आंदोलनकारियों के छाती पर पैर रख, महिलाओं की इज्जत लूटते वक्त भोजपुरी में ही गाली दी जाती थी, मगही-भोजपुरी झारखण्डी भाषा नहीं, राज्य का बिहारीकरण नहीं होने देंगे – हेमन्त
एचटी द इंटरव्यू में महिला पत्रकार कुमकुम चड्ढा ने इस बार झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन का इंटरव्यू लिया है। इस इंटरव्यू को देने के बाद राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन भी गदगद है। वो भी तब, जबकि समाचार लिखे जाने तक, यू ट्यूब पर रखी गई इस इंटरव्यू को अब तक मात्र 1900 लोगों ने ही सिर्फ देखा है, जिसे मात्र 69 लोगों ने इसे पसन्द किया है और 62 लोगों ने नापसंद कर दिया है, मतलब पसन्द करनेवालों और नापसंद करनेवालों का तुलनात्मक अंतर देखा जाय तो कोई ज्यादा का अंतर नहीं है।
इस इंटरव्यू से एक बात तो साफ निकल कर आ गई कि झारखण्ड में जो भोजपुरी या मगही भाषी रहा करते हैं, उनके प्रति राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की सोच सही नहीं हैं, क्योंकि कुमकुम चड्ढा को दिये अपने इंटरव्यू में हेमन्त सोरेन ने साफ-साफ कहा कि झारखण्ड आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों के छाती पर पैर रखकर, महिलाओं की इज्जत लूटते वक्त भोजपुरी भाषा में ही गाली दी जाती थी।
ट्रायबल ने जो अलग राज्य की लड़ाई लड़ी है, वो अपनी रिजनल लैग्वेंज की बदौलत लड़ी, न कि भोजपुरी और हिन्दी भाषा की बदौलत। हेमन्त सोरेन ने यह भी कहा कि वे किसी भी हालत में झारखण्ड का बिहारीकरण नहीं होने देंगे। वे आगे कहते है कि मगही व भोजपुरी रिजनल लैग्वैंज न होकर बाहरी लैग्वेंज है।
उनका ये भी कहना है कि जो लोग मगही या भोजपुरी बोलते हैं, वे लोग डोमिनेटेड पर्सन्स हैं, और जो लोग मजबूत रहते हैं, उनके पैरों के नीचे सभी रहते हैं। हो सकता है कि कभी इन लोगों के साथ रहने पर कुछ लोग मगही या भोजपुरी भाषा बोलना सीख गये हो, पर ये झारखण्ड की भाषा तो नहीं हीं है।
राज्य के सीएम हेमन्त सोरेन के इस बयान ने अब पूरे राज्य में आग में घी डालने का काम कर दिया है, क्योंकि उनकी ही पार्टी में रह रहे एक मंत्री ने अपने इलाके में बढ़ते आक्रोश को देखते हुए मुख्यमंत्री को कभी पत्र लिखा था कि राज्य में मगही और भोजपुरी को भी सम्मान दिया जाये, पर जब मुख्यमंत्री के मन में ही ऐसी बात धर कर गई हो, तो भला मंत्री मिथिलेश ठाकुर की हैसियत ही क्या?
इधर कांग्रेस के कोटे से बने विधायकों के हाल ये है कि उनकी हालत खराब हो रही है, अब वे किस मुंह से अपने इलाके में वोट मांगने जायेंगे, क्योंकि उनके वोटर तो वे ही हैं, जो मगही या भोजपुरी भाषा बोलते हैं, उनके चिढ़ जाने के बाद कांग्रेसियों का जनाजा निकलना तय है।
हालांकि इसका प्रभाव झामुमो पर भी पड़ेगा, क्योंकि पहली बार झामुमो पूरे झारखण्ड में सर्वग्राह्य हुई थी, ऐसा हो जाने के बाद झामुमो के भी सिमटने का उतना ही खतरा है, क्योंकि कल के झारखण्ड और आज के झारखण्ड में आकाश-जमीन का अंतर हो चुका है। राजनीतिक पंडितों की मानें तो जब मगही व भोजपुरी भाषा से राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को इतनी ही नफरत है तो फिर बिहार की क्षेत्रीय पार्टी राष्ट्रीय जनता दल से इतना प्रेम क्यों?
क्या हेमन्त सोरेन को ये मालूम नहीं कि इसी पार्टी के लालू प्रसाद यादव ने झारखण्ड निर्माण का कड़ा विरोध किया था। मतलब जिस पार्टी ने झारखण्ड निर्माण पर ही अपनी आंखे टेढ़ी कर रखी थी, उससे गलबहियां और वहां की भाषा से नफरत, ये तो ठीक नहीं। जानकार बताते है कि जिस ढर्रें पर सरकार चल रही है, उससे आनेवाले समय में सर्वाधिक नुकसान कांग्रेस का होगा, क्योंकि जनता यही समझेगी कि उसने आम जनता के साथ धोखा किया।
झामुमो तो सीधे आधी हो जायेगी और अपने पूर्व के मूल स्वरुप में आकर खड़ी हो जायेगी, राजद तो ऐसे भी कौन ताकतवर हैं, जैसे-जैसे लालू कमजोर हुए, राजद समाप्त होती चली गई। फायदा तो भाजपा को होना तय है, क्योंकि उसे पता चल गया है कि ये सरकार कितने दिनों तक चलेगी।
इस पूरे प्रकरण पर इतना तो पता चल गया कि कुमकुम चड्ढा ने कई बार हेमन्त सोरेन के दुखती रग पर हाथ रख दी, जिससे वे तिलमिलाए भी, पर एक दिन पहले की इस इंटरव्यू ने मगही व भोजपुरीभाषियों की सारी भ्रांतियां दूर कर दी कि हेमन्त सोरन के शासनकाल में मगही-भोजपुरीभाषियों की औकात क्या है? मतलब उनकी इज्जत दो कौड़ी की भी नहीं।