन चलाने के नाम पर दुकान चलाते हैं। वे कुछ चुनिंदे मास्टर माइंड टाइप्ट पत्रकारों को लेकर विधानसभाध्यक्ष के चैंबर पहुंच गये और विधानसभाध्यक्ष से गुहार लगाई कि सुदिव्य कुमार ने जो पत्रकारों के लिए आपत्तिजनक (कथित पत्रकारों के शब्दों में) शब्द का प्रयोग किया, उसे स्पंज कर दिया जाये। विधानसभाध्यक्ष ने उन सब की बातें सुनी और फिर वे अपने कामों को गति देने में लग गये।
बताया जाता है कि विधानसभा प्रेस दीर्घा समिति के कुछ सदस्य भी विधानसभाध्यक्ष से इस मुद्दे पर मिलने को गये थे। इन सदस्यों ने भी विधानसभाध्यक्ष से पत्तलकार शब्द को स्पंज करने की गुहार लगाई थी। दूसरे दिन भाकपा माले विधायक दल के नेता विनोद सिंह ने सदन में ये बातें उठाई थी और स्पीकर से र की जगह ल, माननीय के मुख से निकल गया था, ऐसा कहकर इस मामले पर विधानसभाध्यक्ष से उक्त शब्द को स्पंज करने की गुहार लगाई थी।
पर सच्चाई यही है कि अभी भी गिरिडीह के झामुमो विधायक सुदिव्य कुमार का वो संवाद आज भी सदन के रिकार्ड में हैं। उसे स्पंज नहीं किया गया। जबकि प्रेस दीर्घा में बैठे कई साथी पत्रकारों का मानना था कि उक्त शब्द को स्पंज कर दिया गया है। लेकिन कुछ ऐसे भी थे जो ये मानने को तैयार नहीं थे कि पत्तलकार शब्द को स्पंज कर दिया गया।
इधर विद्रोही24 से बातचीत के क्रम में आज झामुमो विधायक सुदिव्य कुमार ने कहा कि वे सदन में दिये गये अपने वक्तव्य पर आज भी अडिग हैं और उन्होंने अपनी बातों को स्पंज करने को विधानसभाध्यक्ष रबीन्द्र नाथ महतो से नहीं कहा है। हालांकि विधानसभाध्यक्ष रबीन्द्र नाथ महतो ने उनसे बातचीत की थी, पर वे अपने शब्दों पर आज भी कायम है। इसका मतलब है कि सदन में जो कुछ पत्रकारों के व्यवहारों से ईमानदार पत्रकारों पर जो दाग लगा है वो सदन के रिकार्ड में कायम हो गया। वो मिट नहीं सकता।
विद्वान पत्रकारों का मानना है कि ये जो दाग लगे हैं, वो ऐसे ही नहीं लगे हैं, अगर कथित पत्रकारों के व्यवहार को देखें तो पता लग जायेगा कि वे पत्रकार हैं या क्या है? उदाहरण के तौर पर वे कुछ बातें भी विद्रोही24 के समक्ष रखते हैं। वे कहते है कि…
पिछले साल ही मानसून सत्र के दौरान जब मार्शल और पत्रकारों में बेवजह (वीडियो अगर ध्यान से देखें तो पता चल जायेगा कि मार्शलों की कोई गलती नहीं थी, ये गलती कथित पत्रकारों की भीड़ की थी) मुठभेड़ हो गई और उस मुठभेड़ में वे कौन पत्रकार थे जो “मारो-मारो, विधानसभा मुर्दाबाद” के नारे लगा रहे थे। क्या कोई पत्रकार या सम्मानित व्यक्ति चाहे विधानसभा में कुछ भी हो जाये, वो विधानसभा मुर्दाबाद का नारा लगाता है क्या? आज भी वे वीडियो बहुत सारे पत्रकारों के पास सुरक्षित हैं, जरा उन वीडियो को देख खुद वे पत्रकार अपना चेहरा देख लें, जो आज सुदिव्य कुमार के वक्तव्य पर अंगूली उठा रहे हैं।
विद्वान पत्रकारों ने आज विद्रोही24 से यह भी कहा कि क्या विधानसभा रील बनाने या कैट्सवाक करने की जगह हैं। वो भी उस जगह जहां भारत के वरिष्ठ पत्रकार व राष्ट्रधर्म, पांचजन्य, वीर अर्जुन के संपादक रह चुके, पत्रकारिता से नेता बन भारत का प्रधानमंत्री पद को सुशोभित करनेवाले, झारखण्ड निर्माण की नींव रखनेवाले, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की प्रतिमा है। क्या आप अपने पूर्वजों की प्रतिमाओं के पास कथित पत्रकारों द्वारा इसी प्रकार का कैटस वाक् करते हुए रील बनाने को सही कहेंगे।
क्या दो नंबर गेट्स पर चाहे कोई विधायक हो या मंत्री, चाहे उसने सदन में बयान दिया हो या न दिया हो। बस एक बाइट के लिए झूंड की तरह उन पर टूट पड़ने तथा पूरा प्रवेश द्वार को घेर लेने की घटना और वहां खड़े मार्शल को किंकर्तव्यविमूढ़ होता देखने को पत्रकारिता कहेंगे।
झारखण्ड विधानसभा ने पत्रकारों को बैठने और उनके बाइट लेने के लिए एक स्थान निर्धारित कर रखा हैं, पर जरा देखिये कोई भी कथित पत्रकार उन स्थानों पर बैठता है क्या? जहां उसकी स्थान निर्धारित है। वे तो गेट नं. 2 के पायदानों पर ही अपना कब्जा जमा लेते हैं। अब आप बताये कि इन्हें पत्रकार कहेंगे, और इनकी बैठने की कला देखेंगे तो आप हैरान हो जायेंगे।
विद्वान पत्रकारों का ये भी कहना है कि याद करिये, इसी तीन मार्च को राज्य के वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव बजट पेश कर रहे थे। बजट पेश करने के बाद एक बैग लेने के लिए कैसे पत्रकार आपस में भिड़ रहे थे। बैग लेनेवाले कौन थे? आखिर बैग आईपीआरडी वाले किसके लिए लाये थे, पर वो बैग हथियाया किसने? आप खुद कहेंगे कि जिन्हें मिला वो क्या थे, आपको नहीं पता, पर जो सही में पत्रकार थे, उनको तो वो बैग नहीं ही मिला। फिर मुठभेड़ हो गई और आईपीआरडी के लोग गुस्से में वहां से चल दिये। अब आप बताइये कि आईपीआरडी के लोगों की क्या गलती थी? आखिर जिस दिन बजट पेश होता है, उसी दिन भारी भीड़ विधानसभा में क्यो होती हैं?
बाकी दिनों में ये कथित पत्रकारों की टोली किस बिल में घुस जाती है? ऐसे भी, क्या एक मामूली बैग के लिए पत्रकारों की ऐसी हरकत सही हैं। अरे आप क्यों नहीं मानते कि आप सरस्वती पुत्र हैं, आप बुद्धिजीवी वर्ग में आते हैं, आप लोकतंत्र के स्तंभ नहीं हैं, फिर भी जनता ने आपको चौथे स्तंभ के रुप में स्वीकार किया हैं, पर आप ने भी जो हरकतें इन दिनों करनी शुरु की हैं। उसे लेकर आपके प्रति नेता तो छोड़ दीजिये, जनता भी भाव देने को तैयार नहीं हैं।
खुद सोचिये, कि सुदिव्य कुमार का एक संवाद पत्तलकार आप स्पंज नहीं करा सकें और आप कहते है कि हम एक ताकत है। याद करिये, इसी बजट सत्र में मंत्री मिथिलेश कुमार ठाकुर और भाजपा नेता रामचंद्र चंद्रवंशी का मैटर आया था। स्वयं स्पीकर ने इस पूरे मामले को सदन में स्पंज करने का आदेश दिया। फिर भी कई अखबारों ने उस खबर को प्रमुखता से छाप ही दिया। क्या ये सही था? और अगर वो सही था तो फिर सुदिव्य कुमार तो शत प्रतिशत सही होकर भी सही क्यों नहीं हो सकते।
मैंने तो स्वयं देखा है कि प्रेस दीर्घा के प्रवेश द्वार के समक्ष एक महिला व एक पुरुष सुरक्षाकर्मी की ड्यूटी रहती है। वे हमेशा पत्रकारों की सेवा व सुरक्षा में मुस्तैदी से लगे रहते हैं, पर कुछ पत्रकारों को प्रेस दीर्घा में गलत करते हुए, वे टोकते हैं, तो उन पत्रकारों को बहुत बुरा लगता है। अरे भाई, आप गलत करते ही क्यों हो कि उन्हें टोकना पड़े। आज भी झारखण्ड विधानसभा में पत्रकारों की सेवा में लगे कई अधिकारियों का समूह कथित पत्रकारों के व्यवहारों से खुश नहीं रहते। ये अलग बात है कि वे अपने चेहरे पर बनावटी हंसी लिये अपने कामों को गति देने में लगे रहते हैं। बेचारे वे क्या करेंगे, वे तो दोनों तरफ से चले जाते हैं।