पत्रकार और साहित्यकार कभी भी देश व समाज को नयी दिशा नहीं दे सकते, अगर वे संस्कारवान् व चरित्रवान न हो
मेरा मानना है कि भारतीय वांग्मय कहता है कि भारत या किसी भी देश में जन्म लेनेवाला कोई भी व्यक्ति चाहे वो पत्रकार हो या साहित्यकार या नेता या खेतों में हल चलानेवाला किसान, अगर वो संस्कारवान व चरित्रवान है, तो वह देश व समाज को नयी दिशा दे सकता हैं, अगर वो संस्कारहीन व चरित्रहीन हैं तो कुछ भी नहीं कर सकता।
यह मैं दावे के साथ इसलिए लिख रहा हूं कि आज ही रांची से प्रकाशित अखबार प्रभात खबर अपना 37वीं जयन्ती मना रहा है और इस अवसर पर राज्य के होनहार मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन का एक आलेख उसने प्रथम पृष्ठ पर छापा है। जिस पर प्रभात खबर ने हेडिंग दी है – “प्रभात खबर के स्थापना दिवस पर मुख्यमंत्री की कलम से पत्रकारिता का बोध – पत्रकार और साहित्यकार देश व समाज को नयी दिशा दे सकते हैं।”
आम तौर पर मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री को इतना समय नहीं होता कि वो कोई आलेख लिख लें, आम तौर पर कोई दुसरा व्यक्ति ही लिखता है और नाम मुख्यमंत्री का दे दिया जाता है, ऐसे में इस मुद्दे पर सच्चाई क्या है, ये प्रभात खबर वाले या खुद मुख्यमंत्री ही बता सकते हैं। लेकिन इसमें जो भावनाएं आई है, वो शत प्रतिशत गलत है।
पत्रकार और साहित्यकार, देश को नयी दिशा। बाप रे, ये तो कभी संभव ही नहीं, क्योंकि अब तो ज्यादातर पत्रकार ब्लैकमेलर होता है। रांची में तो भरे पड़े हैं। एक चैनल तो ब्लैकमेलिंग के लिये ही शुद्ध रुप से जाना जाता है, जिसका संबंध मुख्यमंत्री के परिक्रमाधारियों से हैं, उसके कहने पर तो थाने में झूठी प्राथमिकी भी दर्ज करा दी जाती हैं, और उसका समर्थन राज्य का सर्वोच्च पुलिस अधिकारी भी करता है, थाने के लोग करते हैं।
ऐसे में ये कहना कि पत्रकार और साहित्यकार देश व समाज को नयी दिशा दे सकते हैं, वो भी इस राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा, सफेद झूठ है। यहां तो मैंने पत्रकारों को देखा है, चाटुकारिता करते। चाटुकारिता का ही तो कमाल है कि आज का पत्रकार, सांसद, बोर्ड/निगम का अध्यक्ष, किसी आयोग का आयुक्त तक बन जाता है, नहीं तो जो पत्रकार ईमानदार व कर्तव्यनिष्ठ हैं, उस पर कब और किस सरकार ने कृपा लूटाई हैं, उसे तो धमकाया जाता है, उसे तो उसकी औकात बताई जाती है। उसे तो कहा जाता है कि दायरे में रहो और अखबारों में गोल-गोल बाते लिखी जाती हैं।
मैंने तो स्पष्ट रुप से एक कविता भी लिखी हैं, जिसे सभी को पढ़ना चाहिए। कविता इस प्रकार है…
राष्ट्रपति बनना आसान है,
उपराष्ट्रपति बनना उससे भी ज्यादा आसान है,
आसान है, प्रधानमंत्री बनना
या, किसी राज्य का बागडोर संभालना
आइएएस/आइपीएस बन जाना
किसी विभाग में क्लर्क बन जाना,
किसान-मजदूर बन जाना,
साहित्यकार या पत्रकार बन जाना,
पर सर्वाधिक मुश्किल है, अच्छा इन्सान बनना
अच्छा इन्सान बनो, तो जानें…
और ये अच्छा इन्सान वहीं बनेगा, जो संस्कारवान या चरित्रवान होगा, ये नहीं कि पत्रकार या साहित्यकार बनकर किसी नेता का चोचलाबाजी कर, फिर उसके बदले में किसी बोर्ड निगम का अध्यक्ष या सूचना आयुक्त बन जाने के बाद, उससे देश व राज्य को नयी दिशा मिल जायेगी, ऐसे लोग कुछ भी बनेंगे, वो जोंक की तरह देश व राज्य का खून ही चूंसेंगे, चाहे वो कोई हो, इसलिए याद रखिये कि पत्रकार व साहित्यकार कभी भी देश व राज्य को नयी दिशा नहीं दे सकता, अगर वो संस्कारहीन या चरित्रहीन है।