अगर किसी को विज्ञापन धर्म कैसे निभाना है, तो रांची के अखबारों-चैनलों से सीखे
विज्ञापन किसे अच्छा नहीं लगता, विज्ञापन से ही तो चैनल चलते हैं, अखबारें चलती हैं, वह विज्ञापन कैसे आते हैं, इससे उन्हें क्या मतलब, उन्हें तो सिर्फ विज्ञापन से मतलब हैं, विज्ञापन की राशि से मतलब है, विज्ञापन देनेवाला व्यक्ति या संस्थान, उन्हें वह राशि कैसे उपलब्ध करा रहे हैं, या वह व्यक्ति या संस्थान किस प्रकार गलत कार्य कर, ुउन्हें राशि उपलब्ध करा रहा हैं, उससे उन्हें कोई मतलब नहीं, पर जब एक बार कोई गलत कार्य करनेवाला विज्ञापनदाता, जिसने समाज को नुकसान पहुंचाया हैं, गलत कार्यों में लिप्त होने के कारण पकड़ा जाता हैं, तो उसकी सम्मान बचाने के लिए ये रांची के अखबार-चैनल जी-जान लगा देते हैं, इसीलिये रांची का एक सामान्य नागरिक ताल ठोककर कहता है, कि अगर किसी को विज्ञापन धर्म कैसे निभाना हैं, तो रांची के अखबारों व चैनलों से सीखे।
जरा देखिये, कुछ ही दिनों की बात हैं कि एक जदयू विधायक या बिल्डर कहिये, उसके यहां आयकर का सर्वे हुआ, किसी अखबार व चैनल में ये समाचार देखने को नहीं मिला और नही फोटो नजर आये, एक-दो ने लिखा भी तो उसे पांच पंक्तियों में समाप्त कर दिया, जैसे कि इस न्यूज को सिर्फ स्पर्श कर छोड़ दिया हो, यानी आम जनता की नजर में उस न्यूज की कोई भैल्यू नहीं, और अब देखिये कल की घटना, रांची के बरियातु स्थित बिरसा ब्लड बैंक को सील कर दिया जाता है, उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज होती हैं, आठ लोग गिरफ्तार होते हैं, पर किसी अखबार में गिरफ्तार संचालक की फोटो नहीं छपी है, आखिर क्यों, अब हम आपको बताते हैं, जिस संचालक को आपने कभी सम्मानित किया हैं, या विज्ञापन लिया हैं, उसकी गिरफ्तारी का फोटो अगर आप छापेंगे तो आपका कलेजा नहीं दहल जायेगा, इसलिए जहां तक हो सकता है, विज्ञापन धर्म निभाइये, यानी समाचार देकर जनता को घटी घटना की सूचना दे दी और कभी विज्ञापनदाता रह चुके उक्त शख्स को विज्ञापन धर्म के अनुसार फोटो न देकर उसकी थोड़ी इज्जत भी बचा ली।
और अब कल का मामला क्या हैं? जरा उस पर ध्यान दे, दरअसल स्वास्थ्य विभाग की प्रधान सचिव निधि खरे के आदेश पर कल रांची के बरियातू स्थित बिरसा ब्लड बैंक में छापामारी की गई, छापामारी के दौरान बिना लाइसेंस के ही मरीज को खून चढ़ाते हुए पाया गया तथा अवैध रुप से चल रहे इस ब्लड बैंक को सील कर, यहां से आठ लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया, और इनके खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज कर ली गई। बिरसा ब्लड बैंक का संचालक संजय सिंह, कभी मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र से भी जुड़ा रहा है, कभी यह शख्स मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र में सुपरवाइजर के रुप में भी काम करता था।
बताया जाता है कि इस बिरसा ब्लड बैंक के खिलाफ कई शिकायतें, स्वास्थ्य विभाग को प्राप्त हुई थी, जिसके आधार पर छापामारी की गई। बताया जाता है कि गुप्त सूचना के आधार पर श्रीमती खरे ने ड्रग इंस्पेक्टर प्रतिभा झा और पूनम तिर्की को बिरसा ब्लड बैंक छापामारी करने भेजा था, पर कुछ आशंका होने पर रांची की एसडीओ अंजलि यादव को वहां भेजा गया। एक अखबार ने लिखा है कि जब एसडीओ अंजलि यादव वहां पहुंची तो उन्होंने पाया कि दोनों ड्रग इंस्पेक्टर कोल्ड ड्रिंक और समोसे का मजा ले रही थी।
एसडीओ ने वहां पहुंचकर पाया कि डस्टबिन में एक रक्त का थैला पड़ा था, जिसमें न तो क्रास मैच था, और न ही कोई तिथि अंकित थी, इसके बाद सारे परिसर की सघन जांच की गई। सघन जांच के दौरान पाया गया कि वहां एक व्यक्ति को रक्त चढ़ाया जा रहा था, एक तंग कमरे में रक्त चढ़ाने की व्यवस्था की गई थी, जबकि वहां न कोई चिकित्सा अधिकारी है, न कोई तकनीकी कर्मचारी, साथ ही रक्त चढ़ाने का लाइसेंस भी नहीं था, फिर भी मरीज को ब्लड चढ़ाया जाना, क्लीनिकल इस्टेबलिस्टमेंट एक्ट का यह सीधा-सीधा उल्लंघन है। बताया जाता है कि उक्त कमरे में ब्लड ट्रांसफ्यूजन सेट, स्काल्प वेन सेट तथा अन्य दवाएं भी पाई गयी, जिसका क्रय अभिलेख, ब्लड संचालक के पास नहीं था।
सूत्र बताते है कि बिरसा ब्लड बैंक का लाइसेंस दिसम्बर में ही समाप्त हो चुका है। इसके बावजूद बिना नवीनीकरण के इस ब्लड बैंक का संचालन किया जा रहा था। छापेमारी के दौरान जिसे गिरफ्तार किया गया, उसके नाम इस प्रकार है, संजय सिंह संचालक, बीएम प्रमाणिक, आनन्द कुमार, गोपाल सिंह, ललन राम, लक्ष्मण राम, अनिल कुमार, मणीष कुमार और रामेश्वर महतो।