वन क्षेत्रों से आदिवासियों-मूलवासियों को खदेड़ने की योजना को झामुमो नहीं करेगा बर्दाश्त, कल राजभवन के समक्ष JMM का धरना
कल झारखण्ड विधानसभा का मानसून सत्र प्रारंभ हो रहा है, और कल ही राजभवन के समक्ष वन क्षेत्रों में रहनेवाले आदिवासियों-मूलवासियों के जीवन पर गहराते संकट को लेकर झारखण्ड मुक्ति मोर्चा ने राजभवन के समक्ष धरना देने का ऐलान कर दिया है, कल के धरने में झामुमो के सारे विधायक, झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन तथा आदिवासियों-मूलवासियों के अधिकारों के लिए लड़ रहे विभिन्न सामाजिक संगठनों के भी भाग लेने की संभावना है, जिसकी तैयारी आज पूरी कर ली गई है।
कल की धरना और धरना के उद्देश्यों को लेकर झामुमो के केन्द्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने विस्तार से प्रकाश डाला, उनका कहना था कि झारखण्ड का 29 प्रतिशत क्षेत्र वनाच्छादित है, जहां 32,106 गांव, जिसमें 46,235 परिवार और करीब 2,48,25,328 लोगों की आबादी रहती है, जिनके उपर अभी से संकट मंडराने लगा है, तथा इनके जीवन को खतरा उपस्थित हो गया है, ऐसे में उनके पास संघर्ष छोड़कर दूसरा कोई रास्ता नहीं, यहीं नहीं इन आदिवासियों और मूलवासियों के जीवन को लेकर झामुमो सजग है, और कल के धरने के माध्यम से राज्यपाल को एक ज्ञापन भी दिया जायेगा, जो राष्ट्रपति को संबोधित होगा।
सुप्रियो भट्टाचार्य का कहना था कि पूरे झारखण्ड में सखुआ, साल, इमली, नीम, कटहल, इमली, वनतुलसी, चिरौंदी, केन्दु पत्ता आदि वनोपज से इन परिवारों का घर चलता है, और इन वनोपज पर कब्जे की तैयारी केन्द्र सरकार ने शुरु कर दी, ऐसे तो इन वनक्षेत्रों पर 1878 से ही कब्जे की तैयारी रही है, तथा आदिवासियों से इन वनों को मुक्त करने का सिलसिला जो जारी हुआ, वह रुकने का नाम नहीं ले रहा, पर 1927 में भारत में वन कानून बना, जिसके तहत चेप्टर 2 में रिजर्व फॉरेस्ट तथा चैप्टर 4 में सुरक्षित वन क्षेत्र कुछ इलाकों को घोषित किया गया।
फिर उसके बाद 25 अक्टूबर 1980 को भी कुछ बाते लाई गई, और इस दरम्यान जंगलों में ठेकेदारों, वनक्षेत्र के अधिकारियों तथा असामाजिक तत्वों ने वनों में खूब तबाही मचाई। जिसको लेकर 13 दिसम्बर 2005 को एक मसौदा तैयार हुआ, जिसमें बात आई कि जो वन क्षेत्र में रहते हैं, उन्हें स्थायी पट्टा, नागरिक सुविधाएं आदि प्राप्त होगी, फिर 2006 में इसको लेकर फिर वन अधिकार कानून बना, यानी 1927, 1980, 1996 में पेसा कानून आने के बाद भी वनों में रहनेवाले आदिवासियों-मूलवासियों को कोई फायदा नहीं पहुंचा, और अब फिर 1927 के भारतीय वन कानून में संशोधन किया जा रहा है।
सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि वनों पर जिनका अधिकार हैं, उन्हें वहां से हटाने के लिए अब वन के अधिकारियों को अब एक सशस्त्र बल दिया जायेगा, जो अपने ढंग से किसी को भी संदेह की स्थिति में गिरफ्तार करेंगे, वे गोली भी चलायेंगे, और उनकी गोलियों से कोई मरेगा तो उनकी न्यायिक जांच भी नहीं कराई जायेगी। ऐसे में इस काले कानून के खिलाफ झामुमो मुखर हैं, और उन सारे सामाजिक संगठनों को वे आह्वान करते है कि वे इस लड़ाई में झामुमो का साथ दें, ताकि वनों में रहनेवाले लोगों के अस्तित्व पर जो सरकार ने संकट उपस्थित कर दिया है, उन संकटों से उन्हें मुक्ति दिलाया जाये।