यकीन मानिये, ये कबीर, रहीम, रसखान सभी को उलटा लटका कर जान ले लेते…
यकीन मानिये, अगर आज रहीम, कबीर, रसखान, जायसी जैसे मुसलमान जिंदा होते, तो इन्हें भी आज की जाहिलों की टीम, काफिर कहकर, इस्लाम खतरे में हैं कहकर, उलटा लटका देती, इनकी जान ले लेती। अच्छा हुआ वे, ये दिन देखने के पहले ही, ये महान शख्स दुनिया से चले गये। यह मैं इसलिए लिख रहा हूं कि कल बिहार की राजधानी पटना में घटना घटी। घटना यह है कि दो दिन पहले बिहार के गन्ना उद्योग और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री खुर्शीद उर्फ फिरोज अहमद ने जयश्रीराम का नारा लगाया था, जिस पर इमारत-ए-शरिया के मुफ्ती सुहैल अहमद कासमी ने उन्हें इस्लाम से निष्कासित करने का फतवा जारी कर दिया। बवाल ऐसा बढ़ा कि फिरोज अहमद को इसके लिए माफी मांगनी पड़ गई। अब जब किसी मुस्लिम द्वारा जयश्रीराम कहने से इस्लाम खतरे में पड़ जाता है, उस मुस्लिम व्यक्ति को इस्लाम से निष्कासित करने का फतवा जारी हो जाता है, फिर उसके बाद यह समुदाय, उक्त मंत्री को, जो संवैधानिक पद पर बैठा है, उससे माफी मंगवाने के लिए विवश कर देता है, वह भी मुख्यमंत्री के समक्ष, इसका मतलब क्या है?
मुस्लिम समाज चिन्तन करें कि आखिर यह सब करने से उन्हें क्या मिलता है?
इसका मतलब है कि हिन्दू-मुस्लिम एकता की बात ही इस देश में बेमानी है। हमारे बहुत सारे मुस्लिम मित्र है, जो इस्लाम की दुहाई देते है, जरा वे ही बताएं कि यह सब क्या है? आखिर यहां बौद्ध, जैनी, यहूदी, सिक्ख, ईसाई और पता नहीं कितने छोटे-बड़े धर्मों के माननेवाले लोग है, उनकी हिन्दूओं से लड़ाई क्यों नहीं होती? यह केवल मुस्लिमों से ही पंगा क्यों होता है? इस पर विचार करने की जरुरत है, अगर आज नहीं विचार करेंगे, और इस समस्या का निदान नहीं करेंगे? तो यकीनन, जाहिलों की टीम हमारे उपर राज करेगी और हम लाख कहते रहे कि हम बहुत अच्छे है, और यहां हालात सीरिया, जार्डन, ईरान, ईराक, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांगलादेश जैसे देशों की तरह हो जायेगी। राम से आपकी इतनी नफरत आनेवाली आशंकाओं को जन्म दे रही है। मुसलमान केवल भारत में ही नहीं रहते, अन्य देशों में भी रहते है, पर जितनी नफरत राम को लेकर आपके अंदर यहां हैं, वह किसी में नहीं, जबकि इसी देश में कई ऐसे मुसलमान हुए, जो राम के उपर कई कशीदे पढ़े, उसमें एक अल्लामा इकबाल भी है, जिन्होंने लिखा – मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना, हिन्दी है हम, वतन है, हिन्दोस्तां हमारा, पर मैं यकीनन कह रहा हूं कि मजहब ही हैं सीखाता, आपस में बैर रखना, नहीं तो ये बेकार के फतवे कौन देता है? और इस फतवे को अमल में लाने के लिए पुरा समुदाय कैसे-क्यौं उमड़ पड़ता है?
जानिये कबीर, रहीम, रसखान, जायसी को, ये भी मुसलमान ही थे
जरा कबीर को देखिये, उन्होंने कैसे-कैसे दोहे बोले है, कहां-कहां आपकी गड़बड़ियां पकड़ी थी, जिस पर चोट किया, पर उस वक्त तो किसी ने उनके खिलाफ फतवे जारी नहीं किये, जबकि वे आपसे बेहतर मुसलमान थे। उन्होंने तो खतना तक का विरोध किया। पढ़िये कबीर की जीवन गाथा। उन्होंने रोजा और गोकशी पर भी आप पर ताने मारे, जरा पढ़िये…
दिन को रोजा रहत है, राति हनत है गाय। यहां खून वै वंदगी, क्यों कर खुशी खोदाय।।
पर इस दोहे से आपको क्या मतलब, आप तो इंसान है नहीं, आप तो मुसलमान है। जरा कबीर को देखिये काफिर का मतलब क्या कहते है और आपका मतलब क्या है?
कबीर के अनुसार काफिर का मतलब…
काफिर वह है, जो दूसरों का माल लूटे।
काफिर वह है, जो कपट भेष बनाकर संसार को ठगे।
काफिर वह है, जो निर्दोष जीवों को काटे।
काफिर वह है, जो मांस खाये।
काफिर वह है, जो मदिरा पान करे।
काफिर वह है, जो दुराचार तथा बटमारी करे।
पर आप क्या कर रहे है? सब कुकर्म करों और हिन्दूओं से नफरत करने के लिए कई बहाने ढूढों और कहो कि इस्लाम इससे खतरे मैं है, और फतवा जारी कर दो, यह कैसी मानसिकता है?
कबीर के जुबां पर तो अंत-अंत तक राम रहे, जरा इसे पढ़िये…
कस्तूरी कुंडलि बसे, मृग ढूंढै वन माहि। ऐसे घटि-घटि राम है, दुनिया देखै नाहि।।
जरा अब्दुर्रहीम खानखाना को देखिये, वे तो मित्रता की कसौटी को कृष्ण और सुदामा में देखते है, आज भी उनकी कृष्ण भक्ति पर किसी ने अंगूली नहीं उठाई और न ही किसी ने उनके खिलाफ फतवा जारी किये। जरा देखिये रहीम के बोल…
जे गरीब पर हित करे, ते रहीम बड़ लोग। कहा सुदामा बापूरो, कृष्ण मिताई जोग।।
जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं। गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं।।
रसखान की तो बात ही निराली है…
मानुस हौं तो वही रसखान, बसौं मिलि गोकुल गाँव के ग्वारन।
जो पसु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥
पाहन हौं तो वही गिरि को, जो धर्यो कर छत्र पुरंदर कारन।
जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदीकूल कदम्ब की डारन॥
यह भारत है, इसे जाहिलपन द्वारा तोड़ने का प्रयास न करें
आप स्वीकार करें, कि यह भारत है, यहां सभी एक-दूसरे का सम्मान करें, यह यहां की पहली और अंतिम शर्त है, कठमुल्लापन और सिर्फ हमारी चलेगी, यह यहां नहीं चलेगा, यहां सर्वःधर्म-समभाव भी पहली और अंतिम प्राथमिकता होनी चाहिए। देश के किसी भी राज्य में, किसी की भी सरकार हो, यह सुनिश्चित करें, कि जहां भी कठमुल्लापन, जाहिलपन सर उठाये तो उसे सख्ती से कुचले, चाहे उसकी संख्या करोड़ों में ही क्यों न हो, नहीं तो यहीं रोग, एक दिन ऐसा रुप धारण करेगा, जो भारत की प्राचीन सभ्यता व संस्कृति को नष्ट कर डालेगा। हम कल की घटना की तीव्र निंदा करते है। चाहे फतवा जारी करनेवाले लोग हो, चाहे फतवा का समर्थन करनेवाले लोग हो, चाहे वह व्यक्ति हो, जो इस फतवे से डर कर माफी मांग लिया हो, चाहे वह नीतीश कुमार ही क्यों न हो, जहां उस फतवे के शिकार व्यक्ति को माफी मांगने के लिए विवश कर दिया गया, हम इसकी तीव्र निंदा करते है, क्योंकि हमें रहीम और कबीर का भारत चाहिए, ऐसे जाहिलों का देश नहीं, जहां सिर्फ राम कह देने से उनके धर्म की चूले हिलने लगती हो।