कल्पना सोरेन से सीखो भाजपाइयों, जनता के दिलों पर राज कैसे किया जाता है? लोकप्रियता कैसे हासिल की जाती है? भारी बारिश में भी लोग छाता तानकर उनका इंतजार क्यों करते हैं?
कल्पना सोरेन से सीखो भाजपाइयों, जनता के दिलों पर राज कैसे किया जाता है? लोकप्रियता कैसे हासिल की जाती है? भारी बारिश में भी लोग छाता तानकर उनका इंतजार क्यों करते हैं? जबकि आपके द्वारा लाख घोटाले व भ्रष्टाचार के आरोपों को लगाने के बाद भी जनता उन्हें अपने माथे पर बिठाने को क्यों तैयार है? और आपके द्वारा लाखों-करोड़ों रुपये फूंककर वाटरप्रूफ पंडालों के निर्माण, जनता को लाने के लिए बड़े-बड़े वाहनों के इस्तेमाल तथा हर प्रकार के संसाधनों से युक्त परिवर्तन यात्रा निकालने के बावजूद आपके रैलियों और सभाओं की हर जगह हवा क्यों निकल जा रही है?
दरअसल आपकी हालत ज्यादा जोगी मठ उजाड़ वाली हो गई है। जहां राजनीतिबाजों की संख्या तो ज्यादा हैं, लेकिन राजनीतिज्ञों की संख्या नगण्य है। ये सभी जनता को बेवकूफ समझ रहे हैं और उन्हें झांसा देते हुए, अपने पास धन-पशुओं की फौज खड़ी कर ली है। धन-पशुओं को लगता है कि उनके पास धन है और इसकी मदद से वे वो सारा काम करा ले सकते हैं, जिसकी वे इच्छा रखते हैं।
तभी तो धनबाद की सभा में राजनाथ सिंह की सभा मजाक बनकर रह जाती है। तभी तो बेरमो में लाखों फूंकने के बाद भी जनता नदारद रहती है। लेकिन इन सभाओं से ये भाजपावाले सीखनेवाले नहीं। जबकि दूसरी ओर हेमन्त सोरेन और कल्पना सोरेन की सभा में भीड़ इस प्रकार उमड़ रही हैं कि लोग दांतों तले अंगूलियां दबा ले रहे हैं। कई जगहों पर तो रातों में भी भीड़ घंटों इंतजार करती हुई दिख रही है।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो वे साफ कहते हैं कि हेमन्त सोरेन और कल्पना सोरेन की सभा में भीड़ होने का मूल कारण, इन दोनों का जनता से सीधा जुड़ाव है। कोई भाया-मीडिया नहीं हैं। इनके चाहनेवाले भी उसी प्रकार के हैं। भोले-भाले, दिल में कोई छल-प्रपंच नहीं, बस जो दिल ने बोला वो समझ लिया। लेकिन भाजपा की स्थिति ठीक उसके उलट है।
भाजपा में तो हर जगह दो गुट बन चुका है। एक गुट हैं जो भाजपा पर हावी है। जिसके पास धन प्रचुर मात्रा में हैं और इसी की सहायता से वो पूरी भाजपा को अपने गिरफ्त में ले चुका है और दूसरा गुट वैसा हैं जो भाजपा के प्रति समर्पित है लेकिन उसके पास धन का अभाव है और उसकी कोई पूछ नहीं। जिसके कारण वो स्वयं को भाजपा से अलग-थलग महसूस कर रहा है, साथ ही ठगा महसूस कर रहा है और धीरे-धीरे भाजपा से दूर अब अपने कामों में लगने की कोशिश कर रहा हैं। जबकि ठीक इसके विपरीत कल्पना सोरेन और हेमन्त सोरेन द्वारा जनता से सीधे लगाव, अपने कार्यकर्ताओं से सीधे जुड़ाव, कोई भाया-मीडिया नहीं, ये इनकी लोकप्रियता में चार-चांद लगा दे रहा है।
आश्चर्य यह भी है कि झारखण्ड के रांची, जमशेदपुर, धनबाद, देवघर व डालटनगंज से निकलनेवाले बड़े राष्ट्रीय व क्षेत्रीय अखबारों में भाजपा के बड़े से लेकर छुटभैये नेता छाये हुए हैं। इन अखबारों में हेमन्त सोरेन व कल्पना सोरेन भी ढूंढे ही मिलेंगे। लेकिन उसके बावजूद आम जनता के बीच में भाजपा कही नहीं दिख रही और दूसरी ओर आम जनता के दिलों में कल्पना सोरेन और हेमन्त सोरेन ने ऐसी जगह बना ली कि अब ये चाहकर भी उस स्थान पर उन्हें कमजोर नहीं कर सकते।
शायद इसी का परिणाम है कि 23 अगस्त को रांची के मोराबादी में भाजपा की रैली में मात्र पांच से सात हजार की भीड़ और जमशेदपुर के पीएम मोदी की सभा में चौदह से पन्द्रह हजार की भीड़ आकर सिमट जाती है। जबकि हेमन्त सोरेन और कल्पना सोरेन की सभा में लोग स्वयं आ रहे हैं और उनकी बातों को सुन रहे हैं। आश्चर्य यह भी है कि इन दोनों की सभा उस जगह पर गुल खिला रही हैं, जो कभी भाजपा का गढ़ माना जाता था। अब उस गढ़ में भी तीर-धनुष का झंडा साफ दूर से नजर आ रहा है। जरा देखिये कल्पना सोरेन का इस आर्टिकल में दिया गया फोटो और आम जनता द्वारा उनका किया जा रहा स्वागत क्या कह रहा है। ये तो फोटो ही सब कुछ कह दे रहा हैं, दूसरे लोग या हम क्या कहेंगे। ये सारी फोटो बहरागोरा की हैं।